विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत का 17 वाँ चुनाव शुरू हो चुका है । नेताओं का अपने अपने क्षेत्रों के दौरे की दौड़ चल रही है । नेता जानते हैं कि उनके पास समय सीमित है और सत्ता क्षणभंगुर। आज नेताओं की नैतिकता जितनी गिरी है इससे पहले कभी देखने को नहीं मिला।देश में हर तरफ अराजकता फैली हुई है । हमारी संस्कृति हमारे इतिहास से खिलवाड़ करने का हक़ इन नेताओं को किसने दी है ? हमने, आवाम ने ही इनका मनोबल बढ़ाया है । हमारी सोच अलग हो सकती पर यहाँ तो आर-पार की स्थिति है । नैतिकता तो जैसे ख़त्म सी हो गई है । देश को बांटने में कोई कसर नहीं छोड़ा है नेताओं ने। सत्ता के लिए इन्होंने हमारे इतिहास की भी धज्जियाँ उड़ा दी है । जिन व्यक्तित्व को हम अपना आदर्श मानते हैं जिनके बल पर आज भी हमारे देश का पताका फहरा रहा है उनकी भी बेइज्जती करने में इन नेताओं ने कोई कसर नहीं छोड़ी है ।
देश के शीर्ष नेता के जनता मनलुभावन भाषण को सुनकर ऐसा प्रतीत होता है मानो वोट के लिए वह किसी भी हद्द तक गिर सकते हैं। एक दूसरे को देश द्रोही कहने से जरा भी नहीं हिचकते। एक समय था जब नेता चाहे पक्ष के हों या विपक्ष के जब भी भाषण देते सुनने का मन होता था पर आज भाषण सुनकर मन दुखी हो जाता, शर्म आती है कि हम उस देश के नागरिक हैं जहाँ के नेता ने नैतिकता को ताक पर रख दी है । जब देश के प्रधान की ही भाषा भड़काऊ और सत्ता लोलुप्तापूर्ण हो तो बाकी नेताओं से क्या उम्मीद। विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र ढहने की कगार पर है । इसे मात्र हम आप ही बचा सकते हैं। यदि आज हम सोच समझकर वोट नहीं दिए तो हमारी आने वाली पीढ़ी हमे कभी माफ़ नहीं करेगी ।
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