लेखकों और कवियों के साथ बीत रहा लॉकडाउन का यह समय - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 16 अप्रैल 2020

लेखकों और कवियों के साथ बीत रहा लॉकडाउन का यह समय

लॉकडाउन में किताबें दें रही साथ
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घर पर रहते हुए हम अपने साथ-साथ, समाज और देश की सुरक्षा भी कर रहे हैं, पर एकांतवास का यह समय हमारे अंदर बहुत सारे परिवर्तन भी ला रहा है। घर और बाहर के सन्नाटों के बीच हमारे भीतर गुस्सा, खीझ या उलझनों का पैदा होना स्वाभाविक है। इसे दूर करने या इससे बाहर निकलने में किताबें बहुत मददगार होती हैं। किताबें अपने साथ हमें अपनी दुनिया में ले जाती हैं, हमारी सोच और समझ के दायरे को बढ़ाती हैं। लॉकडाउन में राजकमल प्रकाशन समूह लगातार यह कोशिश कर रहा है कि पाठक को न केवल किताबों बल्कि लेखकों का साथ भी लगातार मिलता रहे। #StayAtHomeWithRajkamal के तहत फेसबुक लाइव के जरिए लॉकडाउन में किताबों, लेखकों और कलाकारों को घर बैठे लोगों से जोड़ने की सकारात्मक पहल में राजकमल प्रकाशन समूह लगातार सक्रिय है। इसी सिलसिले में राजकमल प्रकाशन के फ़ेसबुक लाइव के जरिए गुरूवार का दिन लेखकों और कवियों के साथ बीता। 

बातें किताबों की, बातें लेखकों की
भीष्म साहनी अपनी आत्मकथा ‘आज के अतीत’ में एक किस्सा सुनाते हैं। किस्सा हिन्दी साहित्य के दो महत्वपूर्ण स्तंभ या यूं कहें कि गुरू और शिष्य से जुड़ा है। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में एक शाम हजारीप्रसाद द्विवेदी और नामवर सिंह टहलते हुए वापिस घर लौट रहे थे। हजारी प्रसाद द्विवेदी के घर के दरवाज़े पर एक पैकेट रखा था। पैकेट देखकर अंदाज़ा लगाना आसान था कि इसमें किताबें हैं। दरवाज़े तक पहुँचने से पहले ही दोनों लपक कर भागे उस पैकेट को उठाने के लिए। जिसने पैकेट पहले लिया वही पहला हक़दार होगा किताब पढ़ने का। इस किस्से से दोनों के भीतर किताबों के प्रति जो प्रेम था उसका तो पता चलता ही है,  साथ ही दोनों लेखकों की सहजता का भी पता चलता है। गुरुवार की दोपहर साहित्यकारों के इसी गुण-धर्म पर बहुत मज़ेदार किस्से साझा किए लेखक धीरेन्द्र अस्थाना ने राजकमल फ़ेसबुक लाइव के जरिए। मुम्बई से फ़ेसबुक लाइव करते हुए उन्होंने अपनी आत्मकथा ‘जीवन का क्या किया’ के जरिए ममता कालिया, रविन्द्र कालिया, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, नागार्जुन, राजेन्द्र यादव और बहुत सारे साहित्यकारों के संबंध में बहुत सारे किस्से सुनाए।

उन्होंने बताया, “दिनमान पत्रिका का पता दस दरियागंज एक एड्रेस नहीं, ब्रांड था।“
अपने जीवन में दिल्ली से मुम्बई की जीवन यात्रा पर बात करते हुए उन्होंने कहा, मायानगरी के बारे में जो भ्रांतियाँ हैं कि यहाँ लेखक की कलम घिस जाती है, लेकिन मेरे जीवन की कहानी यहीं से शुरु होती है। निदा फाज़ली के साथ बिताए अपने पलों को उन्होंने याद करते हुए कहा निदा फाज़ली के साथ शाम में हमेशा नई किताब, घटना या संस्मरण के बारे में जानकारी मिलती थी। राजकमल प्रकाशन फेसबुक लाइव के लेखकों और साहित्यकारों की मुलाकातों के इसी सिलसिले में आज कवि प्रभात ने अपनी किबात “जीवन के दिन” से बहुत ही सुंदर कविताओं का पाठ किया। उनकी कविता ‘बच्चे की भाषा’ बहुत आसानी से भाषा के अंतर को मिटाती हुई उसके मर्म को समझाती है- रेस्तरां में सामने की मेज एक यूरोपियन जोड़ा खाना और पीना सजाए हुए था / मैं चौंक गया जब उनका छह महीने का बच्चा हिन्दी में रोने लगा / उसका युवा पिता उसे अंग्रेज़ी में चुप कराने लगा/ उसे बहलाते-खिलाते हुए बाहर ले गया/ बाहर खुली हवा में / बच्चा दिल्ली की फिजां में मिर्ज़ा ग़ालिब के सबजाऊ गुलों को देखते हुए उर्दू में चुप हुआ... प्रभात की कविताएं हमारे समय को समझने के लिए रास्ता बनाती हुई प्रतीत होती हैं।

