चलिए मिलकर बच्चों के नन्हें पाँव को काँटों से बचाएं, जलने से बचाएं - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

शुक्रवार, 27 सितंबर 2019

चलिए मिलकर बच्चों के नन्हें पाँव को काँटों से बचाएं, जलने से बचाएं

महाराष्ट्र सरकार से गुहार लगा रही हूँ कि सभी सरकारी स्कूल के बच्चों को यूनिफार्म और किताबों के साथ जूते भी मुफ्त में दिए जाएं। महाराष्ट्र ने देश को सावित्रीबाई फुले जैसी नायिका का गौरव दिया, जिन्होंने पूरा जीवन गरीबों और आमजन की शिक्षा के लिए लगा दिया। यह आग्रह  सुनिश्चित कर सकें कि कोई बच्चा नंगे पाँव स्कूल जाने के लिए मजबूर न हो।
save-child
खंडाला,27 सितम्बर।  सामाजिक कार्यकर्ता हैं  Reshma Hallan। वह लिखती हैं, “मैंने एक छोटे बच्चे को सड़क पार करते देखा, उसके नन्हें पाँव  को देखकर मेरा दिल टूट गया। उसके कँधे पर स्कूलबैग था पर पाँव में जूते नहीं थे। वह सवाल करती हैं कि हम और आप ने कितनी ही बार ऐसे बच्चों को नंगे पाँव स्कूल जाते देखा होगा? हमारे पास हर अवसर के लिए पैरों में पहनने के लिए अलग-अलग जूते-चप्पल होते हैं और ये बच्चे स्कूल भी नंगे पाँव जाने को मजबूर होते हैं। हमें इन बच्चों के लिए आगे आना ही होगा।” वह अपने सवाल के जवाब में कहती हैं कि ताकि महाराष्ट्र के सभी सरकारी स्कूल के बच्चों को यूनिफार्म और किताबों के साथ जूते भी मुफ्त में दिए जाएं  सके। सामाजिक कार्यकर्ता हैं  Reshma Hallan कहती हैं कि वह अपनी  गिटार क्लास से वापस आते समय एक छोटे से बच्चे को सड़क पार करते देखा। उसका चेहरा देखकर मुस्कुराई पर उसके नन्हें पाँव देखकर मेरा दिल टूट गया। उसके कँधे पर एक स्कूलबैग था पर उसके पाँव में जूते नहीं थे। वह सोचने लगी कि ऐसे कितने नन्हें पाँव स्कूल जाते समय छिल जाते होंगे, कट जाते होंगे, जल जाते होंगे।

उनका कहना है हम और आप ने कितनी ही बार ऐसे बच्चों को नंगे पाँव स्कूल जाते देखा होगा। तपती धूप में जल रही सड़क पर वो छोटे-छोटे पैर इसलिए दौड़ जाते हैं क्योंकि उनकी आँखों में भविष्य के कई सपने होते हैं। ये बच्चे कई किलोमीटर का सफर कर के स्कूल जाते हैं। इन रास्तों पर कंकड़ होते हैं, शीशे के टुकड़े और ना जाने क्या-क्या।हमलोगों के पास हर अवसर के लिए पैरों में पहनने के लिए अलग-अलग जूते-चप्पल होते हैं और ये बच्चे स्कूल भी नंगे पाँव जाने को मजबूर होते हैं। इसके आलोक में हमलोगों को इन बच्चों के लिए आगे आना ही होगा। बताते चले कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम के अंतर्गत किताबें और यूनिफार्म मुफ्त में मुहैया कराए जाते हैं। इससे स्कूल जाने वाले बच्चों की संख्या में वृद्धि हुई है। फिर बच्चों के पैरों में जूते हों, ये भी तो सुनिश्चित होना ही चाहिए! मुंबई उन कुछ जगहों में से एक है जहाँ इसके लिए प्रावधान किए गए हैं पर महाराष्ट्र के अन्य बच्चों का क्या? वह कहती हैं इसलिए महाराष्ट्र सरकार से गुहार लगा रही हूँ कि सभी सरकारी स्कूल के बच्चों को यूनिफार्म और किताबों के साथ जूते भी मुफ्त में दिए जाएं। महाराष्ट्र ने देश को सावित्रीबाई फुले जैसी नायिका का गौरव दिया, जिन्होंने पूरा जीवन गरीबों और आमजन की शिक्षा के लिए लगा दिया। यह आग्रह  सुनिश्चित कर सकें कि कोई बच्चा नंगे पाँव स्कूल जाने के लिए मजबूर न हो। देश के कुछ राज्य जैसे तमिलनाडु और कर्नाटक में पहले से ही ये निर्देश लागू किए जा रहे हैं। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एन. सी. पी. सी. आर) ने 2018 में एक सर्कुलर जारी कर सभी राज्यों से सिफारिश की थी कि कम से कम प्राथमिक क्लास तक के बच्चों को मुफ्त में जूते दिए जाएं। वह चाहती हैं कि अगली बार सड़क पर मुझे ऐसा बच्चा ना दिखे जिसके पाँव में जूते न हों। महाराष्ट्र के शिक्षा मंत्री जी से मांग करें कि सभी सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में बच्चों को यूनिफार्म के साथ मुफ्त में जूते भी दिए जाएं। चलिए मिलकर बच्चों के नन्हें पाँव को काँटों से बचाएं, जलने से बचाएं। 

कोई टिप्पणी नहीं: