बिहार : वनाधिकार कानून पर सुप्रीम काेर्ट का फैसला आदिवासी, दलित व कमजोर वर्ग विरोधी - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 25 फ़रवरी 2019

बिहार : वनाधिकार कानून पर सुप्रीम काेर्ट का फैसला आदिवासी, दलित व कमजोर वर्ग विरोधी

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पटना,25 फरवरी। लाेकतांत्रिक जन  पहल सुप्रीम काेर्ट के इस फैसले का पुरजोर विराेध करता है  जिसमें बिहार सहित इक्कीस राज्यों काे आदेश दिया गया है कि  वनाधिकार कानून 2006 ( अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासी अधिनियम 2006) के तहत वैसे दावेदाराें काे जिनका दावा खारिज किया जा चुका है राज्य सरकार 12 जुलाई 2019 के पहले वन क्षेत्र से बेदखल करे और सुप्रीम काेर्ट काे रिपोर्ट करे.  लाेकतांत्रिक जन पहल का मानना है कि यह फैसला आदिवासियों, दलितों और अन्य कमजोर समुदायों के मानवाधिकारों का हनन, अन्यायपूर्ण और जनविरोधी है.  हमारा मानना है कि केन्द्र की माेदी सरकार ने जानबूझकर काेर्ट में मजबूती से हस्तक्षेप नहीं किया जिस तरह आदिवासी-दलित उत्पीड़न विराेधी कानून काे न्यायालय के माध्यम से कमजोर करने की काेशिश की गयी ठीक उसी तरह से वनाधिकार कानून काे भी नाकाम करने का माेदी सरकार के द्वारा प्रयास किया गया है. इस पूरे प्रकरण ने फिर एक बार साबित किया है कि प्रधानमंत्री माेदी सवर्ण सामंताें व जंगल माफियाओं के पक्षधर हैं. 

यह फैसला संविधान के तहत आदिवासियों, दलितों व अन्य कमजोर समुदायों काे प्राप्त विशेष संरक्षण के अधिकाराें का सीधा उल्लंघन है.  लाेकतंत्र का आधार कानून का शासन है. हमारे संविधान में यह व्यवस्था है कि सरकार के द्वारा जब किसी कानून का सही तरीके से पालन नहीं हाेता है ताे पीड़ित व्यक्ति न्याय के लिए काेर्ट जा सकता है.  सुप्रीम काेर्ट के इस फैसले ने आदिवासियों, दलितों व अन्य कमजोर समुदायों काे जाे जंगलाें में बसे हैं, खेती करते हैं या वन-उत्पादों पर निर्भर हैं पूरी तरह नाैकरशाही के मनमानेपन के हवाले कर दिया है. हम जानते हैं कि खासकर बिहार में सरकार व अधिकारी वनाधिकार कानून काे लागू करने के प्रति न केवल लापरवाह रही है बल्कि   निराधार अड़ंगा लगाकर व प्रक्रियाओं का मनमाने तरीके से दुरुपयोग कर वास्तविक दावेदाराें के भी आवेदनाे काे खारिज करती रही है. उल्लेखनीय है कि ऐसे सैकड़ाें मामले पटना हाइकोर्ट में लंबित हैं और हाइकोर्ट ने अंतिम निर्णय हाेने तक उजाड़ने पर राेक लगा रखा है. सुप्रीम काेर्ट के इस आदेश से हाइकोर्ट के यथास्ति के निर्णय पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है.  सुप्रीम काेर्ट का यह आदेश अधिकारियों काे खुली छूट देता है और जंगल वासियाें काे  न्याय पाने के अधिकाराें से वंचित करता है. लाेकतांत्रिक जन पहल सभी लाेकतांत्रिक, प्रगतिशील व सामाजिक न्याय के पक्षधर लाेगाें से अपील करता है कि वे एकजुटता के साथ इस फैसले का विरोध करें तथा माेदी सरकार काे बेनकाब करें.

लाेकतांत्रिक जन पहल --- सत्य नारायण मदन, कंचन बाला, अशोक कुमार अधिवक्ता, मणिलाल अधिवक्ता, फादर एंटाे, प्रवीण कुमार मधु, विनोद रंजन, अफज़ल हुसैन, साैदागर, शम्स खान, प्रदीप प्रियदर्शी, कपिलेश्वर, अशरफी, तबस्सुम, बिन्दु कुमारी, प्रगति आनंद अधिवक्ता, बेबी कुमारी अधिवक्ता, अभिनव, अरविन्द यरवदा (सभी पटना), अशोक कुमार (अरवल), मिथिलेश कुमार दीपक (औरंगाबाद), अजीत कुमार वर्मा (जहानाबाद)

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