और वह दुबला पतला मज़दूर दिल्ली से बिहार पांव-पांव चलकर बेगूसराय घर आना चाह रहा था। अपने घर की माटी तक पहुंचने के पहले ही भूख से दम तोड़ दिया। उसको न घर मिला और न ही परिजन..
बेगूसराय,29 अप्रैल। अगर एक-दो दिन बाद देश में लॉकडाउन लागू होता तो बहुतेरे प्रवासी छात्र और मजदूर घर वापसी कर जाते। प्रवासी श्रमिकों को पैदल घर आने को मजबूर नहीं होना पड़ता। रामजी महतो ने देखा कि प्रवासी श्रमिकों में से ही साइकिल खरीद घर जाने लगे हैं। कुछ पैदल ही घर जा रहे हैं,तो वह केवल हिम्मत के बल पर दिल्ली से पैदल बिहार आना शुरू कर दिया।उसका अंजाम उसे जान गंवाकर देना पड़ा। बताया गया कि दिल्ली सहित अन्य प्रदेशों में रहने वाले बिहार के मजदूर पैदल, साईकिल पर वहां से निकल रहे हैं। प्रदेशों में रहने वाले बिहारी मजदूरों के पास न तो खाने की सामग्री है,और न ही पैसा है। ऐसे में वह भूखे पेट प्रदेशों से निकल रहे हैं। दिल्ली से बेगूसराय अपने घर के लिए निकले रामजी महतो भी। रामजी महतो 850 किमी से ज्यादा का सफर तय कर चुका था, लगभग 375 किमी का सफर बाकी था। अपने गांव लौटने की आस में दिल्ली से पैदल निकला रामजी महतो जब बनारस के मोहनसराय क्षेत्र पहुंचा तो वह सड़क पर बेसुध होकर गिर पड़ा।मोहनसराय क्षेत्र के ग्रामीणों के अनुसार रामजी सड़क पर गिरा था तो उसकी सांस तेज चल रही थी। उसके जेब मे एक पैसा नहीं, सिर्फ मोबाइल था। बनारस में किसी गुमटी के पास बेहोश होकर गिर गए। वहाँ से गुज़र रहे किसानों ने मोहनसराय OP के गौरव पांडेय को खबर दी।सूचना पाकर मौके पर मोहनसराय चौकी प्रभारी आए । एंबुलेंस कर्मी रामजी को कोरोना संदिग्ध समझकर उसे हाथ भी नहीं लगा रहे थे।रामजी सड़क पर तड़पता रहा तो मौके पर पहुंचे मोहनसराय चौकी प्रभारी ने एंबुलेंस कर्मियों को फटकारा। जिसके बाद उसे लेकर अस्पताल ले जाया गया।लेकिन तब तक बदनसीब रामजी की मौत हो चुकी थी। वाहन चालक रामजी की मौत के बाद उसके पास से मिले मोबाइल नंबर की मदद से पुलिस ने उसकी बहन नीला देवी और मां चंद्रकला से बात की।दोनों ने कहा कि उनकी आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि वह बनारस आ पाएं। ऊपर से लॉकडाउन में परमिशन के लिये अफसरों तक चक्कर लगाने में वह असमर्थ हैं। शव का पोस्टमार्टम हुआ तो पता चला कि रामजी महतो के पेट में एक भी दाना नहीं था। लॉकडाउन के शुरूआती दिनों के बाद उसकी हालत ऐसी हो गई थी कि भूख भी नहीं लग रही थी।मरने के बाद बेगूसराय के रामजी महतो का अंतिम संस्कार पुलिसवालों ने बनारस में ही कर दिया।बदनसीबी ऐसी कि दिल्ली से पैदल बेगूसराय जा रहे रामजी महतो की मौत के बाद उसकी मां और बहन ने बनारस आकर शव भी नहीं ले सके, क्योंकि उनके पास ना तो पैसे थे ना ही कोई साधन सहारा। रामजी महतो दिल्ली में वाहन चालक था। विडम्बना है कि ऐन मौके पर वाहन चालक रामजी महतो को चालक बिरादरी का साथ नहीं मिला। एंबुलेंस कर्मी रामजी को कोरोना संदिग्ध समझकर उसे हाथ भी नहीं लगा रहे थे।रामजी सड़क पर तड़पता रहा तो मौके पर पहुंचे मोहनसराय चौकी प्रभारी ने एंबुलेंस कर्मियों को फटकारा।जिसके बाद उसे लेकर अस्पताल ले जाया गया। जो कान न आया।वह तो राह में ही दम तोड़ दिया।
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