बिहार : मुख्यमंत्री ने 29 नवम्बर 2019 के डायोसिस के शताब्दी वर्ष की सफालता की शुभकामना दी थी - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 9 जनवरी 2020

बिहार : मुख्यमंत्री ने 29 नवम्बर 2019 के डायोसिस के शताब्दी वर्ष की सफालता की शुभकामना दी थी

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पटना,09 जनवरी। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हैं। वे सूबे के नीति निर्धारक भी हैं।इसके आलोक में माननीय मुख्यमंत्री जी को उद्घाटन एवं समापन समारोह में आमंत्रित किया जाता हैं। इसे एक तरह से शिष्टाचार भी कहा जा सकता है। इसको निभाने के लिए अल्पसंख्यक ईसाई समुदाय ने भी पटना डायोसिस के शताब्दी वर्ष के समापन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया। इस संदर्भ में अल्पसंख्यक ईसाई कल्याण  संघ के महा सचिव एस.के.लॉरेंस ने बताया कि  मुख्यमंत्री कार्यालय से माननीय मुख्य मंत्री जी का एक पत्र लॉरेंस को भेजा गया जिसमें उक्त कार्यक्रम में निमन्त्रण देने के लिये महा धर्माध्यक्ष को धन्यवाद देते हुए,पूर्व से निर्धारित कार्यक्रम तथा अन्य व्यस्तता के कारण माननीय मुख्यमंत्री जी ने उक्त कार्यक्रम में शामिल होने में अपनी असमर्थता व्यक्त की थी। साथ ही मुख्य मंत्री जी ने उक्त कार्यक्रम की सफलता के लिये शुभकामना भी दी थी। इसकी जानकारी कार्यक्रम से पहले श्री लॉरेंस ने आर्च बिशप महोदय को देते हुए मुख्य मंत्री जी के संदेश (कार्यक्रम की सफलता की शुभकामना देने)को कार्यक्रम के दौरान देने के लिये सुझाव भी दिया था। लेकिन मुख्य मंत्री के न आने को लेकर कतिपय ईसाई नेताओं ने बिना जानकारी के इश्यु बना रखा है। जब-जब ईसाई समुदाय की जनसंख्या से कम जनसंख्या वाले अल्पसंख्यकों के समारोह में माननीय मुख्यमंत्री शिरकत करते हैं तो कोई न कोई बयानबाजी कर देता है। यहां पर यह कहावत सटिक है नाच न जाने आंगन टेढ़। जब मुख्यमंत्री जी पटना साहिब सामाजिक कार्यकर्ता राजन क्लेमेंट साह का कहना है कि बेहतर  ढंग से जनवकालत (एडवोकेस) नहीं होने के कारण मुख्य मंत्री पटना धर्मप्रांत के शताब्दी वर्ष के समापन समारोह में भाग नहीं ले सके। जबकि सुदूर गांव और शहरी नागरिकों की दस हजार से ऊपर संख्या में लोग संत माइकल हाई स्कूल,दीघा, पटना के आयोजित कार्यक्रम में उपस्थित थे।उन्होंने कहा श्री गुरु गोविंद सिंह जी महाराज के 353वें प्रकाश गुरु पर्व के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में माननीय मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार जी पटना साहिब गुरूद्वारा में शामिल हुए।

आदरणीय दलाई लामा से मुलाकात करने........                                
इन नेताओं में सुशील लोबो का कहना है कि बिहार के माननीय मुख्यमंत्री महोदय ने आदरणीय दलाई लामा से मुलाकात करने के लिए अपना बहुमूल्य समय और योगदान दे देते हैं परन्तु किश्चियन  समुदायों के पटना महाधर्मप्रांत की शताब्दी वर्ष के समापन के अवसर पर न आना किश्चियन के लिए दुखद बात थी, शायद किश्चियन वोट बैंक की कमी या Minority Christian Bihar के प्रति उनकी सोच चिन्हित करती है । वे यहीं पर नहीं रूके बल्कि ज्ञात कराते हैं कि Good Friday सभी  किश्चियन बन्धु गणों का मातम,उपवास और परहेज का दिन होता हैं उस दिंन माननीय मुख्यमंत्री को बुला  कर Church में तालियाँ बजवाना,फुल बुके व उपहार देना शोभा नहीं देती है, ऐसी भूल संघ,संगठन व एसोसिएशन दुबारा न करें । इससे  किश्चियन समुदायों को  धार्मिक ठेस पहुंचती। इस विषय पर आर्च बिशप व मिशनरियों को भी  सोचना चाहिए ।

