बिहार : गैर ईसाई लोग भी इसे एक धर्मनिरपेक्ष, सांस्कृतिक उत्सव के रूप मे मनाते हैं क्रिसमस - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 30 नवंबर 2019

बिहार : गैर ईसाई लोग भी इसे एक धर्मनिरपेक्ष, सांस्कृतिक उत्सव के रूप मे मनाते हैं क्रिसमस

प्रभु येसु ख्रीस्त का जन्मोत्सव 25 दिसम्बर को है। उनके आने के इंतजारी में ईसाई समुदाय लग गए हैं।  1 दिसम्बर को प्रथम आगमन संडे है।चार हफ्ते का आगमन है। हर हफ्ते माेमबर्ती को जलाकर हफ्ता दर्शाते है।
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पटना,30 नवम्बर। आज अंतिम दिन वैवाहिक बंधन में कई लोग बंध गए। इसमें एक महिला पत्रकार भी है। कल रविवार 1 दिसम्बर से 26 दिसम्बर तक माता कलीसिया के द्वारा विवाह पर प्रतिबंध लगा दी जाती है। फिर 26 दिसम्बर से विवाह करना शुरू हो जाएगा। सर्वविदित है क्रिसमस को सभी ईसाई लोग मनाते हैं और आजकल कई गैर ईसाई लोग भी इसे एक धर्मनिरपेक्ष, सांस्कृतिक उत्सव के रूप मे मनाते हैं। क्रिसमस के दौरान उपहारों का आदान प्रदान, सजावट का सामन और छुट्टी के दौरान मौजमस्ती के कारण यह एक बड़ी आर्थिक गतिविधि बन गया है और अधिकांश खुदरा विक्रेताओं के लिए इसका आना एक बड़ी घटना है। दुनिया भर के अधिकतर देशों में यह 25 दिसम्बर को मनाया जाता है। क्रिसमस की पूर्व संध्या यानि 24 दिसम्बर को ही जर्मनी तथा कुछ अन्य देशों में इससे जुड़े समारोह शुरु हो जाते हैं।  ब्रिटेन और अन्य राष्ट्रमंडल देशों में क्रिसमस से अगला दिन यानि 26 दिसम्बर बाॉक्सिंग डे  के रूप मे मनाया जाता है। कुछ कैथोलिक देशों में इसे सेंट स्टीफेंस डे या फीस्ट ऑफ़ सेंट स्टीफेंस भी कहते हैं। आर्मीनियाई अपोस्टोलिक चर्च 6 जनवरी को क्रिसमस मनाता है पूर्वी परंपरागत गिरिजा जो जुलियन कैलेंडर को मानता है वो जुलियन वेर्सिओं के अनुसार 25 दिसम्बर को क्रिसमस मनाता है, जो ज्यादा काम में आने वाले ग्रेगोरियन कैलेंडर  में 7 जनवरी का दिन होता है क्योंकि इन दोनों कैलेंडरों में 13 दिनों का अन्तर होता है। आगमन काल इंतज़ार का समय है। करीब दो हज़ार वर्ष पहले ईश्वर मनुष्य बन कर इस दुनिया में आये। तीन दशक मनुष्यों के बीच रहने के बाद उन्होंने अपना सार्वजनिक जीवन शुरू किया। लगभग तीन वर्षों के अपने सार्वजनिक जीवन में उन्होंने लोगों को स्वर्गराज्य के आगमन का सुसमाचार सुनाया और उसका अनुभव कराया। तत्पश्चात वे दुख भोग कर क्रूस पर मर कर तीसरे दिन जी उठे। चालीस दिनों तक अपने शिष्यों को कई बार दर्शन देकर उन्होंने उन्हें पुनर्जीवित होने का प्रमाण दिया। फिर वे स्वर्ग में आरोहित किये गये। हम विश्वास करते हैं कि वे मानवजाति के न्यायकर्ता के रूप में संसार के अंत में फिर आयेंगे। हम उनके आगमन की प्रतीक्षा में अपना जीवन बिताते हैं। आगमन पुष्पांजलि इसी इंतज़ार का प्रतीक है। इन चार सप्ताहों में कलीसिया येसु के अग्रदूत संत योहन बपतिस्ता के संदेश पर मनन चिंतन करते हुए येसु को ग्रहण करने के लिए अपने आप को तैयार करती है।

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