पूर्णिया : सरकारी नीतियों का मजदूरों को नहीं मिल रहा लाभ - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 3 मई 2019

पूर्णिया : सरकारी नीतियों का मजदूरों को नहीं मिल रहा लाभ

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पूर्णिया (निक्कू कुमार झा)  : चंपानगर में मजदूरों की दिशा और दशा सुधारने का सरकार दावा करती है। परिवार का पालन और दो वक्त की रोटी के लिए सुबह को आकर चौक पर बैठने वाले मजदूरों को योजनाओं का लाभ नहीं मिलता दिख रहा है। सुबह किसी को काम मिलता है तो कोई दिनभर काम मिलने का इंतजार करके घर लौट जाता है। मजदूरों के पंजीकरण के बाद भी श्रम विभाग की योजनाओं का जमीनी स्तर पर लाभ मिलता नहीं दिख रहा है। 01 मई को मजदूर दिवस मनाया गया। वहीं अगली सुबह से ही चंपानगर के दुर्गा मंदिर के समीप बड़ी संख्या में मजदूर बैठे हुए थे जो काम की आस में लोगों के आने का इंतजार कर रहे थे। जिसके बाद मजदूरों से पूछा गया कि उन्हें कितने दिन काम मिलता है तो बीरबल ठाकुर ने बताया कि माह में औसतन 15 दिन ही काम मिलता है। जबकि काम की आस में वे चौक पर पूरे माह आते हैं। कभी कभी कई कई दिन मजदूरी नहीं मिलती है परिवार का पालन करना काफी मुश्किल होता है। वहीं दूसरों से उधार लेकर परिवार का पालन करते हैं। जो कमाते हैं वह उधार में जाता है। ऐसे में काफी समस्याएं हैं। चौक पर खड़े मजदूरों का कहना था कि श्रम विभाग द्वारा कुछ मजदूरों का पंजीकरण कराया गया है। जबकि काफी संख्या में अभी भी ऐसे मजदूर हैं जिनका पंजीकरण नहीं है। पंजीकरण कराने और न कराने वाले किसी को भी श्रम विभाग की योजनाओं का लाभ मिलता नहीं दिख रहा है। मजदूरों ने बताया कि वह प्रत्येक चुनाव में वोट डालकर यही आस करते हैं कि उनकी भी स्थिति में सुधार आएगा। लेकिन 5 नहीं 10 नहीं पूरे 20 से 30 वर्ष हो चुके हैं उनकी स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है। परिवार का पालन काफी मुश्किलों से करना पड़ता है। जबकि हर चुनाव में वोट देते हैं ताकि उनकी स्थिति सुधर सके लेकिन उनकी स्थिति ऐसी ही है। कभी कभी ऐसा भी होता है कि उन्हें एक एक सप्ताह तक काम नहीं मिलता है। जबकि घर से प्रत्येक दिन काम की आस में आते हैं। आने वाली सरकार और राजनीतिक दलों से उम्मीद हैं कि मजदूरों की मजदूरी के साथ साथ कम से कम माह में 20 दिन काम का प्रावधान करें। वहीं परन ठाकुर, सुमन ऋषि, बेचन ऋषि, रंजीत यादव मजदूरों ने बताया कि काम की आस में आते हैं। यदि देर हो जाती है तो काम नहीं मिलता है पूरे दिन काम की आस बैठते हैं और काम मिलता है तो करते हैं यदि नहीं तो निराश होकर घर लौट जाते हैं। प्रत्येक चुनाव में वोट भी देते हैं। ताकि सरकार उनके हितों के लिए काम कर सके। लेकिन सरकार मजदूरों के लिए योजना तो चलाती है और जमीनी स्तर पर साकार होती नहीं दिख रही है।

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