सिमरी गांव में 3 पीढ़ी से रहते हैं महादलित, अबतक 1 आंगनबाड़ी सहायिका और 2 ममता ही बन सकी हैं महिलाएं
बखरी (आर्यावर्त संवाददाता) ,30 अप्रैल। 17 वीं लोकसभा के गठन को लेकर पहलकदमी तेज है। बेगूसराय संसदीय क्षेत्र में लेफ्ट पार्टी और दक्षिणपंथी विचारधाराओं के बीच में उफान चरम पर रहा। यहां पर चतुर्थ चरण का चुनाव 29 अप्रैल को समाप्त हो गया। इसके बाद चाय की दुकान पर जीत और हार की बाजीगरी शुरू हो गयी। इसी क्रम में महेन्द्र राम के ज्येष्ठ पुत्र रंजीत कुमार गाल बजाने से पीछे नहीं रहे। उनका कहना है कि कन्हैया कुमार ने देश और संविधान की रक्षा करने हेतु मैदान में खड़े हैं। वहीं केन्द्रीय मंत्री गिरिराज सिंह के पक्ष में राजन क्लेमेंट साह कहते हैं कि पीएम मोदी के नेतृत्व में देशभक्ति को जनजन तक पहुंचाने के लिए चुनावी दंगल में हैं। खैर, इन दोनों के बीच में वाक्युद्ध के बाद सामने आयी सिमरी गांव की दास्तान। महेन्द्र राम और द्रोपति देवी के पांच बच्चे हैं। सबसे बड़ा रंजीत कुमार है। 24 अप्रैल से कन्हैया कुमार के पक्ष में हवा बहाने निकला। जेब खर्च से 15 सौ रू.लुटा दिए। बिहार अम्बेदकर विघार्थी मंच के जिला उत्प्रेरक रंजीत कुमार कहते हैं कि बखरी प्रखंड के घाघड़ा पंचायत के सिमरी गांव में महादलित राम जाति के लोग रहते हैं। 3 पीढ़ी से 40 घरों में 200 लोग रहते हैं। आजादी के 72 सालों में 5 लड़के और 6 लड़कियां मैट्रिक उत्र्तीण हैं। अबतक यहां पर 1 आंगनबाड़ी सहायिका और 2 ममता ही आधी आबादी बन सकी हैं। आंगनबाड़ी सहायिका का नाम है उषा देवी।रूबि देवी और रतनी देवी प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र में ममता पद तक पहुंच पायी हैं। कुछ दिन पहले रतनी देवी मर गयी।
बिहार अम्बेदकर विघार्थी मंच के जिला उत्प्रेरक रंजीत कुमार ने कहा कि रोजगार की तलाश में अधिकांश महादलित पलायन कर जाते हैं। इसका कारण है कि महात्मा गांधी नरेगा का क्रियान्वयन बेहतर ढंग से नहीं हो रहा है। खुलासा करते हैं कि घाघड़ा पंचायत के मुखिया सूर्यकांत पासवान के शह पर रोजगार सेवक मणिकांत पहलवान बन गया है। मनरेगा में काम करने वाले श्रमिकों को काम करके रोजगार सेवक मणिकांत मजदूरी नहीं देते हैं। मजे की बात है कि घर में लाखपति मणिकांत लाखपति बन गए हैं। महादलितों का रोजगार कार्ड रोजगार सेवक हथिया लिए हैं। मनमौजी ढंग से मनरेगा कर्मियों के बैंक खाता में 3 से 4 हजार टपका देता है। इसके खिलाफ प्रशासन से शिकायत करने से कार्रवाई नहीं होती है। अंत में कहते हैं कि काॅलेज के अभाव में बेगूसराय के विघार्थियों को जिला बदर करके समस्तीपुर जिले में जाकर पढ़ना पड़ता है।
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