“बाबा, घर में सभी सोये रहते हैं फिर बूढ़े होकर आप सबेरे-सबेरे क्यूँ उठ जाते हो ? ” पोते ने हँसते हुए बाबा से पूछा |
“ अरे ...सबेरे उठने का बहुत फायदा है | उगते सूर्य को देखने से आँखों की रोशनी बढती है | आँखों पर चश्मा नहीं चढ़ता , जोर से भूख लगती है और मल विसर्जन भी सही से होता है। ”
“अच्छा...हूँ.. अब समझा, इसलिए आप बिना चश्मा लगाये पेपर पढ़ लेते हो |”
“और, तुम, लेट से उठते हो इसलिए देखो, अपने आँखों को, दस साल में ही चश्मा चढ़ गया ! तुम्हें कभी जोर से भूख भी नहीं लगती ।“
“हाँ... सो तो है , पर क्या करें? पोता मायूस होकर बोला ।
“यदि तुम उदय से पहले उठकर, मेरे साथ पार्क में घास पर नंगे पाँव चलोगे और सूर्य की लालिमा को कुछ देर तक निहारोगे तो तुम्हारा चश्मा जरूर उतर जाएगा |”
“पक्का ...?” अचरज भरे स्वर से पोता बोलते हुए बाबा के समीप जाकर बैठ गया ।
“ हाँ ..पक्का |” बाबा और पोता दोनों जोर से हँसने लगे ।
“ ठीक है बाबा , कल से आप मुझे भी सबेरे उठा दीजिएगा |”
“ओह! फिर तो बहुत मजा आएगा , साथ-साथ अरुणोदय को निहारेंगे | चलो, अब रात का खाना खा लेते हैं |”
“ रात का खाना ? अभी तो शाम के आठ ही बजे हैं |”
“ अरे ...तुझको कैसे समझाऊँ ! जब तेरे माता-पिता को ही दिनचर्या से कोई मतलब ही नहीं है ! सुन ध्यान से, सूर्यास्त हुए दो घंटे हो गये , मैं जैविक घड़ी के अनुसार ही अपना दिनचर्या रखता हूँ |
आजकल के लोगों जैसा नहीं, जो दिन-रात में फर्क समझना भूल गए ! न जाने मोबाइल पर क्या दो बजे रात तक गिटपीट करते रहते हैं ! इसलिए मोडर्न बाबू को जिंदगी भर डाक्टर का चक्कर लगाना पड़ता है ! " भनभनाते हुए बाबा पोते के साथ रसोई की ओर चल दिए | इतना सुनते ही मोडर्न संस्कार, पुरातन संस्कार को निहारने लगी ।
------मिन्नी मिश्रा /पटना
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