प्रमोशन में आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर आवाज बुलंद करना जरुरी - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2020

प्रमोशन में आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर आवाज बुलंद करना जरुरी

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पटना,14 फरवरी। लोकतान्त्रिक जन पहल, बिहार के बैनर तले प्रमोशन में आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर आवाज बुलंद करने के उद्देश्य से हजारों की संख्या में शनिवार 15 फरवरी'2020 को 3.00 बजे डाक बंगला चौराहा पर जुटेंगे। दलितों-आदिवासियों को सरकारी नौकरी में प्रमोशन में मिलने वाले आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के 7 फरवरी'2020, के फैसले से आरक्षण विरोधियों का मनोबल बढ़ा है। सुप्रीम कोर्ट का यह कहना कि आरक्षण का मामला सरकारों की मनमर्जी पर है,उचित नहीं है। सुप्रीम कोर्ट को केन्द्र और राज्य सरकारों से पूछना चाहिए कि उनके यहां विभिन्न संस्थाओं में दलितों-आदिवासियों का क्या प्रतिशत है। क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 16(4) और 16(4-A) का संबंध दलितों-आदिवासियों के प्रतिनिधित्व से है। यदि प्रतिनिधित्व कम है, तो पूरा करने का आदेश देना चाहिए। उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार ने बिहार में दलित- आदिवासी सरकारी कर्मचारियों-अफसरों को प्रमोशन में आरक्षण का मामला लम्बे समय से कोर्ट में उलझा कर रोक रखा है। लोकतान्त्रिक जन पहल का मानना है कि नरेन्द्र मोदी और नीतीश सरकार के द्वारा सुप्रीम कोर्ट में आरक्षण से संबंधित मुकदमों में जानबूझकर लगातार लापरवाही बरती जाती रही है। यह जगजाहिर है कि भाजपा-आरएसएस की विचारधारा आरक्षण विरोधी है। चुनावी दबाव के चलते भाजपा नेताओं को आरक्षण के पक्ष में बोलने की मजबूरी है। यही कारण है कि जब-जब आरएसएस के नेताओं का आरक्षण विरोधी बयान आया, भाजपा चुप्पी साधे रही। कोर्ट की आड़ में भाजपा के द्वारा आरक्षण पर लगातार किये जा रहे हमले का डट कर मुकाबला करना है। पहले मेरिट ट्रांसफर पर रोक लगाई गई और अब प्रमोशन में आरक्षण को खत्म करने की साज़िश की जा रही है। आरक्षण का अधिकार सामाजिक रुप से हमारा प्रमुख मानवाधिकार है। यह व्यक्ति की गरिमा और विकास से तो जुड़ा ही है लेकिन लोकतंत्र में यह मौलिक रुप से प्रतिनिधित्व के सवाल से जुड़ा है। संविधान का अनुच्छेद 16(4) और 16(4-A) के तहत राज्य का यह दायित्व है कि यदि दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों व महिलाओं का राज्य की विभिन्न संस्थाओं में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है, तो उनके लिए सरकार आरक्षण का प्रावधान करेगी। सवाल उठता है कि क्या दलितों-आदिवासियों का सरकार में सभी श्रेणी के पदों पर पर्याप्त प्रतिनिधित्व है?इसका सीधा ज़बाब है नहीं। इसलिए साथियों, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मद्देनजर हमें अपनी आवाज बुलंद करनी होगी। जब तक भाजपा गठबंधन की सरकार रहेगी आरक्षण को कमजोर करने, खत्म करने की साज़िश रची जायेगी। इसलिए भाजपा गठबंधन के खिलाफ खड़ा होना आज हमारा सबसे बड़ा कर्तव्य है।

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