पूर्णिया : बांझपन पर एक दिवसीय सेमिनार का आयोजन, विशेषज्ञों ने दी नई जानकारी - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 8 सितंबर 2019

पूर्णिया : बांझपन पर एक दिवसीय सेमिनार का आयोजन, विशेषज्ञों ने दी नई जानकारी

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पूर्णिया (आर्यावर्त संवाददाता) : पूर्णिया ऑफ्स एंड गायनी सोसाइटी ने इंर्फटिलिटी विषय पर एक सेमिनार का आयोजन किया। सेमिनार का उदघाटन आईएमए के बिहार चैप्टर के पूर्व अध्यक्ष सह गायनी सोसाइटी (फोक्सी) की एजुकेशनल चेयरपर्सन डाॅ मंजू गीता मिश्रा, आईएसओपीएआरबी की पूर्व उपाध्यक्ष शांति एचके सिंह एवं पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर से आए डाॅ प्रदीप चक्रवर्ती ने दीप प्रज्ज्वलित कर किया। सेमिनार की अध्यक्षता पूर्णिया ऑफ्स एंड गायनी सोसाइटी की अध्यक्ष डॉ विभा झा ने की। मंच संचालन सचिव डॉ अनुराधा सिन्हा ने किया। इस अवसर पर पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर से आए डाॅ प्रदीप चक्रवर्ती ने कहा कि पुरुष बांझपन के लिए मुख्य रूप से स्पर्म काउंट कम होना, स्पर्म की गुणवत्ता खराब होना जैसे कारण होते हैं। शोध में यह भी कहा गया कि इंटरकोर्स के बाद महिला के शरीर में शुक्राणु 5 दिन तक जीवित रहते हैं। औसत के रूप में देखा जाए तो 100 में से 15 कपल्स असुरक्षित यौन संबंध के कारण प्रेगनेंसी से वंचित रह जाते हैं। इनमें से आधे जोड़े पुरुष बांझपन के शिकार होते हैं। आईएमए के बिहार चैप्टर के पूर्व अध्यक्ष सह गायनी सोसाइटी (फोक्सी) के एजुकेशनल चेयरपर्सन डाॅ मंजू गीता मिश्रा ने कहा कि पॉलीसिस्टिक अंडाशय सिंड्रोम (पीसीओएस) एक जटिल और विषम विकार है जो आए दिन एक चुनौती प्रस्तुत करता है। उपचार की रणनीति हाइपरएंड्रोजेनिज्म (जैसे, हिरसुटीजीम) नियमित मासिक धर्म और गर्भावस्था को प्राप्त करने पर ध्यान केंद्रित करती है। हिरसुटीजीम के उपचार के लिए उपलब्ध औषधीय एजेंट में एंड्रोजन सप्रेसर्स और एंड्रोजन ब्लॉकर्स शामिल हैं। संयुक्त मौखिक गर्भनिरोधक गोलियां सबसे अधिक इस्तेमाल किए जाने वाले एंड्रोजन सप्रेसर हैं और पीसीओएस रोगियों में मासिक धर्म की गड़बड़ी के लिए एक अच्छा उपचार है। जो गर्भधारण की इच्छा नहीं रखते हैं। पीसीओएस में बांझपन के लिए पहली पंक्ति का इलाज क्लोमीफीन साइट्रेट है, जबकि पैरेंटल गोनाडोट्रोपिन आमतौर पर क्लोमीफीन प्रतिरोधी रोगियों में उपयोग किया जाता है। पीसीओएस रोगियों के लिए इंसुलिन संवेदीकरण एजेंटों के लाभ पिछले एक दशक में तेजी से स्पष्ट हो गए हैं। पीसीओएस से जुड़ी मेटाबोलिक गड़बड़ी लंबे समय तक स्वास्थ्य संबंधी प्रभाव डालती है और इस पर और ध्यान देने की आवश्यकता है। आईएसओपीएआरबी की पूर्व उपाध्यक्ष शांति एचके सिंह ने कहा कि गर्भावस्था में एनोक्सापारिन का उपयोग करना सुरक्षित माना जाता है। क्योंकि यह नाल को पार नहीं करता है और बच्चे को प्रभावित नहीं करता है। मां के लिए सबसे आम दुष्प्रभाव इंजेक्शन साइट पर चोट लगने की एक छोटी राशि है। कम खुराक एनोक्सापारिन के साथ रक्तस्राव का जोखिम छोटा है। सेमिनार में अध्यक्ष डॉ विभा झा, सचिव डॉ अनुराधा सिन्हा, कोषाध्यक्ष डॉ रीमा सरकार, डॉ अंजू करन, डाॅ आशा सिंह, डॉ रेणुका सिंह, डॉ भारती सिन्हा, डाॅ आरती सिन्हा, डाॅ निधि रानी, डाॅ अंजू हर्ष, किशंनगज के डाॅ छवि रमन वैद आदि उपस्थित थे।

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