अचला सप्तमी पर श्रद्धालुओं ने लगायी आस्था की डुबकी - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 1 फ़रवरी 2020

अचला सप्तमी पर श्रद्धालुओं ने लगायी आस्था की डुबकी

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प्रयागराज,01 फरवरी.  धर्म, दर्शन, संस्कृति, सभ्यता, अध्यात्म एवं मोक्षकांक्षी जीवन की प्राणधारा गंगा, श्यामल यमुना और अन्त: सलिला स्वरूप में प्रवाहित सरस्वती के त्रिवेणी तट पर माघ मास के “अचला सप्तमी” पर्व पर श्रद्धालुओं की आस्था की डुबकी लगायी। त्रिवेणी और गंगा तट पर श्रद्धालु पुण्य की डुबकी लगा अपने को धन्य मान रहे हैं। माघ मास में अचला सप्तमी का अपना विशेष महत्व होता है। महिलायें स्नान कर दीप दान के अतिरिक्त कपूर, धूप, लाल पुष्प इत्यादि से भगवान सूर्य का पूजन किया। परिवार की सुख एवं समृद्धि की प्रार्थना करगंगा को दूध एवं पुष्प अर्पित कर रहा है तो कोई सूर्य देव को अर्ध्य देकरनिरोग रहने की कामना कर रही है। पुराणों में अचला सप्तमी का बहुत महात्म बताया गया है। अचला सप्तमी को सूर्य सप्तमी, रथ आरोग्य सप्तमी, सूर्यरथ सप्तमी आदि नामों से भी जाना जाता है। रविवार के दिन अचला सप्तमी होने से इसका महत्व और प्रभाव और बढ़ जाता है। यह सप्तमी रविवार के दिन आती हो तो इसे अचला भानू सप्तमी भी कहा जाता है। ऐसे में माघी सप्तमी को सूर्य जयंती के नाम से भी जाना जाता है। मुख्य स्नान नहीं होने के कारण घाट पर अधिक भीड़ नहीं होने से महिलाएं एक जुट बनाकर अचला सप्तमी की कहानी भी कहती देखी गयी। पौराणिक कथा के अनुसार एक गणिका नामक महिला ने अपने पूरे जीवनकाल में कभी कोई दान-पुण्य कार्य नहीं किया था। जब उसका अंत समय आया तब वह गुय वशिष्ठ मुनि के पास गयी। महिला ने वशिष्ठ मुनि से कहा कि उसने जीवन में कोई पुण्य काम नहीं किया, मोक्ष कैसे मिलेगा। उन्होने बताया कि माघ मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को अचला सपतमी है, इस दिन किसी अन्य दिन की अपेक्षा किया गया दान-पुण्य का हजार गुणा फल मिलता है। गणिका ने इस दिन ब्रत और विधि-विधान से कार्य किया। कुछ दिन बाद गणिका ने शरीर का त्याग किया और उसे स्वर्ग में इन्द्र की अप्सराओं की पधान बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। शास्त्रों में बताया गया है कि माघ का कल्पवास कर रहे कल्पवासियों को अचला सप्तमी पर सूर्यास्त के बाद भी स्नान करना चाहिए। स्नान से पहले उन्हें आक और बेर के सात पत्तों को तेल से भरे दीपक में रख कर अपने सिर के ऊपर से घुमाकर पुण्यसलिला सरोवर में प्रवाहित कर देना चाहिए। शास्त्रों में बताया गया है इसदिन नमक का प्रयोग नहीं करना चाहिए। संगम तट पर स्नान के बाद श्रद्धालु पुरोहितों को दान दे रहे हैं। पुरोहित उन्हें संकल्पित करा दक्षिणा प्राप्त कर रहे हैं। कोई पुरोहित बछिया की पूछ पकड़ कर एक गाय का संकल्पित करवा रहा है। संकल्पित के बाद गाय के मूल्य के बराबर धन लेने के प्रयास में यजमान से किच-किच करते भी देखा गया है। पुरोहित भगवानदीन का कहना है कि अाजकल यजमान भी बहुत चालाक हो गया है। एक हजार का संकल्पित कराने पर मुश्किल से एक सौ रूपया ही देता है। दो दशक पहले तक आने वाले यजमानों से एक माह के माघ मेला में इतनी आय हो जाती थी कि साल भर की गृहस्थी आसानी चलती थी, लेकिन अब वैसा कुछ नहीं रह गया। एक अन्य पुरोहित मयंक ने बताया कि प्रयागराज में गंगा, यमुना और सरस्वती के त्रिवेणी में संगम स्नान कर अन्न्, वस्त्र, धन, गौ आदि का दान करने का विधान बताया गया है। माघ में संगम तट गऊदान का पुराणों में बहुत बड़ा महात्म बताया गया है। शास्त्रों में गंगा स्नान को इस दिन बडी महिमा बतायी गयी है। गंगा स्नान कर विधि विधान से सूर्य देव की आराधना और अर्ध्यदान करने से आयु , अरोग्य एवं संपत्ति की प्राप्ति होती है। इस सप्तमी को सूर्य देव की उपासना तथा व्रत करने से तमाम रोग ठीक हो जाते हैं। वर्तमान समय में भी सूर्य चिकित्सा का उपयोग आयुर्वेदिक और प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति में किया जाता है। विभिन्न वेदों, पुराणों एवं योग शास्त्रों में इस संदर्भ में विस्तार से वर्णित है कि सूर्य की किरणों में रोग निवारण शक्ति होती है। शारिरिक कमजोरी, हड्डियों की कमजोरी या जोड़ों में दर्द जैसी परेशानियों में भगवान सूर्य की आराधना करने से रोग से मुक्ति मिलने की संभावना बनती है। सूर्य की ओर मुख करके सूर्य स्तुति करने से शारीरिक चर्मरोग आदि नष्ट हो जाते हैं। संतान प्राप्ति के लिए भी इस व्रत का महत्व माना गया है। इस व्रत को श्रद्धा तथा विश्वास से रखने पर पिता-पुत्र में प्रेम बना रहता है। 

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