संवाद : हे पुरुष,जानो एक स्त्री के स्त्रीत्व को उनके मर्यादाओं को,तभी तुम होंगे पूर्ण पुरुष - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 22 जनवरी 2019

संवाद : हे पुरुष,जानो एक स्त्री के स्त्रीत्व को उनके मर्यादाओं को,तभी तुम होंगे पूर्ण पुरुष

womenhood
अरुण कुमार (बेगूसराय)  आज सुबह सबेरे वॉलीवुड चरित्र अभिनेता,पटकथा संवाद लेखक सह निर्देशक श्रीमान अजित दादा से हुई वार्तालाप के दौरान बातचित होते होते,नारी से संबंधित प्रसंगों पर बात छिड़ी गई जो कि उनके और मेरे अंतःकरण की बात थी।फिर सिर्फ उन्हीं की ही क्यों?सिर्फ मेरी ही बातें क्यों?हमदोनो में ही इस विषय पर बहस क्यों छिड़ी या छिड़ती है? ये तो सभी के अंतः की बात है और होनी भी चाहिये।कोई भी अपनी माँ, बहन को किस नजर से देखता है ये सोचनीय,विचारणीय है।एक स्त्री के योनि से जन्म लेने के बाद उसके वक्षस्थल से निकले दूध से अपनी भूख,प्यास मिटाते हुए बड़ा होनेवाला इंसान बड़ा होते ही औरत से इन्हीं दो अंगो की चाहत रखता है,और अगर असफल होता है,तो इस चाहत को पूरी करने के लिये वीभत्स तरीकों से भी अंजाम दे देता है,और वो तरीका होता है:-

बलात्कार,प्रताड़ना और फिर हत्या जैसी जघन्य अपराध।हत्या उसकी जिसने जन्म देखर अपना दूध पिलाकर खुद भूखी प्यासी रहकर भी अपने ममता की छाँव न्योछावर करती है,अपनी सौंदर्यता को न्योछावर करनेवाली माँ जिसे जननी की संज्ञा दी गई है,उस जननी वर्ग के साथ इस तरह की मानसिकता क्यों...?
वध होना चाहिए ऐसी दूषित मानसिकता के किंचड़ों में पड़े लोगों का.....।
 दूध का कर्ज़ उसके ही खून से चुकाते हैं कुछः वहसी दरिंदे,कुछ इस तरह तुम अपना पौरुषता दिखाते हो क्या यही है पुरुषत्व तुम्हारी? 
एक औरत का ही दूध पीकर तुम उसके दूध को ही लजाते हो... उसके स्नेह को लजाते हो ..
वाह रे पौरुष और वह रे तेरी पौरुषता तुम्हारी ...तुम खुद को तो पुरुष कहलवाते हो पर क्या तुम हो इसके लायक जरा खुद से एकबार पूछ कर तो देखो।
हर वक्त उसी के सीने पर नज़र तुम जमाते हो
उस सीने में छुपी ममता क्यों देख नहीं पाते हो और खुद को पुरुष कहते लजाते भी नहीं?
एक औरत ने जनी तुझे ,पाला -पोसा है तुम्हें... 
बड़े होकर ये बात क्यों भूल जाते हो की हरेक लड़की जो आज तुम्हारी माँ है वो किसी की बहन और बेटी भी थी,और जो आज तुम्हारी खुद की बेटी और बहन है वह भी किसी के हवस का शिकार भी हो सकती है।हे मनुज बदलो अपनी मानसिकता को और पुरुष हो तो पुरुषत्व दिखाओ उनकी रक्षा के लिये।जो तेरे हर एक आँसू पर हज़ार खुशियाँ कुर्बान करती हैं।कभी बेटी बनकर तुम्हारे लिए रोटी भी बनाती हैं,तुम्हारे दुख से दुखी भी होती है।कभी बहन बनकर तुम्हारे खुशियों के लिये तुम्हारे साथ खेलती, गाती,मुस्कुराती,गुनगुनाती और कभी झगडती भी है। फिर क्यों तुम उसी औरत के हजार आँसू दुःख-दर्द पर आँसु पोछने की जगह और भी  देने के लिये आमदा रहते हो।एक नारी को सुखी नहीं देख पाते हो।सुख देने के जगह दुःख ही दुःख देने पर तुले रहते हो। हवस की खातिर आदमी होकर क्यों नर पिशाच बन जाते हो।मर्यादा सिखाने वालों,मत  भूलो की नारी से ही घर है,घर से ही समाज है,और समाज को संस्कारित करना पुरुषों की उत्तरदायित्व है।तुम अपनी मर्यादा को क्यों भूल जाते हो?भूलो मत अपनी मर्यादाओं को अपनी संस्कृति,अपनी सभ्यताओं से आच्छादित करो समाज को,खुद को,मत भूलो की नारी सृष्टिकर्त्री हैं। इस तरह बातों का सिलसिला चलते चलाते कुछ आख्यान उन्होंने दिया कुछ आध्यात्मिक बातें हमने भी की और अंत इन्ही बातों से हुआ कि "हे पुरुष तुम अपनी मर्यादा क्यों भूल जाते हो,अपनी मर्यादा से मार्यादित करो जग को ताकि आनेवाले कल को तुम्हें याद किया जाय न कि तुम्हें गाली दिया जाय।स्थापित करो अपने मर्यादाओं को विस्थापित नहीं।

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