जब मुख्यमंत्री क्रिसमस के अवसर पर कुर्जी चर्च आना चाहते थे पर धर्मगुरुओं द्वारा उपेक्षा..........
इस संदर्भ में माननीय मुख्य मंत्री जी द्वारा ईसाइयों को तरजीह न देने की बात को खारिज करते हुए एस.के. लॉरेंस ने बताया कि माननीय मुख्यमंत्री जी दो बार कुर्जी पल्ली में क्रिसमस पर आना चाहा था।परंतु एक बार फादर ग्रेगरी गोम्स ने मना कर दिया तथा दूसरी बार फादर जोनसन ने नाक भौं सिकोड़ तथा कुछ अजीबोगरीब और असम्मानित बातें  कह,मुख्य मंत्री को कोई अहमियत नहीं देते हुए नकारात्मकता दिखायी।इस तरह दो बार इनकी नकारात्मकता  की वजह से चाह कर भी मुख्य मंत्री क्रिसमस पर नहीं आ पाए।तो यह किसकी दुर्भावना थी तथा किसने किसकी उपेक्षा की? उन्होंने यह भी कहा कि जब मुख्यमंत्री जी का व्यस्त कार्यक्रम पूर्व से निर्धारित रहता है तब पूर्व निर्धारित कार्यक्रम को छोड़ बीच में किसी अन्य  कार्यक्रम में आना असम्भव होता है।अपने पूर्व के कार्यक्रम को छोडकर वे कैसे आएंगे?साथ ही अगर कोई सम्मानित तथा प्रतिष्ठित व्यक्ति अपनी वयस्तता की वजह से खुशी के मौके पर उपस्थित नहीं हो पाता है, परन्तु वही प्रतिष्ठित व्यक्ति गम या दुख के मौके पर शामिल होता है,तो गम या दुख के वक्त शामिल होने का वक्त खुशी के वक्त में शामिल होने से ज्यादा महत्व रखता है तथा महानता साबित करता  है।यह छोटी ,मोटी तथा अपरिपक्व मानसिकता के लोग इस महानता को कहाँ समझ पाएंगे? दूसरी बात कि किसी गमगीन (मातम) माहौल में अगर कोई उस गमगीन माहौल की महानता की चर्चा कर उसकी बड़ाई करता है या अपना उदगार प्रकट करता है और तब सुनने वाले लोग अपने भगवान की महानता की बात सुन भावविभोर हो,प्रभावित हो उनका हाथ ताली बजाने लगता है तो वह गलत नहीं होता है।यह ताली बजाने का दृश्य अकसर गमगीन धार्मिक कार्यक्रम में किसी मृतक की खूबियों की चर्चा होने पर बजते हुए देखा जाता है।अगर प्रभु येसु की मृत्यु का सर्वोच्च तथा कुर्बानी भरा कारण तथा उनकी महानता की कोई चर्चा करता है।तो स्वाभाविक है कि अगर उनके अनुयायी भावविभोर हो ,अपने प्रभु की प्रशंसा सुनते हैं,तो अपने आप उनके हाथ ताली बजाने के लिये उठ सकते हैं। छोटी मानसिकता के लोग इस भावुकता भरे क्षण को भला कहाँ समझ पाएंगे।रह गई बात मुख्य मंत्री जी के सम्बोधन की।तो मुख्य मंत्री जी ने धार्मिक कार्यक्रम के बीच सम्बोधन दिया ही नहीं।खुशी और गम की इतनी समझ तो मुख्य मंत्री जैसे व्यक्तित्व को है ही।शायद कुछ लोगों को विवेकहिन बातें करने की आदत होती है।

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