बिहार : देश में सीरियल इमरजेंसी, 24 फरवरी को पटना में विधानसभा मार्च: दीपंकर - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 19 जनवरी 2020

बिहार : देश में सीरियल इमरजेंसी, 24 फरवरी को पटना में विधानसभा मार्च: दीपंकर

जल-जीवन-हरियाली गरीबों से छल-कपट और बेदखली की योजना, सीएए-एनआरसी और एनपीआर एक ही पैकेज के प्रोग्राम, 25 जनवरी से 24 फरवरी तक बिहार में संविधान बचाओ अभियान.
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पटना 19 जनवरी (आर्यावर्त संवाददाता) मोदी सरकार ने शांतिपूर्ण विरोध-प्रदर्शनों व प्रदर्शनकारियों को चुप कराने के लिए पुलिस को अंधाधंुध शक्तियों देते हुए सीएए-एनआरसी व एनपीआर और सीरियल इमरजेंसी के माध्यम से संविधान व लोकतंत्र के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी है. कश्मीर में इमरजेंसी लागू करने से आरंभ हुआ दौर यूपी होते हुए दिल्ली में भी लागू हो चुका है. वहां सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा कानून-एनएसए जैसा काला कानून लागू कर दिया है. जिसके तहत पुलिस किसी को बिना कारण बताए तीन महीनों के लिए गिरफ्तार कर जेल में डाल सकती है.  नीतीश जी संविधान व धर्मनिरपेक्षता के मूल्यों की रक्षा का दावा करते हैं, लेकिन उनका यह दावा पूरी तरह तार-तार हो चुका है. सीएए-एनआरसी-एनपीआर एक ही पैकेज प्रोग्राम है. यह नहीं चल सकता कि आप एनआरसी के खिलाफ हों और सीएए का समर्थन कर रहे हों. एनपीआर पर उन्होंने चुपी साध रखी है. बिहार की जनता उनसे जवाब चाहती है कि आखिर उन्होंने संसद में सीएए का समर्थन क्यों किया? बिहार विधानसभा से पहलकदमी लेते हुए नीतीश जी सीएए-एनआरसी-एनपीआर को लागू न करने का प्रस्ताव पारित करवायें. बिहार में भी यूपी की तर्ज पर आंदोलनकारियों का लगातार दमन किया जा रहा है. औरंगाबाद व फुलवारीशरीफ की घटना इसके ज्वलंत उदाहरण है. औरंगाबाद में पुलिस ने मुस्लिम मुहल्लों में घुसकर उपद्रव मचाया. कहीं गुंडों से तो कहीं पुलिस से आंदोलनकारियों पर हमले करवाए जा रहे हैं. हमारी पार्टी पुलिस की इन दमनात्मक कार्रवाइयों पर अविलंब रोक लगाने तथा दोषी पुलिस अधिकारियों पर कार्रवाई की मांग करती है. इस बीच आंदोनकारियों पर थोपे गए सभी फर्जी मुकदमे वापस होने चाहिए. बिहार में 25 जनवरी को वाम दलों की अपील पर हो रही मानव शृंखला से आरंभ कर एक महीने तक संविधान बचाओ अभियान चलाया जाएगा. इस दौरान व्यापक पैमाने पर ग्रामीण बैठकें व सभाएं आयोजित की जाएंगी और संविधान की रक्षा की सपथ ली जाएगी. 24 फरवरी को पटना में विधानसभा मार्च होगा और भाजपा-जदयू सरकार की घेरेबंदी की जाएगी.

नीतीश सरकार की जल-जीवन-हरियाली योजना दरअसल गरीब-कमजोर वर्ग और आम लोगों से छल-कपट व बेदखली का अभियान है. इसके पहले भी शराबबंदी के सवाल पर नीतीश जी ने मानव शृंखला लगवाई थी. बावजूद बिहार में आज अपराध अपने चरम पर है. शराब माफियाओं की चांदी है. वह एक जुमला साबित हुआ. उसी प्रकार यह जल-जीवन-हरियाली योजना भी महज एक जुमला है.  नीतीश जी बात तो पर्यावरण सरंक्षण की करते हैं लेकिन सरकार की नीतियां इसके ठीक उलट है. औरंगाबाद में सीमेंट फैक्ट्री को भू - जल के इस्तेमाल व दोहन की खुली छूट मिली हुई है. पूरे राज्य में हानिकारक एस्बेस्टस कारखानों को खोला जा रहा है. पर्यावरण में सुधार हो, पीने के पानी की गारंटी आदि काम तभी सम्भव है जब सरकार दिन प्रतिदिन मर रही नदियों, तालाबों, पोखरों को जिंदा करे. ठोस काम करने की बजाय सरकार सरकारी खजाने और सरकारी तंत्र का दुरुपयोग करते हुए मानव शृंखला का दिखावा कर रही है. दूसरी ओर इस नाम पर पूरे राज्य में आज पोखर-आहर-चैर आदि की जमीन पर बरसो से बसे दलित-गरीबों को बिना वैकल्पिक व्यवस्था किये उजाड़ने की साजिश रची गई है. पूर्वी चंपारण, भोजपुर आदि कई जिलों में तो दलित-गरीबों को जमीन छोड़ने की नोटिस भी थमा दी गई है. हर कोई जानता है कि इस तरह की जमीन पर पूरे राज्य में दबंगों का कब्जा है, लेकिन उनपर हाथ डालने का साहस सरकार के पास नहीं है. उदाहरणस्वरूप बेगूसराय के कांवर झील के बड़े हिस्से को दबंगों ने हड़प लिया, लेकिन दबंगों पर नकेल कसने की बजाए नीतीश सरकार गरीबों को निशाना बना रही है. हमारी पार्टी इसका पुरजोर विरोध करती है.

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