बिहार के 20-20 चुनाव में जनता की अदालत में 15 बनाम 15 की होगी सुनवाई ! - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

शुक्रवार, 3 जनवरी 2020

बिहार के 20-20 चुनाव में जनता की अदालत में 15 बनाम 15 की होगी सुनवाई !

bihar-election-20-20
बिहार की राजनीति दिन-ब-दिन बदल रही है। इस बार का बिहार में एनडीए बनाम महागठबंधन 2020 (ट्वेंटी-ट्वेंटी) मैच की तर्ज पर चुनाव होना है। बिहार से तीन नेताओं की अपनी-अपनी पहचान है लालू प्रसाद, नीतीश कुमार और रामविलास पासवान। लालू प्रसाद और उनकी पार्टी ने बिहार में 15 वर्षों तक राज किया। समय बदला तो सियासत भी बदली और पिछले 15 वर्षों से नीतीश कुमार भी सुशासन बाबू बनकर राजनीतिक आखाड़े में टिके हुए हैं। वहीं रामविलास पासवान केंद्र की राजनीति में खुद को फिट बैठाकर लगातार सरकार चाहे किसी की भी रही हो मंत्री बनते रहे हैं। 

बिहार में 15 वर्ष बनाम 15 वर्ष की लड़ाई है। लालू प्रसाद बिहार की सत्ता पर अगड़े-पिछड़े का राजनीतिक पासा फेंककर सत्तासीन हुए थे। उस समय बिहार की सत्ता में पूर्व मुख्यमंत्रियों में बिंदेश्वरी दुबे, भागवत झा आजाद और जगन्नाथ मिश्रा के कार्यकाल को अगड़ों की राजनीति बताते हुए उनलोगों को बेदखल कर सत्ता पर काबिज हुए। लालू मुख्यमंत्री तो बने ही अपनी पत्नी राबड़ी देवी को भी मुख्यमंत्री बनाकर अपने दल के सिनियर नेताओं को भी बौना साबित कर दिया था। बिहार में लालू सत्ता में आए तो लूट, अपहरण, रंगदारी, हत्या का होना आम हो गया। लालू राज में ही बथानी नरसंहार, सेनारी नरसंहार जैसी कई घटनाओं ने बिहार को देश ही नहीं दुनिया में हायतौबा मचा दिया। लालू जिस तरह से अगड़े-पिछड़े की राजनीति कर सत्ता पर काबिज हुए थे उसी तरह उनको भी सत्ता से नीतीश कुमार ने बेदखल कर सत्ता को अपनी हाथों में ले लिया।

अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में नीतीश कुमार रेलमंत्री और कृषि मंत्री बने। इन दोनों विभागों में इनकी कार्यशैली इन्हें पॉपुलर कर दिया। नतीजा बिहार में एनडीए ने इनको अपना चेहरा बनाया और बहुमत में आने के साथ ही नीतीश कुमार को बिहार मुख्यमंत्री की कमान सौंपी दी। नीतीश कुमार सत्ता में आए, बिहार बदहाल था, उस बदहाली से बाहर निकालकर बिहार को प्रगति की राहों पर नीतीश ने दौड़ायी। बिहार से नक्सलिज्म, अपहरण, रंगदारी, करप्शन पर रोक लगी। बिहार की बद्दतर सड़कों पर सरपट दौड़ने लगी गाड़ियां। बिहार में शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी, शौचालय सबका विकास कर 15 सालों तक नीतीश कुमार सत्ता में बने रहे। जिस बिहार से व्यवसायियों का पलायन जारी था उस पर विराम लगा। लेकिन बिहार में इस 15 वर्षों में किसी बड़े व्यवसायी ने इधर का रुख कभी नहीं किया। लेकिन छोटे-छोटे उद्योगों को विकसित कर रोजगार को पैदा तो किया ही बिहार में शराबबंदी, बाल विवाह, दहेज प्रथा पर रोक लगाने से बिहार में बड़ा बदलाव आया उसके बाद पर्यावरण को सुरक्षित करने के लिए जल-जीवन-हरियाली अभियान की कार्यशैली को दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति बिल गेट्स ने भी सराहना की।

2020 में होने वाले बिहार चुनाव में नीतीश कुमार का राजनीतिक भविष्य तय करेगा। वहीं विपक्ष की राजद के लिए यह चुनाव अग्निपरीक्षा साबित होगी। अगर हम बात करें 2015 के चुनाव की तो भाजपा लहर में राजद-जदयू-कांग्रेस के महागठबंधन ने भाजपा को धूल चटा दिया था। उस समय नीतीश का विकास और लालू का रुख बदलने की क्षमता ने सारे समीकरण को ध्वस्त कर सत्ता को अपने पाले में लिया। लेकिन 20 माह गुजरने के साथ ही परिस्थियां बदलीं लालू चारा घोटाला मामले में जेल चले गए तो जमीन घोटाला में तेजस्वी सहित उनके परिवार के कई सदस्यों का नाम आने लगा। उस समय की नजाकत को समझकर राजनीति में अपनी छवि को दागदार नहीं होने देने वाले नीतीश ने पाला बदला और 2016 में मोदी की नोटबंदी की चर्चा कर भाजपा के करीब हुए। फिर क्या समीकरण बदला और एकबार फिर से सत्ता से राजद-कांग्रेस को बेदखल कर भाजपा-लोजपा के कंबिनेशन के साथ मुख्यमंत्री बन बैठ। आगे भी इसी रणनीति पर चुनाव साथ-साथ लड़ने की कवायद जारी है।

दूसरी तरफ महागठबंधन की बड़ी पार्टी राजद के समक्ष कई समस्याएं एक साथ खड़ी हो गई हैं। लालू प्रसाद जेल में हैं, तेजप्रताप का पारिवारिक झगड़ा होने से राजद के अंदर मनमुटाव, दोनों भाईयों का आपसी सामंज्सय का नहीं बैठना। तो मीसा का राजनीति में खुद को स्थापित करने की जद्दोजहद पार्टी के लिए खतरे का सूचक है। इस बात को समझना राजद के लिए बेहद जरुरी है। हलांकि कुछ हद तक जगदानंद सिंह को आगे करके राजद ने सियासत की जाल तो फैलायी है लेकिन शिकारी तेजस्वी राजनीति में कितना मजे हुए खिलाड़ी हैं ये किसी से छूपी हुई बात नहीं है। महागठबंधन को लोकसभा में एनडीए मजा चखा चुकी है। इस बात से उसे भी सीख लेने की जरुरत है। जिस तरह से एनडीए के पास नीतीश कुमार की छवि और कद है उस तरह से महागठबंधन के पास कोई कदावर नेता सामने नजर नहीं आ रहा है। एनडीए के पास विकास की लंबी फेहरिस्त है तो राजद के पास उसके पिछले रिकॉर्ड को फिर से बिहार की जनता दुहराना नहीं चाहती है। उपर से लालू का व्यंगात्मक अंदाज जिसे विरोधी भी जरुर सुनना चाहते हैं। लालू की सुझबूझ की कमी भी राजद के बिखराव का कारण है। परिवार से लेकर राजनीति तक की समस्या को पल में सुलझाने वाले नेता लालू प्रसाद का जेल की सलाखों के पीछे होना भी महागठबंधन के लिए बड़ी चुनौती बनी हुई है। लोकसभा चुनाव में हार के बाद तेजस्वी गुमनामी बाबा बन गए थे। वहीं पटना में भयंकर जलजमाव के समय भी नदारद रहे उस वक्त पप्पू यादव की छवि निखरकर सामने आयी। वहीं पटना जंक्शन पर जैसे ही दूध के अवैध हो रहे कारोबार प्लेस को तोड़ा गया तो तेजस्वी धरना पर बैठ गए। इसको सत्तारुढ़ दल जहां नोटिस नहीं ली वहीं बिहार की जनता को राजद के इस जातिय समीकरण देखकर भरोसा तार तार हुआ। बिहार में भाजपा-जदयू-लोजपा का वोट बैंक महागठबंधन के वोट बैंक से बहुत ज्यादा है। इस पर हावी होने के लिए तेजस्वी को अपनी पूरी ताकत को झोंकनी होगी। क्योंकि राजद तो एम-वाई समीकरण तक सिमटा हुआ है वहीं इनके साथ के दलों के भी वोटर इसी में से वोट काटेंगे। ऐसी परिस्थिति में जो दल पिछड़ों के वोटों पर सेंधमारी करेगा बिहार की राजनीति में उसी का पलड़ा भारी होगा और वही होगा सत्ता पर काबिज। लेकिन इन सबसे अलग देखने वाली बात ये होगी की आखिर एनडीए और महागठबंधन के बीच बनी खायीं को कैसे पाट पाएंगे विरोधी यह एक बड़ा सवाल है।


मुरली मनोहर श्रीवास्तव
मो.9430623520

कोई टिप्पणी नहीं: