पूर्णिया : वर्षों अनुसंधान के बाद राष्ट्रीय कृषि खाद्य जैव प्रौद्योगिकी संस्थान ने विकसित किया काला गेहूं - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 15 मई 2019

पूर्णिया : वर्षों अनुसंधान के बाद राष्ट्रीय कृषि खाद्य जैव प्रौद्योगिकी संस्थान ने विकसित किया काला गेहूं

  • - काला गेहूं में एंथोसायमिन, प्रोटीन, आहार फाइबर, विटामिन और खनिजों की है प्रचूरता 
  • - डायबिटिज के मरीजों के लिए बेहद कारगर, जिले के जलालगढ़ प्रखंड में पहली बार हुई काला गेहूं की बुआई 

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कुमार गौरव । पूर्णिया : सात वर्षों के अनुसंधान के बाद राष्ट्रीय कृषि खाद्य जैव प्रौद्योगिकी संस्थान (एनएबीआई) द्वारा काला गेहूं विकसित किया गया है। जिसकी खेती जिले के जलालगढ़ में अबकी बार की गई है और इसके बेहतर परिणाम भी सामने आए हैं। काला गेहूं की बुआई से पूर्व किसानों के मार्गदर्शन के लिए कृषि विज्ञान केंद्र जलालगढ़ की प्रधान सीमा कुमारी, वैज्ञानिक डॉ अभिषेक प्रताप सिंह व महाराष्ट्र राज्य बीज निगम के पदाधिकारी आनंद कुमार सिंह का अहम योगदान रहा। उनके निर्देशन में जलालगढ़ के किसान ने काला गेहूं की खेती कर नई परंपरा की शुरूआत की है। बता दें कि यह रंगीन गेहूं सेहत के लिहाज से भी काफी बेहतर है। जिसमें एंथोसायमिन, प्रोटीन, आहार फाइबर, विटामिन और खनिजों की प्रचूरता है। आनंद कुमार सिंह ने बताया कि प्रयोगशाला में चूहों पर किए गए अनुसंधान में रक्त शर्करा ग्लूकोस्टेसिस को विनियमित करने, इंसुलिन प्रतिरोध के प्रबंधन, सीरम काेलेस्ट्रोल को कम करने, आहार प्रेरित मोटापे के मॉडल में वसा जमाव को रोकने में इसके निवारक प्रभाव सामने आए हैं। यही नहीं चूहे में तनाव प्रेरित एंटी आॅक्सीडेंट एंजाइम पर निवारक प्रभाव और डायबिटीज के मरीजों में काला गेहूं के हाइपोग्लाइसेमिक प्रभाव को भी दिखाया गया है। बता दें कि कोसी और सीमांचल में पहली बार 10 एकड़ खेत में किसान सह व्यापारी विश्वनाथ अग्रवाल ने काला गेहूं की खेती की है। आनंद कुमार सिंह कहते हैं कि चूंकि ट्रायल तौर पर काला गेहूं की खेती की गई थी इसलिए 14 नवंबर को बुआई नहीं हुई और इसमें एक माह का विलंब हो गया। लेकिन इसके बाद भी 12 क्विंटल प्रति एकड़ काला गेहूं की पैदावार हुई है जो कि उम्मीद से 3-5 क्विंटल कम है। लेकिन यदि किसान ससमय इस गेहूं की बुअाई करे तो बेशक इसकी बंपर पैदावार होगी। उन्होंने बताया कि औषधीय गुणों से भरपूर होने के कारण फिलहाल बाजार में इसकी कीमत सामान्य गेहूं की तुलना में काफी अधिक है। उन्होंने कहा कि बड़े शहर व विदेशों में काला गेहूं प्रति क्विंटल 3000 से 3500 रूपए प्रति क्विंटल की दर से बेचा जा रहा है। यदि किसान इस गेहूं की खेती बड़े पैमाने पर करे तो बेशक वे सामान्य गेहूं की तुलना में अधिक मुनाफा कमा सकते हैं। 

...विचार गोष्ठी में इसके औषधीय गुणों पर होगी चर्चा : 
श्री सिंह ने बताया कि काला गेहूं का उत्पादन और औषधीय मूल्य पर 13 मई को एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया जाएगा। उन्होंने बताया कि नेशनल एग्री बायोटेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट के सहयोग से पूर्णिया के जलालगढ़ में एक किसान की जमीन पर इस काले गेहूं की सफलतापूर्वक खेती की गई। हालांकि इस बुआई में थोड़ा विलंब हुआ लेकिन उत्पादन बेहतर रहा। उन्होंने बताया कि काले गेहू की खेती और सामान्य गेहूं की खेती में कुछ भी अंतर नहीं है। वहीं काला गेहूं औषधीय गुणों से परिपूर्ण है। जो हृदय रोग और डायबिटीज के मरीजों के लिए बेहद लाभदायक है। इसकी खेती की संभावना को लेकर सीमांचल में पहली बार यह प्रयोग किया गया है जो कि सफल रहा। 

...बड़े बड़े देश व शहरों में प्रचलन में है काला गेहूं के उत्पाद : 
- काला गेहूं से तैयार उत्पाद वयस्कों के लिए भी काफी लाभप्रद 
- काला गेहूं की चपाती, पराठा, नान, थेला, रोटी, पूड़ी, ब्रेड, बिस्कुट, केक, पिज्जा बेस, नूडल्स, बर्गर, कुल्चा, व्हीट पफ्स, रोस्टेड स्नैक्स, दलिया समेत कई अन्य उत्पाद सिंगापुर व चीन के बाजार में धड़ल्ले से बिक रहे 
- एंथोसायनिन्स एंटी ऑक्सीडेंट से भरपूर होने के कारण मुंबई के चुनिंदा फूड स्टोर पर काला गेहूं के उत्पाद खूब पसंद किए जा रहे 
- पोषक तत्वों की आवश्यकताओं और भारतीयों के लिए आरडीए (2010) के अनुसार एंथोकायनिन एंटी ऑक्सीडेंट जो ऑक्सीडेटिव क्षति को रोकते हैं और उम्र बढ़ने में देरी करने, कैंसर, हृदय रोग, डायबिटीज और अन्य विकारों को कम करने में मददगार
- काला गेहूं के चोकर में एंथोसायनिन, आहार फाइबर, आयरन और जिंक की मात्रा होने से इसका डिमांड देश और विदेश में काफी है।  

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