ईसाई विद्यालय में बच्चे पढ़ लिख कर डीएम, एसपी और इंजीनियर तो बन जाता है, लेकिन वही बच्चे जब विदेश जाते हैं तो 10 में से अधिकतर बच्चे गौमांस का भक्षण करते हैं, क्योंकि उन्हें वह संस्कार ही नहीं मिल पाता है। इसलिए जरूरी है कि बच्चों को बचपन से ही विद्यालय में गीता का श्लोक और हनुमान चालीसा पढ़ाया जाए।
बेगूसराय। अपने बयानों के लिए चर्चित केंद्रीय मंत्री और बिहार के बेगूसराय से बीजेपी सांसद गिरिराज सिंह ने एक बार फिर विवादित बयान दिया है। मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री गिरिराज सिंह ने एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि मिशनरी स्कूलों से पढ़कर विदेश जाने वाले ज्यादातर भारतीय बीफ खाना शुरू कर देते हैं। गिरिराज ने कहा कि छात्रों में संस्कार डालने के लिए निजी स्कूलों में गीता के श्लोकों की शिक्षा दी जानी चाहिए। केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह बुधवार को बिहार के बेगूसराय में लोहिया नगर में भागवत कथा के उद्घाटन समारोह में हिस्सा लेने पहुंचे थे। यहां समारोह को संबोधित करते हुए गिरिराज सिंह ने विरोधियों पर जमकर निशाना साधा और लोगों से यह अपील की। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि आज धर्म और सनातन जिंदा है इसलिए लोकतंत्र जिंदा हैं। लोग हमें कट्टरपंथी कहते हैं, हम कहां से कट्टरपंथी बन पाएंगे जब हमें पूर्वजों और धर्म ने सिखाया कि चीटियों को गुड़ खिलाने से और पेड़ में पानी देने से फल मिलता है। गिरिराज ने कहा कि इतना ही नहीं हम आस्तीन के सांप को भी नाग पंचमी पर दूध पिलाते हैं। लेकिन वही सांप आज रोज गालियां दे रहे हैं और रोज डस रहे हैं। उन्होंने कहा कि सनातन धर्म में कट्टरता का कोई भी स्थान नहीं है। सिंह ने कहा कि हम देश की संस्कृति को बचाएंगे, तभी भारत बचेगा। गिरिराज सिंह ने आगे कहा कि आज जरूरत है कि निजी विद्यालय में बच्चों को गीता का श्लोक सिखाया जाए और विद्यालय में मंदिर बनाया जाए, क्योंकि ईसाई विद्यालय में बच्चे पढ़ लिख कर डीएम, एसपी और इंजीनियर तो बन जाता है, लेकिन वही बच्चे जब विदेश जाते हैं तो 10 में से अधिकतर बच्चे गौमांस का भक्षण करते हैं, क्योंकि उन्हें वह संस्कार ही नहीं मिल पाता है। इसलिए जरूरी है कि बच्चों को बचपन से ही विद्यालय में गीता का श्लोक और हनुमान चालीसा पढ़ाया जाए। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि सरकारी विद्यालय में अगर बच्चे गीता का श्लोक, हनुमान चालीसा पढ़ने की बात कहेंगे तो लोग कहेंगे भगवा एजेंडा लागू किया जा रहा है। इसलिए इसकी शुरुआत निजी विद्यालय से होनी चाहिए।
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