बिहार : तिनघरिया में रहने वाले 45 महादलितों की समस्या कानून के अधीन पेश - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 18 मार्च 2019

बिहार : तिनघरिया में रहने वाले 45 महादलितों की समस्या कानून के अधीन पेश

  • बकिया मुसहरी के 12 महादलितों को गड्ढे में जमीन देने का मसला अधिकारियों का सिर दर्द बना

कुर्सेला प्रखंड के प्रखंड समन्वयक प्रदीप कुमार ने कहा है कि संगठन के बल पर ग्रामीणों का कायाकल्प बदलाने की दिषा में प्रयासरत हैं और आजीवन रहेंगे। पत्रकारों के सवालों के जवाब में कहा।

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पटना,18 मार्च। प्रगति ग्रामीण विकास समिति के सचिव प्रदीप प्रियदर्शी ने जिला समन्वयक व दो प्रखंड समन्वयक का चयन किया। आज तो लाइवीहुड और भूमिहीनता का मसला ग्लोबल बन गया है। इन मुद्दे को लेकर गांधी, विनोबा, जयप्रकाश, अम्बेडकर के मार्ग पर चलकर जनादेश 2007,सत्याग्रह 2012 और जनांदोलन 2018 में सत्याग्रह पदयात्रा की गयी। जल,जंगल,जमीन के मुद्दे को लेकर अहिंसात्मक ढंग से संवाद किया जाता है।  प्रगति ग्रामीण विकास समिति और सहयोग देने वाली संस्था इंडो ग्लोबल सोशल सर्विस सोसाइटी के नाम से पत्र तैयार किया गया। सरकारी अधिकारियों के साथ जन प्रतिनिधियों को दिया गया। चयनित ग्रामीण पंचायत के मुखिया,उप मुखिया,वार्ड सदस्य, सरपंच, उप सरपंच,पंच, आंगनबाड़ी सेविका,सहायिका, स्कूल के प्रधानाध्यापक, शिक्षक, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र के प्रभारी, राज्यकर्मियों, जीविका दीदी, आशा बहन, रसोईया, सम्मान विचारधारा के लोगों से सम्र्पक किया गया। गांव/टोला के प्रमुख लोगों को गैर सरकारी संस्था के बारे में जानकारी दी गयी। 

गांव/टोला के लोगों से सम्र्पक। यहां की समस्याओं का अवलोकन। सरकार और गैर सरकारी संस्थाओं के द्वारा उपलब्ध करवाने वाले प्रोग्राम की जानकारी ली गयी। संस्था और लोगों के दिल मिलने के बाद गांव में बैठक की गयी। संस्था के संचालक के द्वारा मोटा-मोटी समस्याओं के बारे में जानकारी हासिल किए। अपनी ओर से ग्रामीण समस्याओं को भी उभारा।  यहां पर आवासीय भूमिहीनों की समस्या सामने आयी। 12 महादलितों को जमीन दी गयी और सीमांकन नहीं की गयी। गड्ढे में जमीन होने की बात सामने आयी। गंगा नदी के कटाव से विस्थापितों को वासगीत पर्चा नहीं मिलने की बात सामने आयी। खेत में महिला और पुरूषों के बीच असमान मजदूरी। पलायन की समस्या। महात्मा गांधी नरेगा में काम नहीं मिलने की समस्या। बिहार भूदान यज्ञ समिति द्वारा निर्गत जमीन का दाखिल पर्चा नहीं होना। पेयजल की संकट। सामाजिक सुरक्षा पेंशन मिलने में दिक्कत। दिव्यांग के पास तिनपहिया वाहन नहीं रहने के कारण स्कूल जाने में परेशानी। रोजगार करने के लिए राशि का अभाव। इसके अलावे अन्य समस्याओं के आलोक में कैसे समस्याओं का समाधान हो? चर्चा के बाद सामुदायिक आधारित संगठन बनाने पर जोर दिया गया। इसके आलोक में विभिन्न समस्याओं का समाधान करने के उद्देष्य से सामुदायिक आधारित संगठन निर्माण किया गया। 

