9 वीं स्मृति दिवस पर भाकपा-माले के संस्थापक नेता काॅमरेड रामनरेश राम को श्रद्धांजलि दी गई.
पटना 26 अक्टूबर 2019 भाकपा-माले के संस्थापक नेताओं में शामिल रहे काॅमरेड रामनरेश राम की 9 वीं स्मृति दिवस पर आज भाकपा-माले राज्य कार्यालय सहित पूरे बिहार में उन्हें श्रद्धांजलि दी गई और उनके सपनों को साकार करने का संकल्प लिया गया. माले राज्य कार्यालय में आयोजित श्रद्धांजलि सभा को संबोधित करते हुए माले के पोलित ब्यूरो सदस्य काॅमरेड रामजी राय ने कहा कि काॅमरेड रामनरेश राम जीवनपर्यंत मजदूर-किसानों व शोषितों-वंिचतों की मुक्ति के एक प्रतिबद्ध योद्धा बने रहे. उनका जीवन हम सबके लिए प्रेरणा का स्रोत है. श्रद्धांजलि सभा में माले के वरिष्ठ नेता का. बृज बिहारी पांडेय, आरएन ठाकुर, राज्य कमिटी के सदस्य रणविजय कुमार, प्रकाश कुमार, लोकयुद्ध के प्रबंध संपादक संतलाल, विभा गुप्ता, विश्वमोहर कुमार, जितेन्द्र कुमार, निशांत कुमार, कार्तिक पासवान सहित कई लोग उपस्थित थे. जबकि श्रद्धांजलि सभा का संचालन माले के वरिष्ठ नेता काॅमरेड राजाराम ने किया. वक्ताओं ने कहा कि 70 के दशक में भोजपुर के क्रांतिकारी किसान आंदोलन को धक्के का शिकार होना पड़ा था. लेकिन शोक और धक्के को झेलते हुए का. रामनरेश राम सर्वहारा की दृढ़ता और जिजीविषा के साथ अपने शहीद साथियों के सपने को साकार करने में लगे रहे. का. स्वदेश भट्टाचार्य और भाकपा-माले के तीसरे महासचिव का. विनोद मिश्र और अपने अनेक साथियों के साथ उन्होंने भोजपुर के किसान-मजदूरों को संगठित करने का काम जारी रखा. उन्होंने भाकपा-माले के संस्थापक महासचिव का. चारु मजुमदार की इस बात को आत्मसात कर लिया था कि जनता की जनवादी क्रांति जरूरी है, जिसकी अंतर्वस्तु कृषि क्रांति है. अस्सी के दशक में उन्हें भाकपा-माले के बिहार राज्य सचिव की जिम्मेवारी मिली. इसके पहले बिहार प्रदेश किसान सभा का निर्माण हो चुका था. का. रामनरेश राम, स्वतंत्रता सेनानी और जनकवि का. रमाकांत द्विवेदी ‘रमता’ और कई अन्य नेताओं ने बिहार प्रदेश किसान सभा का गठन किया. कामरेड रामनरेश राम भाकपा(माले) के पोलितब्यूरो सदस्य एवं बिहार विधानसभा में भाकपा(माले) विधायक दल के नेता थे. का. रामनरेश राम जब विधायक बने, तो उन्होंने सिंचाई के साधनों को बेहतर बनाने की हरसंभव कोशिश की. मुकम्मल भूमि सुधार और खेत मजदूरों, बंटाईदार और छोटे-मंझोले किसानों के हक-अधिकार के लिए सदैव मुखर रहे. विधायक बनने के बाद उन्होंने 1942 के शहीद किसानों की याद में एक भव्य स्मारक बनवाया. किसान विद्रोहों और आंदोलनों के प्रति उनके मन में गहरा सम्मान था. उनके लिए 1857 का जनविद्रोह किसानों के बेटों द्वारा किया गया विद्रोह था. वे ब्रिटिश शासनकाल के दौरान बिहार में किसान आंदोलन की शुरूआत करने में स्वामी सहजानंद सरस्वती की अहम भूमिका को मानते थे. 26 अक्टूबर 2010 को उनका निधन हो गया. पटना के अलावा भोजपुर, अरवल, जहानाबाद, गया, पटना ग्रामीण, सिवान, नवादा, नालंदा आदि स्थानों पर भी संकल्प सभा का आयोजन किया गया.
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