खत्‍म हो गया दिल्‍ली में बिहारियों का सेवाश्रम, अब कौन देगा ठिकाना - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 20 सितंबर 2019

खत्‍म हो गया दिल्‍ली में बिहारियों का सेवाश्रम, अब कौन देगा ठिकाना

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20 सितंबर 2019 की तारीख बिहार के उन लोगों के लिए तकलीफदेह है, जो गंभीर बीमारियों से ग्रसित हो जाते थे और बिना किसी व्‍यवस्‍था इलाज के लिए दिल्ली को चले जाते थे। ऐसे ही बेसहारों के लिए देश की संसद भवन के पास बंगला नंबर 11 ए, कस्तूरबा गांधी मार्ग, बलवंत राय मेहता लेन स्थित एक सेवाश्रम हुआ करता था, जो आज समाप्त गया। नई दिल्ली के लुटियंस जोन के इस बंगले में सेवाश्रम बीते पांच वर्षों से चल रहा था, जहां हमेशा चार सौ से पांच सौ की संख्या में बेसहारा मरीज शरण लेते थे। कोई ब्रेन ट्यूमर से ग्रसित था, कोई लीवर सेरोसिस का इलाज कराने आया था तो कोई कैंसर और किडनी की बीमारी का लंबा ट्रीटमेंट करा रहा था। लोकतंत्र में जनता द्वारा जनप्रतिनिधि चुनना तो आम बात है, लेकिन चुने हुए जनप्रतिनिधि द्वारा अपने घर को जनता को समर्पित करने का मामला कभी सामने नहीं आया। लेकिन 2014 लोकसभा चुनाव के बाद  बलवंत राय मेहता लेन बंगला नंबर 11 ए पूरी तरह जनता को समर्पित था और इसका नाम था नेताजी सुभाष चंद्र बोस सेवाश्रम। दरअसल यह बंगला 2014  में मधेपुरा से चुनाव जीते सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव का था, जो उनहें चुनाव जीतने के बाद मिला था। अगर वे चाहते तो इस बड़े बंगले में सब कुछ अपनी शानो - शौकत के लिए सजाते, लेकिन उन्‍होंने इसे जनता के ही नाम कर दिया, जो 24 घंटे किसी भी बीमार – लाचार के लिए खुला रहता था।

चुनाव जीत कर दिल्‍ली आने के बाद कुछ ही दिनों में पप्पू यादव ने अपनी पत्‍नी और सुपौल से सांसद रंजीत रंजन के साथ मिलकर इस बंगले में गरीब और बेसहारों के लिए सेवाश्रम बना दिया और अपने लिए मात्र थोड़ी सी जगह रखी। शेष सब कुछ उनके लिए दे दिया, जो इलाज कराने को दिल्ली आ रहे थे और दिल्ली में उनके लिए कोई आश्रय नहीं था। वे आने वाले से यह भी नहीं पूछते कि आपकी जात क्‍या है? या फिर ये कि आपने चुनाव में वोट किसे दिया था। मिलने को तो यहां वो भी मिल जाते, जिन्‍होंने चुनाव में पप्‍पू यादव के खिलाफ वोट किया था। सिर्फ मधेपुरा – पूर्णिया से लोग नहीं आते, पूरे बिहार से लोग पहुंचते थे। इस सेवाश्रम में के मुख्‍यद्वार पर ही लिखा था – आपका घर – सबका घर , सुभाष चंद्र बोस सेवाश्रम। आपका अपने घर में बार – बार अभिनंदन। सेवाश्रम कुछ ही दिनों में इस सेवाश्रम की पॉपुलैरिटी बहुत अधिक बढ़ गई। मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही थी। स्वयं पप्पू यादव अपने लिए स्‍पेस कम करते जा रहे थे, लेकिन पप्पू यादव ने कभी अपना ख्‍याल नहीं किया। पॉपुलैरिटी इतनी हो रही थी कि कभी इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाई देखने को आते तो कभी दूसरे केंद्रीय मंत्री। लेकिन आज यह सेवाश्रम किसी नेता का महज आलीशान बंगला बनने जा रहा है, जहां कभी गरीब मासूमों की पनाहगारी हुआ करती थी।

पप्पू यादव सेवाश्रम में रहने वाले मरीजों का दिन-रात ख्याल रखते थे। दिल्‍ली में सुबह और शाम सेवाश्रम की देखभाल में वे गुजारते थे। यहां सबों के लिए मुफ्त भोजन की व्यवस्था होती। अस्पतालों में इलाज का बंदोबस्त किया जाता।  इलाज और जांच के लिए पैसे कम हो जाते, तो वह भी देते। कई बार उन्‍होंने सिर्फ मधेपुरा ही नहीं बिहार के अन्‍य जिलों के लोगों को भी प्रधानमंत्री और मुख्‍यमंत्री राहत कोष से मदद  दिलाई और इसके लिए खुद लगे रहे। उनके सेवाश्रम में विजय और रंजन नाम के दो स्टाफ दिन - रात दिल्ली के एम्स में बिहार से आने वाले मरीजों की देखभाल करते थे। उनकी समस्याओं को कम करते थे। एम्स में विजय की पहचान ही ऐसी बन गई कि जिन्‍हें झोला और थैला लिए गरीब लोग घेरे दिखते हों, वह पप्‍पू यादव का विजय ही है। मिल लो, काम हो जाएगा। एम्स की भीड़ - भाड़ में भी विजय और रंजन सबों को डॉक्टर से दिखलाता। अपने बंगले के सेवाश्रम में रहने वाले मरीजों को पप्पू यादव ने कभी पराया नहीं समझा। सभी पर्व - त्यौहार वे इन मरीजों के बीच ही मनाते। अपने बच्चों का बर्थडे केक भी वे इनके साथ ही काटते।

दिल्ली में सभी जान गए थे कि जब किसी को कोई सहारा न मिले तो पप्पू यादव का सेवाश्रम सबों के लिए खुला है। ऑटो वाले भी किस्‍सा सुनाते और पप्‍पू यादव की कोठी पर जल्‍दी से पहुंचा देते। लेकिन समय का फेर देखिए। 2019 का लोकसभा चुनाव मधेपुरा में पप्पू यादव हार गए। अब जबकि पप्‍पू यादव चुनाव हारे हुए हैं, तो सरकारी बंगला खाली तो करना ही पड़ता। बहुत कोशिश की कि इन मरीजों के लिए दिल्ली में कोई दूसरी व्यवस्था हो जाए। लेकिन यह काम इतना आसान भी नहीं है। वैसे पप्पू यादव कह रहे हैं कि वह अपने बूते जल्‍दी कुछ ना कुछ जरूर करेंगे, लेकिन अभी ऐसा हुआ कि कल तारीख 19 सितंबर को सरकार का फरमान आया कि 24 घंटे के भीतर बंगला खाली करना होगा। जब फरमान आया तो पप्पू यादव पटना में थे। फिर भागे - भागे दिल्ली पहुंचे और सीधे  सेवाश्रम में जाकर वहां रहने वाले लोगों से रोकर मिले, क्योंकि अब सबों को वहां से कहीं न कहीं चले जाना था। पप्पू की आंखों में आंसू देख मरीजों की आंखें भी भींग गई थी। सभी एक – दूसरे से लिपट कर रो रहे थे। अब व्यवस्था कब और कहां होगी, कोई नहीं जानता। लेकिन दिल्ली में बिहारियों का बड़ा सेवाश्रम अब समाप्त हो गया है। जितनी आसानी से सुविधाओं के साथ बिहार के मरीज पप्पू यादव के बंगले में मुफ्त दवा – पानी के साथ रह लेते थे, वह अब कब और कहां मिलेगा, देखने वाली बात होगी।

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