परीक्षाओं में बेहतर अंक जीवन का आधार तय नहीं कर सकते : मोदी - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 21 जनवरी 2020

परीक्षाओं में बेहतर अंक जीवन का आधार तय नहीं कर सकते : मोदी

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नयी दिल्ली, 20 जनवरी, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि स्कूली परीक्षाओं अथवा किसी अन्य परीक्षा में पाए गए अंक जीवन के आधार तय नहीं कर सकते हैं और छात्रों को इस भावना से बाहर निकलना चाहिए कि परीक्षाओं में सफलता या असफलता ही सब कुछ तय करती है। श्री मोदी ने सोमवार को यहां तालकटोरा स्‍टे‍डियम में ‘परीक्षा पे चर्चा 2020’ के दौरान विद्यार्थियों के साथ संवाद करते हुए छात्रों का मनोबल बढ़ाया और कहा,“अंक ही जीवन नहीं हैं। इसी तरह हमारे पूरे जीवन का निर्णय परीक्षा नहीं कर सकती। यह आगे बढ़ने का कदम है, अपने जीवन में आगे बढ़ने का एक महत्वपूर्ण कदम है। मैं सभी माता-पिता से आग्रह करता हूं कि वे अपने बच्चों से यह न कहें कि अंक ही सब कुछ हैं। अगर अच्छे अंक नहीं मिलते तो ऐसा व्यवहार न करें कि आप सब कुछ खो चुके हैं। आप किसी भी क्षेत्र में जा सकते हैं। हमारे यहां अपार अवसर मौजूद हैं।” उन्होंने कहा, “ परीक्षा महत्वपूर्ण है, लेकिन वह पूरा जीवन नहीं है। आपको इस मानसिकता से बाहर आना होगा। जब एक विद्यार्थी ने अध्‍ययन या पढ़ाई में रुचि घट जाने से संबंधित सवाल पूछा तो प्रधानमंत्री ने कहा कि अक्‍सर कई ऐसे कारणों से विद्यार्थियों का उत्‍साह घट जाता है जो उनके वश में नहीं होता है। इसका एक कारण यह भी है कि वे अपनी-अपनी अपेक्षाओं को बहुत अधिक महत्‍व देने की कोशिश करने लगते हैं। प्रधानमंत्री ने विद्यार्थियों से उत्‍साह घट जाने के कारण का पता लगाने को कहा और इसके साथ ही इस बात पर मंथन करने को कहा कि आखिरकार इन परिस्थितियों से कैसे निपटा जाना चाहिए। उन्‍होंने चंद्रयान एवं इसरो की अपनी यात्रा से जुड़े हालिया वृतांत का उदाहरण दिया। प्रधानमंत्री ने कहा, “प्रेरणा और उत्‍साह घट जाना अत्‍यंत सामान्‍य बात है। प्रत्‍येक व्‍यक्ति को इन भावनाओं से गुजरना पड़ता है। इस संबंध में, मैं चंद्रयान के दौरान इसरो की अपनी यात्रा और हमारे अत्‍यंत मेहनती वैज्ञानिकों के साथ बिताए गए समय को कभी भी नहीं भूल सकता।” उन्‍होंने कहा, “हमें विफलताओं को गहरे झटकों अथवा बड़े अवरोधों के रूप में नहीं देखना चाहिए। हम जीवन के प्रत्‍येक पहलू में उत्‍साह को शामिल कर सकते हैं। किसी भी तरह का अस्‍थायी झटका लगने का मतलब यह नहीं है कि हम जीवन में सफल नहीं हो सकते हैं। दरअसल, कोई भी झटका लगने का मतलब यही है कि अभी सर्वोत्‍तम हासिल करना बाकी है। हमें अपनी विपरीत परिस्थितियों को एक उज्ज्वल भविष्य की ओर कदम बढ़ाने के रूप में बदलने की कोशिश करनी चाहिए।” प्रधानमंत्री ने यह भी उदाहरण दिया कि वर्ष 2001 में भारत और ऑस्‍ट्रेलिया के बीच हुए क्रिकेट मैच के दौरान राहुल द्रविड़ और वीवीएस लक्ष्‍मण ने किस तरह से अत्‍यंत कठिन परिस्थितियों में जुझारू बैटिंग कर भारत को हार के खतरे से बाहर कर शानदार जीत दिलाई थी। उन्होंने एक और उदाहरण दिया कि किस तरह से भारतीय गेंदबाज अनिल कुंबले ने स्‍वयं को लगी गहरी चोट के बावजूद शानदार प्रदर्शन कर भारत का गौरव बढ़ाया था। “यही सकारात्‍मक प्रेरणा की अद्भुत ताकत है।”  

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