दुमका : जीवन में भोगे गए यथार्थ पर आधारित है डॉ (मो.) हनीफ की कृति " एक पिता का सच" - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 7 अप्रैल 2019

दुमका : जीवन में भोगे गए यथार्थ पर आधारित है डॉ (मो.) हनीफ की कृति " एक पिता का सच"

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दुमका (अमरेन्द्र सुमन) यूँ तो डॉ (मो.) हनीफ एस पी एम दुमका में अंग्रेजी के शिक्षक हैं किन्तु अंग्रेजी के साथ साथ हिन्दी, उर्दू, संताली व बंग्ला भाषा में भी इनकी जबर्दस्त पकड़ है। सभी  पाँच भाषाओं में डॉ (मो.) हनीफ ने सैकड़ों कविताएँ, कहानियाँ व उपन्यासों की रचना कर संताल परगना की साहित्यिक धरा, सामाजिक, सांस्कृतिक व वैचारिक सरोकारों को पूरे दमखम के साथ सामने लाने का काम किया है। "एक पिता का सच" डॉ हनीफ़ की बारहवीं कृति है, जिसमें कुल पांच कहानियां समाहित हैं। इस संकलन की सारी कहाानियाँ एक से बढ़कर एक हैं।  सामान्यतः कहानी किसी एक घटना पर आधारित होती है, जो मानव जीवन को प्रभावित करती चली जाती है। डॉ हनीफ़ की कहानियां सचमुच एक अलग संसार को जन्म देती है, जो वास्तविकता के काफी करीब दिखती है। अंतरराष्ट्रीय कहानीकार डॉ हनीफ़ की कहानियों की खास विशेषता यह है कि इनके लिखने का विषय आमतौर पर आसपास की चीजें, घटनाक्रम, भोगे हुए अनुभव व यथार्थ पर आधारित होता है। कई कहानियाँ तो किसी किसी से वार्तालाप पर ही आधारित और वहीं से प्रारम्भ ही होती हैं जो पाठकों  को बांधे रहती है। 'चाहत' कहानी में इन्होंने एक लड़की की विवशता और उसके प्रति समाज के दृटिकोण को बड़ी ही सहजता के साथ उकेरा है।  इस कहानी के माध्यम से  यह दिखाने का प्रयास किया गया है कि आपसी गलतफहमी  किसी की व्यक्तिगत जिन्दगी को  किस कदर प्रभाावित कर जाती है।  किसी की जिंदगी पछतावे के दलदल में किस तरह ठेल दी जाती है। दूसरी कहानी  "विनती"  भी अत्यंत ही प्रभावपूर्ण शैली में लिखी गई है।  प्रेम का अर्थ एक दूसरे की भलाई व खुद का त्याग है, बलिदान है, जिसके लिए एक दूसरे के साथ रहना जरूरी नहीं है। असल प्रेम तो आध्यात्म है, जो स्थाई और शाश्वत है। जिसके लिए  ह्रदय से आत्मीय संबंध होना आवश्यक है, नश्वर शरीर का नहीं। इसकी पवित्रता इतनी स्पष्ट है कि नायक कहता है, 'नहीं अनुधे हम दोनों के बीच आग का दरिया है, जिसे स्पर्श मात्र से दोनों जलकर भष्म हो जाऐंगे। दृश्य इतना  कारुणिक है, जिसे शब्दों में नहीं कहा जा सकता है। तीसरी कहानी "एक पिता का सच" है,जो वस्तुतः एक लाचार पिता की बुढ़ापेपन की अवस्था की आपबीती है, जो समकालीन और यथार्थ है। अतियथार्थवाद को कहानी के माध्यम से समाज के सामने हूबहू प्रस्तुत करने का दुःसाहस सचमुच विरले ही लेखकों में दिखाई पड़ता है जिसे डॉ हनीफ़ ने किया है। एक पिता किस प्रकार बुढ़ापे में अपने पुत्र और पत्नी के आगे लाचार होकर  अंततोगत्वा कॉवशेड में रातें बिताता है, देखने वाली बात है।  रात में कभी-कभी बकरी के बच्चे उसके बिस्तर पर सो जाते हैं और कभी तो कपड़े भी गीला कर देते। कुछ तो उनके खटिये के नीचे अपना  बाथरूम बना चुके होते हैं। गजब की स्थिति हो जाती है तब एक पिता की। यह कहानी  एक पिता की पीड़ा है, वेदना है, एक पिता का भोगा गया  सच है।  चौथी कहानी "माथे की बिंदिया" में एक नारी के लिए बिंदिया के महत्व को बड़े ही सरल ढंग से दिखाया गया है। बिंदिया की कीमत कम होती है, लेकिन जब  सही समय पर जब यह माथे पर लग जाती है तो यह अनमोल हो जाती है। जीवन भी यही है। माथे की बिंदिया की तरह...। अंतिम कहानी लेखक के  बचपन की है, जिसमे माता और पुत्र का सामान्य वार्तालाप है, जो गद्यात्मक और पद्यात्मक दोनों है। माँ बूढ़ी हो गई है, लेकिन उनकी सेवा के लिए पुत्र शहर की सारी सुख सुविधाओं को त्याग कर माँ की सेवा ही अपनी जिन्दगी की सबसे बड़ी उपलब्धि समझ बैठता है और पूरी ईमानदारी के साथ उसका निर्वहन करता है।  लेखक यह साबित करना चाहता है कि माँ के साथ जीवन बिताने का आनन्द स्वर्ग से भी   ज्यादा सुखद और  आनन्ददायक है।  अंत में रूआंसा होकर लिखता  है  "पता नहीं जब अगली कहानी संग्रह आएगी तो मेरी माँ उसे देखने के लिए  जिन्दा रहेगी भी या नहीं। लेकिन माँ, तुम्हारी दी हुई ताबीज, जिस पर तुम्हारी अंगुलियों की निशां मौजूं हैैं ,  सदैव मेरे साथ रहेगी"।  निस्संदेह कहा जा सकता है कि भारतीय परिवेश में जन्म लेती इनकी कहानियां अलग छाप छोड़ जाऐंगी, ऐसा विश्वास है।

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