नयी दिल्ली, 30 सितम्बर, उच्चतम न्यायालय में अयोध्या विवाद की 34वें दिन की सुनवाई के दौरान सोमवार को मुस्लिम पक्ष ने हिन्दू पक्ष के इस दावे का खंडन किया कि बाबरी मस्जिद इस्लाम के स्थापित नियमों के खिलाफ थी, साथ ही उसने कहा कि मोहरहित ‘निर्मोही’ और बैरागी को जमीन से मोह क्यों? मुस्लिम पक्षकार के वकील मोहम्मद निज़ाम पाशा ने मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नज़ीर की संविधान पीठ के समक्ष दलील दी कि बाबरी मस्जिद वैध मस्जिद थी या नहीं, वहां वजू करने की व्यवस्था थी या नहीं, इसे इस्लाम के सिद्धांतों पर परखने की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा कि सिर्फ यह देखे जाने की जरूरत है कि वहां के लोग इसे मस्जिद मानते थे या नहीं! अपनी दलील की शुरुआत करते हुए श्री पाशा ने कहा कि 'निर्मोही’ का मतलब होता है मोह रहित और बैरागी का मतलब वैराग्य है। फिर भी ये लोग जमीन पर कब्जे की मांग पर अड़े हुए हैं! निर्मोही अखाड़े को संपत्ति से कोई लगाव नहीं होना चाहिए, लेकिन वे अब भी दावा करते हैं। इसलिए बहस धार्मिक पहलुओं पर आधारित नहीं होनी चाहिए, बल्कि कानूनी पहलू पर होनी चाहिए। श्री पाशा ने दलील दी कि वज़ू को लेकर हदीस में कहा गया है कि यह बेहतर होगा कि वज़ू घर से करके मस्जिद आया जाये। इसलिए विवादित ढांचे पर वजू के लिए स्थान का न होना कोई बड़ी बात नहीं है। हिन्दू पक्ष की दलील थी कि बाबरी मस्जिद में वज़ू करने की कोई जगह नहीं थी। उन्होंने जमाली कमाली मस्जिद, सिद्धि सईद मस्जिद का उदाहरण देते हुए कहा कि उस मस्जिद में कोई गुम्बद नहीं है, पर जाली लगी हुई है जिसे 'ट्री ऑफ लाइफ' कहते हैं। यही नहीं वहां पर जो नक्काशी है उसमें पेड़ और फूल बने हुए हैं। हिन्दू पक्ष की यह भी दलील है कि विवादित जमीन की खुदाई में ढांचे के जो अवशेष मिले हैं उसमें पेड़ और फूल बने हैं जो मस्जिदों में नहीं होते।
सोमवार, 30 सितंबर 2019
‘निर्मोही’, बैरागी को जमीन का मोह क्यों : मुस्लिम पक्ष
Tags
# देश
Share This
About आर्यावर्त डेस्क
देश
Labels:
देश
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
Author Details
सम्पादकीय डेस्क --- खबर के लिये ईमेल -- editor@liveaaryaavart.com
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें