विशेष : ‘राष्ट्र’ के प्रति समर्पित होने का दिन है ‘गणतंत्र दिवस’ - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 25 जनवरी 2020

विशेष : ‘राष्ट्र’ के प्रति समर्पित होने का दिन है ‘गणतंत्र दिवस’

जी हां, इस दिन देश के हर नागरिक को अपने देश के प्रति निष्ठावन होने का संकल्प लेने का दिन है। हर भारतीय के लिए राष्ट्र तभी सर्वोपरि होगा, जब इसकी महत्ता को वह समझेगा। और यह तभी संभव हो पायेगा ज बवह सारे मतभेद, ईष्र्या, द्वेष, धर्म जाति से उपर अपने को रखेगा। शांति, सौहार्द और विकास के लिए हर मोड़ पर अपनी कृतज्ञता प्रकट करेगा। अगर यह सब करने में सफल हुए तो वह दिन दूर नहीं जब भारत एक बार फिर से विश्वगुरू बन जाएगा
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इसमें कोई शक नहीं, आजादी के 70 सालों में कुछ वाकयों को छोड़ दें तो दुनिया में देश का मान बढ़ा है। लेकिन अफसोस तब होता है जब अपने ही देश में सेना पर सवाल उठाए जा रहे हैं। महापुरुषों के बनाएं संविधान को हाथ में लेकर देश के टुकड़े टुकड़े करने के नारे लगाए जा रहे हैं। बात बात में संविधान का मज़ाक उड़ाया जा रहा है। इससे बड़ी शर्म की बात और क्या होगी जब देश अपने गणतंत्र के 70 साल पूरे होने का जश्न मना रहा है, तब देश के कुछ लोग गणतंत्र को कमज़ोर करने की कोशिश कर रहे हैं। जो लोग संविधान को खतरे में बता रहे हैं, वो संविधान के तहत चुनी गई सरकार को ही नकार रहे हैं। वो संविधान के तहत संसद में पास किए गए कानून का ही विरोध कर रहे हैं। अपने अधिकार की लड़ाई के लिए दूसरों के मौलिक अधिकारों का हनन कर रहे हैं। और जाने-अनजाने देश विरोधी ताकतों की सहायता भी कर रहे हैं। विरोध और आपत्ति दर्ज कराने के लिए इस देश में अदालतें हैं, लेकिन उनपर भी अब शक किया जाता है। और तो और, बच्चों को भी राजनीति का मोहरा बनाया जा रहा है।  मोबाइल फोन का इस्तेमाल बढ़ा है, लेकिन बिना पूरी जानकारी लिए किसी भी मुद्दे पर बोलने की आदत भी बढ़ गई है। अगर 70 साल के गणतंत्र की यही उपलब्धि है तो वाकई हमें सोचना होगा कि हम किस दिशा में जा रहे हैं। मतलब साफ है इन 70 वर्षों के दौरान भारत राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से पूरी तरह बदल चुका है। लेकिन आज भी कुछ लोग हैं जो इस बदलाव को स्वीकार नहीं करना चाहते। ऐसे लोग चाहते हैं कि भारत हमेशा गुलाम बना रहे। इन लोगों को टुकड़े टुकड़े गैंग से भी समर्थन मिलता है और पाकिस्तान से भी। ऐसे लोग कश्मीर को हमेशा धारा 370 वाली ज़ंजीरों में जकड़कर रखना चाहते हैं। संविधान को हाथ में लेकर ही देश के टुकड़े टुकड़े करने के नारे लगाए जा रहे हैं। आतंकवादियों की फांसी का विरोध किया जा रहा है।  सवाल यह है कि क्या देश के महापुरुषों ने हमारे संविधान का निर्माण इसी तरह की मानसिकता के लोगों के लिए किया था, जो अपने ही देश के संविधान का मज़ाक उड़ा रहे हैं। आप सोचिए ये सब देखकर आज देश के संविधान निर्माताओं की आत्माएं कितनी दुखी हो रही होंगी। भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, डॉक्टर बी आर अंबेडकर, सुभाष चंद्र बोस और महात्मा गांधी अगर आज देश की हालत देखते तो कितने दुखी होते। सरदार वल्लभ भाई पटेल ने कितनी मेहनत से देश की 565 रियासतों को एक किया था। अगर आज वो जिंदा होते तो देश के हालात देखकर माथा पकड़ लेते। क्योंकि जिन लोगों के लिए उन्होंने इतनी पीड़ा उठाई आज वही लोग देश से आज़ादी मांग रहे हैं। 

टुकड़े टुकड़े गैंग की देश विरोधी मानसिकता को देखकर कहा जा सकता है 70 वर्ष पहले भारत के लोग गरीब ज़रूर थे लेकिन उनमें ईमानदारी, आदर्श और नैतिकता थी। उनके लिए जाति, धर्म व विचारधारा से पहले देश था। अब तो पहले जैसे हालात भी नहीं है, दुनिया भर में भारत की साख बढ़ी है। 70 वर्षों में भारत की अर्थव्यस्था का आकार 1828 गुना बढ़ चुका है। प्रति व्यक्ति आय भी 293 गुना बढ़ चुकी है। आज़ादी के समय भारत की जनसंख्या लगभग 33 करोड़ थी। लेकिन आज भारत की आबादी 135 करोड़ से ज़्यादा हो चुकी है। वर्ष 1950 में भारत की जीडीपी करीब 10 हज़ार करोड़ रुपये थी जो आज बढ़कर 190 लाख करोड़ रुपये पहुंच चुकी है। 70 वर्ष पहले भारत में प्रति व्यक्ति आय 250 रुपए थी। आज भारत की प्रति व्यक्ति आय 1 लाख 35 हज़ार रुपये हो चुकी है। 1950 में एक किलो आटे की कीमत 10 पैसे हुआ करती थी जबकि ये कीमत आज 30 रुपये से 60 रुपये के बीच हो चुकी है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि 1950 के दौर में 10 पैसे प्रति किलो आटा भी बहुत महंगा माना जाता था। क्योंकि मुगलों व अंग्रेजों ने भारत को इस तरह लूटा था कि भारत के लोगों के पास पैसे ही नहीं हुआ करते थे। इसी तरह 1950 में एक किलो चावल 10 से 20 पैसे में मिल जाता था। और आज चावल की कीमत 40 से 100 रुपये पहुंच चुकी है। उस दौर में लोग शहरी यातायात के लिए तांगा और बैलगाड़ी का इस्तेमाल किया करते थे। मात्र 10 पैसे में कई किमी तक की यात्रा की जा सकती थी लेकिन आज कार, बाइक, ऐरोप्लेन व मेट्रो का युग है, जिसका किराया 10 रुपये से लेकर 10,000 रुपये तक हो चुका है।  1950 के दौर में मनोरंजन के बहुत कम साधन थे। फिल्में देखना एक महंगा शौक माना जाता था। उस समय सिनेमा हॉल की एक टिकट की कीमत करीब 25 पैसे हुआ करती थी। आज के दौर में 200 से 300 रुपये तक की फिल्में देखना बहुत सामान्य बात हो गई है। उस दौर में भारत मे करीब 84 हज़ार लैंडलाइन फोन कनेक्शन हुआ करते थे। इनमें से ज़्यादातर कनेक्शन सरकारी दफ़्तरों में लगे हुए थे। आज हर हाथ में मोबाइल है। इन सबके बावजूद माना कि अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। लेकिन यह पूर्ण तभी हो पाऐगा जब हम स्वतंत्रता के महत्व को समझेंगे। आर्थिक, राजनैतिक, सामाजिक और दार्शनकि आधार पर देश को समझने की कोशिश करनी होगी। देश को और देश के लोगों को पहले ज़ोरबा के रास्ते पर चलना होगा। यानी खुद को समृद्ध बनाना होगा। सारा वैभव हासिल करना होगा, सुख सुविधाएं जुटानी होंगी और फिर जब हम ये सब कर लेंगे तब हमें बुद्ध बनने की चिंता करनी होगी। क्योंकि अगर ऐसा हम कर पाएं तो मुस्सिम आक्रांताओं एवं अंग्रेज़ों द्वारा लूटी गयी भारत की बौद्धिक संपदा और ज्ञान के भंडार को पुनः हासिल कर विश्वगुरू बना जा सकता है। 

आमतौर पर गणतंत्र दिवस को लोग एक छुट्टी वाले दिन के तौर पर मनाते हैं, लेकिन हम चाहते हैं कि गणतंत्र दिवस देश के लिए सिर्फ एक छुट्टी वाला दिन बनकर न रह जाए। हम आपके विचारों में एक सकारात्मक बदलाव लाना चाहते हैं। एक मशहूर वाक्य है ’’मत पूछो कि देश ने आपको क्या दिया, ये बताओ कि आपने देश को क्या दिया?’’ देश के बारे में सोचने की शुभ शुरुआत करने के लिए गणतंत्र दिवस से बेहतर कोई और दिन नहीं हो सकता। आप चाहें तो देश की भलाई के लिए आज से ही अपने अंदर कुछ बदलाव ला सकते हैं। इसके लिए सबसे पहले महिलाओं के सम्मान की रक्षा करने का प्रण ले सकते हैं। नफरत की राजनीति करने वालों से दूरी बना सकते हैं और उन्हें ऐसा करने से रोक सकते हैं। सड़क पर घायल या ज़रूरतमंद लोगों की मदद करने की प्रतिज्ञा कर सकते हैं। देश को स्वच्छ बनाने के लिए कचरा सड़क पर ना फेंकने की कसम खा सकते हैं। सड़कों और दीवारों पर ना थूकने का संकल्प ले सकते है। देश के सामाजिक माहौल को बेहतर बनाने के लिए अभद्र भाषा के इस्तेमाल से बचने का संकल्प ले सकते है। साल में कम से कम एक पौधा लगाने की संकल्प ले सकते है। ट्रैफिक नियमों के पालन के साथ साथ बिजली और पानी की बर्बादी से बचने का संकल्प ले सकते है।एंबुलेंस और अन्य आपातकालीन वाहनों को रास्ता देने के लिए थोड़ा सा कष्ट उठा लेना का संकल्प ले सकते है। 

क्योंकि कर्तव्य-पालन के प्रति सतत जागरूकता से ही हम अपने अधिकारों को निरापद रखने वाले गणतंत्र का पर्व सार्थक रूप में मना सकेंगे और तभी लोकतंत्र और संविधान को बचाये रखने का हमारा संकल्प साकार होगा। राजनीतिक व्यवस्था समाज को चुस्त, ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ, अनुशासित कानून  बनाने के लिए सरकार पर दबाव बनाना होगा। प्रत्येक नागरिक चाहे जो कोई हो बेरोजगार या अमीर, सेवादार या किसान सबको अपनी प्रत्यक्ष जायदाद का खुलासा करनी चाहिए। जो भी चल-अचल संपत्ति है उसे सर्वाजनिक करनी होगी। लेकिन अफसोस है कि हमारी ज्यादातर प्रतिबद्धताएं व्यापक न होकर संकीर्ण होती जा रही हैं जो कि राष्ट्रहित के खिलाफ हैं। राजनैतिक मतभेद भी नीतिगत न रह कर व्यक्तिगत होते जा रहे हैं। जनतंत्र-गणतंत्र की प्रौढ़ता को हम पार कर रहे हैं, लेकिन आम जनता को उसके अधिकार, कर्तव्य, ईमानदारी समझाने में पिछड़े, कमजोर, गैर जिम्मेदार साबित हो रहे हैं। चूंकि स्वयं समझाने वाला प्रत्येक राजनीतिक पार्टियां, नेता स्वयं ही कर्तव्य, ईमानदारी से अछूते, गैर जिम्मेदार हैं, इसलिए असमानता की खाई गहराती जा रही है और असमानता, गैरबराबरी बढ़ गयी है। जबकि बराबरी के आधार पर ही समाज की उत्पत्ति हुई थी। गणतंत्र के सूरज को राजनीतिक अपराधों, घोटालों और भ्रष्टाचार के बादलों ने  घेर रखा है। हमें किरण-किरण जोड़कर नया सूरज बनाना होगा। हमने जिस संपूर्ण संविधान को स्वीकार किया है, उसमें कहा है कि हम एक संपूर्ण  प्रभुत्व-संपन्न, समाजवादी, पंथ-निरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य हैं। भ्रष्टाचार वह जहर है जिसने पूरी मानवता व नैतिकता को स्वाहा कर दिया है। जिस देश मे दूध की नदियां बहती थी, वहां आज भ्रष्टाचार की गंगोत्री बहती है। संविधान लागू होने के सात दशक बाद भी हमारे संविधान के तीन आधारभूत स्तम्भो विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका पर भ्रष्टाचार का काला साया मंडरा रहा है। पूरी व्यवस्था प्रदूषित होती जा रहा है। आज आजाद हुए सात दशक पार कर गये, अब तक हमने बहुत कुछ हासिल किया है, वहीं हमारे इन संकल्पों  में बहुत कुछ आज भी आधे-अधूरे सपनों की तरह हैं।  



--सुरेश गांधी--

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