हाल ही में चौंसठ कश्मीरी पंडितों ने अनुच्छेद 370 हटाये जाने के विरोध में एक वक्तव्य जारी किया है। सवाल यह नहीं है कि ऐसा बयान उन्होंने क्यों दिया?माना कि अभिव्यक्ति की आज़ादी सब को है।मगर सवाल यह है कि अनुच्छेद 370 हटाये जाने के विरुद्ध कश्मीर के अलगाववादी नेताओं के साथ-साथ हमारा पड़ौसी मुल्क भी खुलमखुला इस अनुच्छेद का विरोध न केवल अपने मुल्क में बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी कर रहा है जहाँ उसे सफलता बिल्कुल भी नहीं मिल रही।ऐसे में यह निष्कर्ष स्वतः निकलता है कि अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के विरोध में पकिस्तान की तर्ज़ पर बयानबाज़ी करने वाले इन पण्डितों के कुछ अपने निहित स्वार्थ अथवा प्रलोभनजनित महत्वाकांक्षाएं तो नहीं हैं? या फिर कहीं ऐसा तो नहीं कि ये महानुभाव किसी ‘इशारे’ के तहत ऐसा कर रहे हों! दरअसल,ये वे लोग हैं जो हर-हमेशा लाभ के पदों पर रहे हैं और पण्डितों के विस्थापन का दंश जिन्होंने कभी झेला नहीं।कश्मीर से दूर बड़े शहरों में ही हमेशा रहे और पूर्व सरकारों के समर्थक रहे। विस्थापित पण्डितों से हमदर्दी रखने वाले देशभक्त कश्मीरी और गैर-कश्मीरी दोनों इन के इस व्यवहार पर आश्चर्य-जनित चिंता प्रकट कर रहे हैं।जहां पूरा देश और कई सारे बाहरी मुल्क भी अनुच्छेद 370 को हटाए जाने की तारीफ कर रहे हैं,वहां ये हैं कि इनको यह बात ठीक नहीं लग रही।‘कश्मीरी समिति’,’आल कश्मीरी पंडित समाज’ और 'पनुन कश्मीर' जैसी संस्थाओं को इन 'भद्रजनों' की कड़े शब्दों में भर्त्सना करते हुए एक निन्दा-प्रस्ताव पारित करना चाहिए। सरकार चाहे तो इन ‘भद्रजनों’ के बयान की जांच बारीकी से करवाए ताकि यह पता लग जाय कि,वास्तव में,ये लोग विरोध विरोध के लिए कर रहे हैं या इनके वक्तव्य में कोई तर्क है?
(डॉ० शिबन कृष्ण रैणा)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें