झाबुआ (मध्यप्रदेश) की खबर 25 फ़रवरी - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 25 फ़रवरी 2020

झाबुआ (मध्यप्रदेश) की खबर 25 फ़रवरी

माता शबरी नवधा भक्ति का अनुपम उदाहरण थी, शबरी माता के जन्मोत्सव पर निकाली कलष यात्रा, धुमधाम से मनाया जन्मोत्सव

jhabua news
झाबुआ । जनजातीय विकास मंच झाबुआ के तत्वावधान में फाल्गुन शुक्ल प्रथम 24 फरवरी सोमवार को झाबुआ नगर में माता शबरी के जन्मोत्सव का रंगारंग आयोजन किया गया । इस अवसर पर स्थानीय बस स्टेंड पर टंट्या मामा की प्रतिमा के समक्ष मुख्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया । स अवसर पर खेमसिंह जमरा द्वारा इस पावन अवसर पर माा शबरी  के जीवन वृतांत पर विस्तार से प्रकाश डाला गया ।उन्होने कहा कि  रामायण, महाभारत काल से ही वनवासी समाज हिन्दु समाज का अभिन्न अंग रहा है। वर्तमान समय में राष्ट्र विरोघी ताकतों द्वारा देश को तोडने के लिये सोची समझी साजिश के तहत इस समाज सहित अनेक जातियों को हिन्दु समाज से पृथक बताने का दुष्प्रचार किया जारहा है । पर्वतसिंह मकवाना ने माता शबरी को नवधा भक्ति का अनुपम उदाहरण बताते हुए शबरी के जीवन वृत पर बोलते हुए कहा कि शबरी श्री राम की परम भक्त थीं। जिन्होंने राम को अपने झूठे बेर खिलाए थे। शबरी का असली नाम श्रमणा था। वह भील समुदाय के शबर जाति से संबंध रखती थीं। इसी कारण कालांतर में उनका नाम शबरी पड़ा। उनके पिता भीलों के मुखिया थे। श्रमणा का विवाह एक भील कुमार से तय हुआ था, विवाह से पहले कई सौ पशु बलि के लिए लाए गए। जिन्हें देख श्रमणा बड़ी आहत हुई.... यह कैसी परंपरा? ना जाने कितने बेजुबान और निर्दोष जानवरों की हत्या की जाएगी... इस कारण शबरी विवाह से 1 दिन पूर्व भाग गई और दंडकारण्य वन में पहुंच गई।दंडकारण्य में मातंग ऋषि तपस्या किया करते थे, श्रमणा उनकी सेवा तो करना चाहती थी पर वह भील जाति की होने के कारण उसे अवसर ना मिलाने का अंदेशा था। फिर भी शाबर सुबह-सुबह ऋषियों के उठने से पहले उनके आश्रम से नदी तक का रास्ता साफ कर देती थीं, कांटे चुनकर रास्ते में साफ बालू बिछा देती थी। यह सब वे ऐसे करती थीं कि किसी को इसका पता नहीं चलता था। एक दिन ऋषि श्रेष्ठ को शबरी दिख गई और उनके सेवा से अति प्रसन्न हो गए और उन्होंने शबरी को अपने आश्रम में शरण दे दी। जब मतंग का अंत समय आया तो उन्होंने शबरी से कहा कि वे अपने आश्रम में ही भगवान राम की प्रतीक्षा करें, वे उनसे मिलने जरूर आएंगे। मतंग ऋषि की मौत के बात शबरी का समय भगवान राम की प्रतीक्षा में बीतने लगा, वह अपना आश्रम एकदम साफ रखती थीं। रोज राम के लिए मीठे बेर तोड़कर लाती थी। बेर में कीड़े न हों और वह खट्टा न हो इसके लिए वह एक-एक बेर चखकर तोड़ती थी। ऐसा करते-करते कई साल बीत गए। एक दिन शबरी को पता चला कि दो सुंदर युवक उन्हें ढूंढ रहे हैं, वे समझ गईं कि उनके प्रभु राम आ गए हैं ।. उस समय तक वह वृद्ध हो चली थीं, लेकिन राम के आने की खबर सुनते ही उसमें चुस्ती आ गई और वह भागती हुई अपने राम के पास पहुंची और उन्हें घर लेकर आई और उनके पांव धोकर बैठाया। अपने तोड़े हुए मीठे बेर राम को दिए राम ने बड़े प्रेम से वे बेर खाए और लक्ष्मण को भी खाने को कहा। लक्ष्मण को जूठे बेर खाने में संकोच हो रहा था, राम का मन रखने के लिए उन्होंने बेर उठा तो लिए लेकिन खाए नहीं। इसका परिणाम यह हुआ कि राम-रावण युद्ध में जब शक्ति बाण का प्रयोग किया गया तो वे मूर्छित हो गए थे, तब इन्हीं बेर की बनी हुई संजीवनी बूटी उनके काम आयी थी। मुख्य कार्यक्रम के पश्चात माता शबरी के भजनों की समुधर लहरियों के साथा नगर के मुख्य मार्ग से होते हुए एक भव्य शोभायात्रा निकाली गई जिसमे नगर के गणमान्य नागरिकों सहित माताओं बहिनों ने कलश यात्रा के रूप  मे ंसहभागिता की । राजवाडा चैक स्थित श्रीराम मंदिर पर माता शबरी के बैर का प्रतिकात् मक भोग अर्पित कर कार्यक्रम का समापन किया गया । इस कार्यक्रम की सफलता के लिये आयोजन समिति के पर्वतसिंह मकवाना, मुकेश अजनार, अल्केश मेडा, राकेश कटारा ने नगर की जनता का धन्यवाद ज्ञापित किया ।


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