पूर्णिया : संस्कृत हमसे काफी नजदीक पर संस्कृत से हम कितने नजदीक ? - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 19 अगस्त 2019

पूर्णिया : संस्कृत हमसे काफी नजदीक पर संस्कृत से हम कितने नजदीक ?

- सावन पूर्णिमा पर संस्कृत दिवस पर संस्कृत की संस्कृति पर विविध चर्चा
sanskrit-and-sanskriti
पूर्णिया (आर्यावर्त संवाददाता) : पूर्णिया के संस्कृत प्रेमी पिछले कुछ वर्षों से पारंपरिक मान्यता के तहत सावन पूर्णिमा को संस्कृत दिवस का आयोजन नियमित रूप से कर रहे हैं। सावन पूर्णिमा को ही संस्कृत दिवस मनाने का प्राचीन काल से मान्यता है और इस बार भी सावन पूर्णिमा को स्वरम म्यूजिक एकेडमी में संस्कृत दिवस आयोजित हुआ। गोष्ठी में चर्चा के दौरान सहभागिता कर रहे लोगों ने कहा कि संस्कृत भाषा की जानकारी हर कोई को थोड़ा बहुत रखना ही चाहिए। संस्कृत को ले स्कूल में पढ़ाने वाले शिक्षक इस विषय को गंभीरता से बच्चों को पढ़ाएं। केवल संस्कृत पढ़ाने का कोरम पूरा न करें। संस्कृत को लेकर स्कूल काॅलेजों में शोध और अध्ययन करवाने को ले सरकार भी अपने स्तर से गंभीर पहल करें। संस्कृत संगोष्ठी में संस्कृत भाषा के जिम्मेदार व जवाबदेह लोगों से अपील की गई कि वे इसे देववाणी की मान्यताओं के लपेटे से अलग करें और सबके के बीच ले जाएं। साथ ही जानकार लोग संस्कृत भाषा की उपयोगिता को जन जन तक पहुंचाने के लिए संस्कृतप्रेमियों द्वारा जनजागरण के लिए प्रयास करने चाहिए। संस्कृत में दी जाने वाली शिक्षा धरातल पर  सुनिश्चित की जाए। गोष्ठी की शुरूआत जगतारिणी स्कूल के बच्चों के द्वारा संस्कृत में श्लोक, सूक्तियों का पाठ, सम्भाषण से की गई। स्वरम म्यूजिक एकेडमी की बच्चियों के द्वारा संस्कृत में शिव वंदना के भाव पर नृत्य की प्रस्तुति दी गई। गोष्ठी में विषय के वक्ता चंद्रशेखर मिश्र ने कहा कि भारतीय संस्कृत संस्थान सहित कई राष्ट्रीय जगहों में हर साल संस्कृत दिवस का आयोजन किया जाता है। संस्कृत की पुरानी मान्यताएं रहीं पर जनमानस में संस्कृत का रोना रोया जाए तब व्यवस्था के प्रति दयनीय भाव उपजता है। संस्कृत भाषा की समृद्धि पर हम गंभीर नहीं हैं और इसे लेकर समसमायिकता का घोर अभाव है। इसका अतीत महान है, भविष्य महान है, जिसे संभालने की चुनौती ही वर्तमान है। जाहिर है हम समयोचित भाषा ही बोल देते हैं। संस्कृत भाषा के समक्ष दबाव उत्पन्न हो जाता है। संस्कृत से लोग पदाधिकारी बन गए लेकिन वे संस्कृति व संस्कार की रक्षा करने में वे विफल साबित हुए। हिंदी, संस्कृत की उतराधिकारिणी भाषा है। संगोष्ठी में मौजूद संस्कृत प्रेमी वक्ताओं ने कहा कि संस्कृत के प्रति समर्पण का होना अति आवश्यक है। मुख्य अतिथि सदर विधायक विजय खेमका ने कहा कि संस्कृत समस्त भाषा की जननी है। सभी भाषाओं का उद्गम संस्कृत से ही संभव हुआ है। संस्कृत हमसे काफी नजदीक है सवाल है संस्कृत से हम कितने नजदीक हैं। सरकार भी संस्कृत भाषा के गिरते स्तर को लेकर काफी चिंतित है। संस्कृत भाषा को प्राथमिक स्तर पर लाने के लिए समय समय पर एकत्रित होकर चिंतन करने की जरूरत है। संस्कृत के धर्मग्रंथों में अपार ज्ञान का भंडार मौजूद है। विधायक ने चिंता प्रकट करते हुए कहा कि बिहार में 2017 में संस्कृत की मध्यमा में 35 हजार परीक्षार्थी थे पर यह आंकड़ा घटकर 2019 में 12 हजार पर आ पहुंचा है। उन्होंने कहा कि देश हमें बहुत कुछ देता है केवल भाषा ही नहीं। इस मौके पर स्वरम म्यूजिक एकेडमी की संचालिका मनीषा मिश्रा के अलावा गायिका नीतू मिश्रा, शिक्षक डीके झा, आशुतोष झा, सरिता झा, सामाजिक कार्यकर्ता अरुणेन्दु  झा, इंदेश्वरी सिंह, डॉ नीलमणि सहित दर्जनों लोग मौजूद थे। गोष्ठी का संचालन और कार्यक्रम का संयोजन राजेंद्र पाठक ने किया।

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