आवासीय भूमिहीनों का चयन किया गया। इसके बाद आवेदन तैयार करके अंचल कार्यालय में पेश किया गया। जिसकी समस्या है उसकी अगुवाई में आवेदन पत्र को अंचल कार्यालय में दिया गया। लगातार फोलोअप किया जाता है। इस समय सरकार के द्वारा पांच डिसमिल जमीन दी जाती है। यह सब प्रखंड स्तर पर किया गया। प्रखंड,जिला,राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर कार्यक्रम आयोजित किया गया। अब आवासीय भूमिहीनों को अधिकार देेने की मांग होने लगी। प्रखंड,जिला और राज्य स्तर पर घर का अधिकार कानून बनाने पर जोर दिया गया। गांधी मैदन और मिलर हाई स्कूल में रैली की गयी। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने प्रथम कार्यकाल में लाखों रू. व्यय करके भूमि सुधार आयोग 2006  को गठित की। आयोग के अध्यक्ष डी. बंदोपाध्याय ने महत्वपूर्ण सिफारिष किए। परंतु सरकार ने सिफारिश को ठंडे बस्ते में डाल दी । उसको अमल करने की हिम्मत सरकार को नहीं हुई। अध्यक्ष डी.बंदोपाध्याय की अनुशंसा को लागू करने में सरकार हिल जाती है। आज भी आयोग की सिफारिश लम्बित है। एक बार फिर सामाजिक संगठन मुद्दा को उठाने लगे हैं। उन सिफारिशों को तुरंत लागू करने आग्रह सरकार से करने लगे हैं। सिफारिश मुद्दे को हल्केपन करने के उद्देष्य से 2015 में एक भूमि सुधार कोर कमिटी का गठन किया गया। सरकारी कार्यक्रम  अभियान बसेरा की कछुआ गति है। पर दुर्भाग्य से उसकी दो सालों से कोई बैठक ही नहीं बुलायी गयी। सामाजिक संगठनों ने सरकार के साथ कई दफे संवाद भी किए और उस ओर सरकार को सहयोग भी किए। बावजूद, इसके सरकार की ओर से कोई सार्थक परिणाम सामने नहीं निकला।  राष्ट्रीय स्तर पर कार्यक्रम तैयार किया गया। एकता परिषद व सम्मान विचार वाले जन संगठनों ने 2 अक्टूबर से 6 सूत्री मांग को लेकर जनांदोलन 2018 किए। राष्ट्रीय आवासीय भूमि अधिकार कानून की घोषणा एवं क्रियान्वयन,राष्ट्रीय कृषक हकदारी कानून की घोषणा एवं क्रियान्वयन आदि मांग को लेकर समेली और कुर्सेला प्रखंड के 75 लोग सत्याग्रह पदयात्रा में शामिल हुए।

आजीविका को लेकर गांव, टोला, पंचायत, प्रखंड और राज्य स्तरीय पर जागरूकता अभियान चलाया गया। इसका प्रभाव भी सामने आने लगा है। ग्रामीण महात्मा गांधी नरेगा में काम मांगने लगे हैं। फिलवक्त 8 टोला के लोगों ने काम की मांग किए और काम भी मिला है। एक पंचायत की महिला ने रोजगार करने की मांग को राषि की मांग बीडीओ से की है। उसको लेकर प्रयास जारी है। 10 जगहों में बचत समूह निर्माण करने की सहमति महिलाओं ने दी है। अभी तक 4 बचत समूह बना है। पटना में राज्य स्तरीय भूमि अधिकार एवं भूमि आधारित आजीविका पर संवाद आयोजित किया। इसमें समाज के किनारे रहने वाले दलितों के उत्थान के लिए काम करने वाली विभिन सरकारी-गैर सरकारी संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। पहली बार एन.जी.ओ. और डोनर के प्रतिनिधियों का संगम हुआ। कुटीर उद्योग को बढ़ावा देना। जैविक खेती को प्रोत्साहित करना। दैनिक आहार का स्तर उन्नत करने का सुझाव, सामाजिक सुरक्षा पेंशन,शुद्ध पेयजल, महात्मा गांधी नरेगा से ग्रामीणों को जोड़कर आय वर्द्धन करवाना। संबंधित विभागों के अधिकारियों से संवाद किया जाता है। बिहार लोक सेवाओं का अधिकार का उपयोग किया जाता है। बिहार लोक षिकायत निवारण अधिकार कानून का इस्तेमाल किया जाता है। सूचना के अधिकार का प्रयोग किया जाता है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ अन्य लोगों को समस्याओं के बारे में ई-मेल किया जाता है। अखबार व ब्लाॅग में समस्याओं को प्रकाशित करने के लिए भेजा जाता है। केस स्ट्डी तैयार किया जाता है। किसी तरह से भी लोगों की आजीविका स्तर को सीमित संसाधन के बल पर उन्नत करने का प्रयास किया जाता है। बकरी पालन पर जोर दिया जाता है। बकरी को तौलकर बेचने को प्रोत्साहित किया जाता है। घर के अंदर सीमित जमीन पर ही किचन गार्डन बनाया गया है।  मखाना उत्पादन करने में मजदूरी की भूमिका न हो इसके लिए लोगों को जागरूक किया गया। यह सब व्यापक व निरंतर करने वाले प्रोसेज है। प्रगति ग्रामीण विकास समिति की ओर से लोगों का कल्याण व विकास का कार्य निरन्तर किया जाता है।

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