पूर्णिया : गीता जयंती पर हुई ऑनलाइन परिचर्चा - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 8 दिसंबर 2019

पूर्णिया : गीता जयंती पर हुई ऑनलाइन परिचर्चा

समाज में कुटिलता बनाम सरलता का सतत संघर्ष जारी है, जिसकी पहचान व सम्मान ही युग का गीता ज्ञान है...
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पूर्णिया (आर्यावर्त संवाददाता) : 08 दिसंबर को अगहन शुक्ल एकादशी तिथि मनाई गई। इसका अनूठा, अनुपम महत्व है। इसी तिथि को ही यदुवंशी कुलश्रेष्ठ भगवान श्री कृष्ण के मुखारविंद से अर्जुन के लिए गीता का वाचन हुआ था। इस कालजयी, विश्व हितेषी पुस्तक गीता की महत्ता को देखते हुए आज की तिथि गीता जयंती के रूप में मनाई जाती है। पूर्णिया की एक जागरुक मित्र मंडली ने भागमभाग और बिना आयोजन के तामझाम के ऑनलाइन और कांफ्रेंसिग के तहत गीता पर परिचर्चा आयोजित की। शामिल चर्चाकार में शिक्षक नेता दिवाकांत झा, किसान नेता वीके ठाकुर, सुमन चौधरी, हिमकर मिश्र, साहित्यकार चंद्रशेखर मिश्र और राजेंद्र पाठक रहे। सभी पूर्णिया शहर के अलग अलग मोहल्लों से कान कॉल के तहत गीता की चर्चा पर गीता जयंती के तहत जुड़े थे। 

...गीता ज्ञान के प्रति हमें कृतज्ञ होना चाहिए : 
चर्चा में यह बात सामने आई कि मानव समाज को यह अनुपम भेंट गीता के रूप में जो अपने आप में संपूर्ण जान को समेटे हुए हैं के प्रति कृतज्ञ होना चाहिए। इसके प्रति सच्ची कृतज्ञता यही हो सकती है कि प्रथम तो हम इसका नियमित पाठ करें और यह काफी नहीं होगा। उचित फलदाई तब होगा जब इसकी बातों को हम अपने जीवन में सही मायने में कर्म क्षेत्र में प्रदर्शित करेंगे और अपने आचरण में लाएंगे। लाल कोठी पूर्णिया से ऋषि खेती विशेषज्ञ हिमकर मिश्रा ने कहा कि इस ग्रंथ को मनुष्य की सफलता के लिए सबसे महत्वपूर्ण माना गया है। हर भारतीय विद्वान गीता दर्शन को अपनाता और उसकी व्याख्या करता रहा है। वहीं पत्रकार राजेंद्र पाठक पारंपरिक तथ्य बताते हुए कहा कि उपनिषद गाय है कृष्ण दूहने वाले हैं अर्जुन बछड़ा है और दूध गीता है। उन्होंने भारतीय अध्यात्म ही नहीं बल्कि साहित्य व राजनीति को भी गीता दर्शन से हर सदी में जुड़ा बताया। उन्होंने युद्ध को अवश्यंभावी बताया और लगातार संघर्षरत होने की जरूरत बताई। श्री पाठक ने कहा कि समाज में कुटिलता बनाम सरलता का सतत संघर्ष जारी है। जिसकी पहचान व सम्मान ही युग का गीता ज्ञान है। गीता पाखंड को खंडन और प्रगतिशीलता का मंडन करने वाली पुस्तक है। 

...विद्यालय व महाविद्यालयों में गीता पाठ हो अनिवार्य : 
वहीं प्रमंडलीय शिक्षक नेता दिवाकांत झा ने इस पुस्तक का प्राथमिक स्तर से विश्वविद्यालय स्तर तक नियमित रूप से पाठ की अनिवार्यता बताई व इसे पाठ्यक्रम में शामिल करने की मांग की। साहित्यकार चंद्रशेखर मिश्र ने कहा कि प्राचीन मतानुसार गीता जयंती को मोक्षदा एकादशी भी कहते हैं तथा कहा जाता है कि इस एकादशी व्रत को करने से व्यक्ति पितर के साथ मोक्ष को प्राप्त करता है। गीता जीवन का सार तथा मोहभंजक है। यह जीवन दर्शन है, जो मानव को उदात्त बनाता है। जीवन की सार्थकता के लिए गीता दर्शन का अनुसरण, अनुपालन, जीवन लक्ष्य की प्राप्ति में सहायक माना गया है। गीता जयंती के अवसर पर हुई ऑनलाइन परिचर्चा को आगे बढाते हुए वीके ठाकुर ने कहा कि आज के इस दौर में गीता की प्रासंगिकता अधिक बन गई है। गीता अपने रचनाकाल से आज के इस कलयुगी के दौर में गीता का ज्ञान, जन मन में आवश्यक बताया। उन्होंने पंडितों को गीता पाठ करने तथा अपने चरित्र में उसे उतारने व आध्यात्मिक लक्ष्य प्राप्ति के लिए सर्वोत्तम साधन बताया। अंत में सबने गीता के निष्काम कर्मयोग को प्रधानता देते हुए परिचर्चा की समाप्ति की।

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