बिहार : मृदा व जल संरक्षण में खस है खास, प्रशासनिक उदासीनता से इसकी खेती से दूर हो रहे किसान - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 15 मई 2019

बिहार : मृदा व जल संरक्षण में खस है खास, प्रशासनिक उदासीनता से इसकी खेती से दूर हो रहे किसान

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कुमार गौरव । पूर्णिया : भले ही आप एयरकंडीशंड घरों में रहते हों लेकिन गर्मियों में खस की टट्टियों की याद जरूर आती होगी। इस औषधीय वनस्‍पति की उपयोगिता आपके कमरों के तापमान को नियंत्रित रखने में ही नहीं, पर्यावरण को अनुकूलित रखने में भी है। मृदा व जल संरक्षण तथा जल शुद्धिकरण में इसकी उपयोगिता को देखते हुए दुनिया भर में इसके प्रति लोगों की दिलचस्‍पी तेजी से बढ़ी है। जिले के जलालगढ़ प्रखंड अंतर्गत दनसार पंचायत के किसान जितेंद्र कुशवाहा पिछले दस वर्षों से खस समेत सतावर, सर्पगंधा, लेमन ग्रास जैसे औषधीय पौधों की फसल तैयार कर रहे हैं। जितेंद्र बताते हैं कि फिलहाल मधेपुरा जिला में करीब 100 से अधिक किसान खस की खेती बड़े पैमाने पर कर रहे हैं। हालांकि प्रचार प्रसार के अभाव में खस के पौधे का डिमांड जरूर घटा है लेकिन खस की इतनी खासियत है कि इसे भारत भूमि को प्रकृति का अनुपम उपहार माना जा सकता है। खस (वेटीवर) एक झाड़ीनुमा घास है। उन्होंने कहा कि खस घास की ऊपर की पत्तियों को काट दिया जाता है और नीचे की जड़ से खस के परदे तैयार किए जाते हैं। यही नहीं इस घास के काफी न्यूट्रिशनल वैल्यू भी हैं। इससे बने उत्पादों में पोषक तत्वों की भरमार होती है। यदि प्रशासनिक मदद मिले तो बेशक जिले के किसानों की आमद बढ़ सकती है। 

...पर्यावरण का संरक्षण जरूरी : 
पर्यावरण विशेषज्ञ पतंजलि झा बताते हैं कि हमें पिछलग्गू होने का तमगा हासिल है। उन्होंने बताया कि देश में उगने वाली इस घास की ओर दुनिया का ध्‍यान 1987 में विश्‍व बैंक के दो कृषि वैज्ञानिकों के जरिए गया। विश्‍व बैंक के कृषि वैज्ञानिक रिचर्ड ग्रिमशॉ और जॉन ग्रीनफिल्‍ड मृदा क्षरण पर रोक के उपाय की तलाश में थे। इसी दौरान उनका भारत में आना हुआ और उन्‍होंने कर्नाटक के एक गांव में देखा कि वहां के किसान सदियों से मृदा क्षरण पर नियंत्रण के लिए खस (वेटीवर) उगाते आए हैं। उन्‍होंने किसानों से ही जाना कि इसकी वजह से उनके गांवों में जल संरक्षण भी होता था तथा कुओं को जलस्‍तर ऊपर बना रहता था। उसके बाद से विश्‍व बैंक के प्रयासों से दुनिया भर में खस को पर्यावरण संरक्षण के उपयोगी साधन के रूप में काफी लोकप्रियता मिली। हालांकि भारतीय कृषि व पर्यावरण विभागों व इनसे संबद्ध वैज्ञानिकों ने इसमें खासी रुचि नहीं दिखाई। नतीजा यह है कि देश में लोकप्रियता की बात तो दूर, इस पौधे का चलन कम होने लगा है। उन्होंने कहा कि खस की खेती की दिशा में बड़ी कार्ययोजना तैयार किए जाने की जरूरत है क्योंकि किसी भी देश की अर्थव्यवस्था कृषि व पर्यावरण के रास्ते से होकर गुजरती है। 

