पहले से पता था प्रियंका सामने नहीं आएंगी। बस यह तो प्रियंका की सियासी पॉश्यचरिंग थी- भाई राहुल कहेंगे तो बनारस से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ लड़ लेंगी। सच तो यह है कि देश का फर्स्ट पोलिटिकल फैमिली जीत की सुनिश्चितता के बाद ही चुनाव मैदान में उतरता है। उल्टे पड़े दांव के कारण चुनाव हार जाए यह अलग बात है। चुनाव में हार की स्थिति से बचने के लिए ही सोनिया गांधी ने 1999 में अमेठी के साथ कर्नाटक के बेल्लारी से चुनाव लड़ा था। राहुल गांधी के राजनीतिक सफर की सुनिश्चितता के लिए वह खुद रायबरेली शिफ्ट हुईं और अमेठी की सुनिश्चित सीट से राहुल को चुनाव लडवाया। इस बार राहुल अमेठी में घिरे हैं, तो अमेठी के साथ केरल के वायनाड का रुख किया है। ऐसे में कांग्रेस के भविष्य की कद्दावर नेता प्रियंका गांधी के सियासी सफर की शुरुआत वाराणसी से किया जाना महफूज नहीं समझा गया। प्रियंका की यह चाहत कांग्रेस अध्यक्ष भाई राहुल गांधी को पसंद नहीं आया। जीत की सुनिश्चितता के बिना राहुल गांधी ने बहन को चुनाव नहीं लड़वाकर ठीक ही किया है। यह दीगर है कि एकबार फिर से गांधी फैमिली में बेटी से ज्यादा बेटे राहुल को तवज्जो देने की बात चर्चा में है। आप यह कह सकते हैं कि पूर्वी उत्तर प्रदेश के महासचिव प्रियंका की अपने इलाके में ही नहीं चली।
- आलोक कुमार -
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