निर्मोही अखाडे और सेंट्रल वक्फ बोर्ड की याचिका खारिज, मंदिर के लिए बनेगा न्यास - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 9 नवंबर 2019

निर्मोही अखाडे और सेंट्रल वक्फ बोर्ड की याचिका खारिज, मंदिर के लिए बनेगा न्यास

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नयी दिल्ली, 09 नवम्बर, उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने अयोध्या राम जन्मभूमि मामले में आज एकमत से ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए दो प्रमुख पक्षकारों निर्मोही अखाड़े और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की याचिकाओं को खारिज कर दिया और विवादित भूमि पर रामलला मंदिर बनाने के लिए केन्द्र से एक न्यास का गठन करने को कहा है।निर्मोही अखाड़े (याचिका नम्बर 3) ने 17 दिसम्बर 1959 को अपने महंत के माध्यम से फैजाबाद सिविल जज की अदालत में याचिका दायर कर दावा किया था कि उसे रामजन्म स्थान के प्रबंधन का पूरा अधिकार है और उसे मंदिर के प्रबंधन तथा देख रेख का अधिकार दिया जाये।देश के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजन गोगोई , न्यायमूर्ति गोगोई के अलावा न्यायमूर्ति शरद अरविंद बोबडे , न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर की संविधान पीठ ने अपने 1045 पृष्ठ के फैसले में कहा कि निर्मोही अखाड़े की इस मांग को खारिज किया गया है कि वह मंदिर का प्रबंधक है। पीठ ने कहा कि अयोध्या में विवादित स्थल पर निर्मोही अखाड़े की वर्षों से मौजूदगी और भूमिका को देखते हुए उसे मंदिर निर्माण के लिए गठित किये जाने वाले नये न्यास में संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत उचित प्रतिनिधित्व दिया जाये।सुन्नी वक्फ बोर्ड (याचिका नम्बर 4) ने 18 दिसम्बर 1961 को फैजाबाद के सिविल जज की अदालत में दायर याचिका में कहा था कि विवादित स्थल एक र्सावजनिक मस्जिद थी और वहां से मूर्तियों का हटाकर उसे इसका कब्जा दिया जाये। अदालत ने इस पर कहा कि सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत उचित स्थान पर पांच एकड़ भमि सौंपी जायेगी। अदालत ने कहा कि यह जमीन 1993 में केन्द्र सरकार द्वारा अधिगृहीत भूमि में दी जा सकती है या राज्य सरकार इसके लिए अलग से प्रमुख स्थान पर अलग से भूमि आवंटित कर सकती है। केन्द्र और राज्य सरकार परस्पर विचार विमर्श के आधार पर निर्धारित समय में इस जमीन को आवंटित करे। अदालत ने कहा कि जमीन आवंटित किये जाने पर सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड मस्जिद बनाने के लिए सभी जरूरी कदम उठायेगी।भगवान श्रीराम विराजमान और स्थान राम जन्मभूमि द्वारा एक जुलाई 1981 को फैजाबाद के सिविज जल के सामने एक याचिका (याचिका नम्बर 5)दायर की गयी । इसमें विवादित भूमि पर मालिकाना हक की मांग की गयी और प्रतिवादियों को मंदिर बनाने में हस्तक्षेप करने से रोकने की मांग की गयी थी। फैजाबाद अदालत ने इस याचिका को अन्य याचिकाओं के साथ जोड़ दिया। इसके बाद 10 जुलाई 1989 को ये सभी याचिका इलाहाबाद उच्च न्यायालय को भेज दी गयी और 21 जुलाई 1989 को तीन न्यायाधीशों की एक पीठ बनायी गयी। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 30 सितम्बर 2010 को विवादित भूमि को तीन बराबर हिस्सों में बांटने का आदेश सुनाया। इसके खिलाफ उच्चतम न्यायालय में 14 विशेष अनुमित याचिकाएं दायर की गयीन्यायालय ने कहा कि विवादित भूमि पर मंदिर बनाने के लिए केन्द्र सरकार तीन से चार महीने के अंदर एक न्यास का गठन करे। उसने यह भी कहा कि मंदिर के गर्भगृह और बाहरी अहाते का अधिकार न्यास मंडल के पास ही रहेगा। केन्द्र सरकार अधिगृहीत भूमि के शेष भाग (2.77 एकड़ के अलावा) को नये न्यास को या किसी अन्य प्रबंधन समिति को सौंपने और उसके विकास के बारे में व्यवस्था करेगी। पीठ ने कहा कि नये न्यास के गठन तक विवादित भूमि का कब्जा सरकार द्वारा नियुक्त रिसिवर के पास ही रहेगा।विवादित भूमि पर पूजा का अधिकार मांगने वाले गोपाल सिंह विशारद की याचिका पर पीठ ने कहा कि संबद्ध अधिकारी की अनुमति से वह पूजा कर सकेंगे बशर्तें इससे कानून व्यवस्था की स्थिति भंग न होती हो।

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