निक्कू कुमार झा । चंपानगर : खुदा के इबादत करने की कोई उम्र नहीं होती। यह साबित कर दिया है रमजान के पाक महीने में बड़े बुजुर्गों के साथ बच्चों ने भी रोजा रखकर। एक ओर जहां गर्मी में प्यास और भूख को बड़े बुजुर्ग सहन नहीं कर पाते हैं और चल रही गर्म हवा के थपेड़ों से और लोगों का जीना मुहाल हो गया है। इसके बावजूद भी बच्चें भूखे प्यासे करीब 16 घंटे तक रोजा रख रहे हैं। मई माह की तपती गर्मी भी उनके इरादे को डिगाने में नाकाम है। नन्हें रोजेदारों के चट्टानी जज्बा का ही नतीजा है कि बिना किसी परेशानी के अपना रोजा पूरा कर रहे हैं। बच्चों के इस जज्बे के लिए घर के दीनी माहौल की बड़ी भूमिका है। ऐसे रोजेदार बड़े ही अकीदत इमान और जज्बे के साथ रोजा रख रहे हैं। चंपानगर के विभिन्न क्षेत्रों में बच्चे रोजा रखकर अल्लाह की इबादत करने में लगे हुए हैं। कई नन्हें रोजेदार दिनभर की रोजा के बाद इफ्तार करते दिखे। मुस्लिम इलाकों में रमजान की रौनक घर से बाजार तक देखी जा रही है। हर तरफ अल्लाह की इबादत के लिए धार्मिक किताबें और टोपियां खरीदी जा रही हैं।
...क्या कहते हैं नन्हें रोजेदार :
इस रमजान माह में रोजा रखना शुरू किया है। सुबह सहरी के बाद नमाज व कुरआन शरीफ पढ़ने में दिन गुजर जाता है। रोजे रखने से अल्लाह खुश होकर बरकत व खुशहाली अता फरमाते हैं। : मो आउस, 08 वर्ष
तीन साल से रमजान के पाक माह में रोजा रख रहा हूं। दिन में नमाज अदा करने के साथ कुरआन शरीफ पढ़ता हूं। रोजे रखने से दिल को सुकून की अनुभूति होती है। : मो अफाक, 10 वर्ष
रमजान पाक महीना है। 2 वर्ष से रोजा रख रहा हूं। शाम को इफ्तार कर नमाज अदा करने के बाद रोजा खोलता हूं। : मो साहिल, 12 वर्ष
पांच वर्ष से रोजा रख रहा हूं। सुबह स्कूल भी जाना पड़ता है इसके बाद दिन में नमाज अदा करने के साथ खुदा से अमन, चैन, भाईचारे व खुशहाली की दुआ करता हूं। रोजे रखने से खुशी मिलती है। : मो मुबारक, 13 वर्ष
9 वर्ष से रोजा रख रहा हूं। घर का काम करने के साथ साथ बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ाता हूं। रोजा रखने से दिल को सुकून महसूस होती है। : मो शमशाद आलम, 16 वर्ष
...खुद पर संयम रखने का महीना है रमजान :
रमजान के महीने को नेकियों आत्मनियंत्रण और खुद पर संयम रखने का महीना माना जाता है। मान्यता है कि इस दौरान रोजा रख भूखे रहने से दुनिया भर के गरीब लोगों की भूख और दर्द को समझा जाता है। क्योंकि तेजी से आगे बढ़ते दौर में लोग नेकी और दूसरों के दुख दर्द को भूलते जा रहे हैं। रमजान में इसी दर्द को महसूस किया जाता हैै। रोजे को कान, आंख, नाक और जुबान का भी रोजा माना जाता है। रोजे के दौरान न बुरा सुना जाता है, न बुरा देखा जाता है और न ही बुरा महसूस किया जाता है। न ही बुरा बोला जाता है। यह पूरा महीना आत्मनियंत्रण और खुद पर संयम रखने का महीना होता है। : मो असलम, मस्जिद इमाम।
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