मेरी नयी पत्नी पूर्णांगिनी को सख्त चिढ़ है, चांद की उपमा से
ऐसा ही नहीं कि अपने सौत के नाम से जलती है
वरूण, बौद्धिक होने के हर अहसास में पलती है।
उसे पता चल चुका है कि चांद,
चंद मृत पहाड़ों का, लाल मिट्टी में फटी दरारों का,
उधार की रौशनी में चमकता उपग्रह है,
अत: उसमें सौंदर्य की खोज महज पूर्वाग्रह है।
वह स्वयं को संघर्षों की थिसिस मानती है,
सत्य को बस बुद्धि से परखना जानती है।
स्वभाव से वह प्रयोगवादी है, कहती अपने को प्रगतिवादी है।
किंतु मुझे आज भी कोमल, कलाधर खींचता है,
गलते सौंदर्य से मंद मंद सींचता है।
निमीलित नयन मैं गुरूत्व मुक्त हो जाता हूं,
मलय के विहाग-राग में अपने व्यक्ति को विश्वरूप पाता हूं।
ऐसा ही नहीं कि अपने सौत के नाम से जलती है
वरूण, बौद्धिक होने के हर अहसास में पलती है।
उसे पता चल चुका है कि चांद,
चंद मृत पहाड़ों का, लाल मिट्टी में फटी दरारों का,
उधार की रौशनी में चमकता उपग्रह है,
अत: उसमें सौंदर्य की खोज महज पूर्वाग्रह है।
वह स्वयं को संघर्षों की थिसिस मानती है,
सत्य को बस बुद्धि से परखना जानती है।
स्वभाव से वह प्रयोगवादी है, कहती अपने को प्रगतिवादी है।
किंतु मुझे आज भी कोमल, कलाधर खींचता है,
गलते सौंदर्य से मंद मंद सींचता है।
निमीलित नयन मैं गुरूत्व मुक्त हो जाता हूं,
मलय के विहाग-राग में अपने व्यक्ति को विश्वरूप पाता हूं।
संजय कुमार झा की कलम से...
सीनियर वाइस प्रेसिडेंट (एचआर),
महिंद्रा फर्स्ट च्वाइस व्हील्स, मुंबई।
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