पूर्णिया : बाजार में सही रेट नहीं मिलने से किसान औने पौने कीमत पर आलू बेचने को मजबूर - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 28 मार्च 2019

पूर्णिया : बाजार में सही रेट नहीं मिलने से किसान औने पौने कीमत पर आलू बेचने को मजबूर

- सिर पर कर्ज अदायगी की तलवार लटके होने के कारण किसानों के लिए उत्पादित आलू को तत्काल बाजार भाव के हिसाब से बेचने की मजबूरी होती है
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पूर्णिया : इसे विडंबना कहिए या कुछ और किसानों पर आफत की मार कम होती नहीं दिख रही है। किसानों की हजारों हेक्टेयर में लगी आलू की फसल औने पौने भाव में बिक रही है और हरी सब्जियों की कीमतें आसमान छू रही हैं। परवल 80 से 100 किलो, भिंडी 60 प्रति किलो, मटर 50 प्रति किलो, कटहल 80 प्रति किलो और कद्दू 25 से 30 पीस तक बिक रहा है। आलू उत्पादक किसानों के चेहरे पर मायूसी छाई हुई है। प्रखंड के बहुत सारे किसानों ने बाजार रेट में सुधार की उम्मीद में अभी तक अपने खेतों से आलू नहीं निकाला है। अभी उम्दा किस्म की कोशिका आलू पांच एवं पुखराज वैरायटी की कीमत चार रूपए प्रति किलो है। किसानों की समस्या यह है कि इस रेट पर आलू बेचने से किसानों को मुनाफा मिलना तो दूर उनकी लागत वसूली पर भी आफत है। कृषक अजोधी यादव कहते हैं कि महंगे कंपोस्ट बीज खाद सिंचाई मानव श्रम एवं कीटनाशकों पर लगी राबाजार में सही रेट नहीं मिलने से किसान औने पौने कीमत पर आलू बेचने को हैं मजबूर शि से किसान पहले से ही कर्ज में डूबे हैं। उस पर सही कीमत नहीं मिलने से उनके सामने समस्या विकराल हो गई है। औसतन प्रति एकड़ आलू की फसल में शुरू से लेकर आखिर तक उत्पादन लागत 50 हजार या इससे ज्यादा है। ऐसे में उत्पादन लागत की वसूली किसानों के लिए फिलवक्त टेढ़ी खीर है। 

...स्टोरेज में भी है जोखिम : 
आलू उत्पादक किसानों के लिए प्रखंड के शीत गृहों में स्टोर का विकल्प तो है।  लेकिन यह व्यवहारिक नहीं है। इसका कारण यह है कि आलू उत्पादन से जुड़े हुए किसानों में लघु एवं सीमांत किसानों की एक बड़ी तादाद है। आलू उत्पादक गंगा प्रसाद चौहान व महावीर साह कहते हैं कि हमलोग खाद बीज विक्रेताओं से लेकर स्थानीय महाजनों एवं इसके अलावा कुछेक बैंकों से केसीसी ऋण लेकर आलू की खेती करते हैं। फसल उत्पादन के तुरंत बाद इसे बेचकर वे कर्ज चुकाते हैं। सिर पर कर्ज अदायगी की तलवार लटके होने के कारण किसानों के लिए उत्पादित आलू को तत्काल बाजार भाव के हिसाब से बेचने की मजबूरी होती है। दूसरे शीतगृहों में उन्हें प्रति क्विंटल के हिसाब से स्टोरेज चार्ज चुकता करना पड़ता है। वहीं कृषक शंकर साह व नाथूलाल राम कहते हैं कि स्टोरेज में आलू रखने में 250 से 300 प्रति क्विंटल का खर्चा आता है। स्टोरेज के कुछ एक महीनों सही मूल्य नहीं मिलने के कारण किसानों को घाटा ही उठाना पड़ता है। पिछले कुछ सालों के रिकॉर्ड को देखें तो कई कई बार बाजार मूल्य में गिरावट के कारण किसानों को या तो स्टोर रेट देने तक के लाले  खड़े हैं। कई बार ऐसा भी हुआ है कि किसान स्टोरेज में ही आलू छोड़ देने पर विवश हो जाते हैं।

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