...मृदा व जल संरक्षण में सहायक : 
कृषि विशेषज्ञ सुनील कुमार झा बताते हैं कि पर्यावरण के खतरों से निबटने में खस का पौधा एकदम खास है। बहुउपयोगी पौधे के रूप में आज दुनिया के विभिन्‍न देशों में इस पौधे के प्रति लोगों की दिलचस्‍पी काफी बढ़ रही है। मृदा संरक्षण और जल संरक्षण में उपयोगी होने के साथ यह दूषित जल को भी शुद्ध करता है। जाहिर है कि यदि इसका प्रचार प्रसार हो तो यह भूमि की उर्वरता और जलस्‍तर बरकरार रखने के लिए किसानों के हाथ में एक सस्‍ता साधन साबित हो सकता है। इससे कई हस्‍तशिल्‍प उत्‍पाद भी तैयार होते हैं और यह ग्रामीण लोगों के जीवन स्‍तर में सुधार का माध्‍यम बन सकता है। 

...एसी के कारण चलन हुआ कम : 
कुछ वर्षों पूर्व देश में खस की टट्टियां काफी लोकप्रिय थी। लू के थपेड़ों से बचने के लिए दरवाजे और खिड़कियों पर खस के परदे लगाए जाते थे। ये सुख सुविधा और वैभव की निशानी हुआ करते थे। लेकिन आधुनिकता की अंधी दौड़ और पानी की बढ़ती किल्‍लत की वजह से खस के परदों का चलन समाप्‍त हो गया है। लोग कूलर भी खरीदना नहीं चाहते। एयर कूलर में खस की टट्टियां लगती हैं जो पानी में भींगकर उसके पंखे की हवा को ठंडा कर देती हैं। लेकिन अब लोग कूलर की जगह एसी खरीदना ज्‍यादा पसंद करते हैं। वैसे खस का इस्‍तेमाल सिर्फ ठंडक के लिए ही नहीं होता है। आयुर्वेद में इसे औषधि के रूप में भी इसका इस्‍तेमाल होता है। इसके अलावा इससे तेल बनता है और इत्र जैसी खुशबुदार चीजों में भी इसका उपयोग होता है।

...कैसे होती है खस की खेती : 
- खस के पौधे करीब 2 मीटर ऊंचे होते हैं। इनके पत्ते 1-2 फीट लंबे, 3 इंच तक चौड़े होते हैं। खस की पीली भूरी जड़ जमीन में 2 फीट गहराई तक जाती है। हर तरह की मिट्टी में पैदा हो जाने वाली इस घास की बुआई मई से अगस्त तक होती है 
- इसे बोने के लिए घास के जड़ सहित उखाड़े गए पौधे प्रयोग किए जाते हैं। वर्षा के बाद गहरी जुताई करके एक एक जड़ 50 सेंटीमीटर के अंतर पर 15 सेंटीमीटर ऊंची, 50 सेंटीमीटर चौड़ी क्यारियों में बोया जाता है
- बोने के एक महीने बाद कम्पोस्ट खाद, राख आदि डालने से अच्छी वृद्धि होती है। साल भर बाद से घास की कटाई करके बेचा जा सकता है। जड़ों से तेल निकालने के लिए खुदाई का उपयुक्त समय बुआई के 15-18 महीने बाद का होता है
- खस के पौधे एक बार लगा देने पर 5 साल तक दोबारा बोना नहीं पड़ता है। खस का एक पौधा भी काफी जगह में फैल जाता है। जड़ के पास यह करीब 1 मीटर व्यास तक फैल सकता है। एक हेक्टेयर क्षेत्र में बोई फसल से करीब 4 से 6 क्विंटल जड़ें प्राप्त होती हैं
- खस की खेती में बारिश की बहुत जरुरत नहीं होती है। 1-2 मिमी बारिश भी इसके लिए पर्याप्त है। बारिश अगर ज्यादा हो तो भी कोई नुकसान नहीं। 10-15 दिन पानी से भरे खेत में भी खस की फसल गलती या खराब नहीं होती है। बाढ़ ग्रस्त हो या सूखाग्रस्त दोनों ही क्षेत्रों के लिए यह एक एकदम उपयुक्त फसल है
- संभव हो तो बारिश के मौसम के अलावा 15-20 दिनों में सिंचाई कर देनी चाहिए। इससे जड़ों में तेल की मात्रा बढ़ जाती है। बहुत ठंडी या गर्मी का भी खस की फसल पर दुष्प्रभाव नहीं पड़ता। खस की खेती अन्य फसलों के साथ भी की जा सकती है 
- खस की फसल को स्टोर रखना भी आसान है क्योंकि ये सड़ती गलती नहीं है और न ही खराब होती है।

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