कोस कोस पर पानी बदले, चार कोस पर चटनी
रोज़ ग्यारह बजे राजकमल प्रकाशन के फेसबुक पेज पर होने वाले लाइव कार्यक्रम ‘स्वाद-सुख’ में पुष्पेश पंत ने आज बात की स्वादिष्ट चटनियों के बारे।   चटनी व्यंजन तो नहीं लेकिन इसके बिना काम भी नहीं चलता। वैसे तो इसका स्थान नमक से थोड़ा ही उपर है लेकिन शाकाहारी भोजन हो या मांसाहारी भोजन चटनी का साथ दोनों ही के साथ पसंद किया जाता है।

घरेलू चटनियों में – धनिया पत्ते, पुदीना, अमिया, सौंफ, ईमली, और टमाटर की चटनी बहुत आम है। नेपाल में तिल की चटनी बहुत मशहुर है तो पहाड़ों में मूंगफली की चटनी। पहाड़ी चटनी में खुबानी और आलूबुखारे की चटनी भी बहुत चाव से खाई जाती है। झारखंड की तरफ परवल की चटनी भी बहुत स्वाद से बनाईं जाती है। वहीं चटनी राहत जान का जिक्र यूनानी किताबों में किया गया है। चटनियाँ देश के अलग-अलग प्रांतों में अपना रूप बदलत देती है। राजस्थानी लहसून और लाल मिर्च की चटनी बहुत स्वादिष्ट होती है और आजकल जब ज्यादा कुछ बनाने का मन न हो तो इसके साथ सादा पराठा बहुत आसानी से खाया जा सकता है। पुष्पेश पंत ने कहा, “सूखी चटनियों का अगाध भंडार आंध्र प्रदेश में हैं। गन पाउडर इसमें सबसे ज्यादा मशहुर है। इसमें तिल का तेल या घी डालकर इसे गीली चटनी का रूप भी दे सकते हैं।“ 

लॉकडाउन में पाठक पढ़ रहें हैं इनकी कविताएं-
डिजिटल दुनिया में जहाँ दृश्य और आवाज़ लोगों को जोड़ रहे हैं वहीं ई-बुक ने पढ़ने की आदत को नए ढंग से विकसित किया है। राजकमल प्रकाशन समूह की 10 किताबें जो आजकल सबसे ज्यादा पढ़ी जा रही हैं - रश्मिरथी [रामधारी सिंह दिनकर]/ तरकश [जावेद अख्तर] / मेरे बाद [राहत इंदौरी] / साये में धूप [ दुष्यन्त कुमार] / लावा [जावेद अख्तर] / हुंकार [रामधारी सिंह दिनकर] / कुछ इश्क़ किया कुछ काम किया [पीयूष मिश्रा] / पाज़ी नज़्में [गुलज़ार]/ फिर मेरी याद [कुमार विश्वास] / उर्वशी [रामधारी सिंह दिनकर]

राजकमल प्रकाशन लगातार यह कोशिश कर रहा है कि पाठकों के लिए ज्यादा से ज्यादा किताबें ऑनलाइन आसानी से उपलब्ध हो सके। हर रोज के कार्यक्रमों की सूची एक दिन पहले राजकमल प्रकाशन के फेसबुक, ट्वीटर व इंस्टाग्राम पेज पर जारी होती है। राजकमल प्रकाशन समूह के फेसबुक पेज पर पूरे दिन चलने वाले साहित्यिक कार्यक्रम में लगातार लेखक एवं साहित्यप्रेमी लाइव आकर भिन्न तरह की बातचीत के साथ एकांतवाश के अकेलेपन को कम करने की कोशिश कर रहे हैं।

राजकमल प्रकाशन समूह के फ़ेसबुक लाइव कार्यक्रम में अब तक शामिल हुए लेखक हैं - विनोद कुमार शुक्ल, मंगलेश डबराल, हृषीकेश सुलभ, शिवमूर्ति, चन्द्रकान्ता, गीतांजलि श्री, वंदना राग, सविता सिंह, ममता कालिया, मृदुला गर्ग, मृणाल पाण्डे, ज्ञान चतुर्वेदी, मैत्रेयी पुष्पा, उषा उथुप, ज़ावेद अख्तर, अनामिका, नमिता गोखले, अश्विनी कुमार पंकज, अशोक कुमार पांडेय, पुष्पेश पंत, प्रभात रंजन, राकेश तिवारी, कृष्ण कल्पित, धीरेन्द्र अस्थाना, सुजाता, प्रियदर्शन, यतीन्द्र मिश्र, अल्पना मिश्र, गिरीन्द्रनाथ झा, विनीत कुमार, हिमांशु बाजपेयी, अनुराधा बेनीवाल, सुधांशु फिरदौस, व्योमेश शुक्ल, अरूण देव, प्रत्यक्षा, त्रिलोकनाथ पांडेय, आकांक्षा पारे, आलोक श्रीवास्तव, विनय कुमार, दिलीप पांडे, अदनान कफ़ील दरवेश, गौरव सोलंकी, कैलाश वानखेड़े, अनघ शर्मा, नवीन चौधरी, सोपान जोशी, अभिषेक शुक्ला, रामकुमार सिंह, अमरेंद्र नाथ त्रिपाठी, तरूण भटनागर, उमेश पंत, निशान्त जैन, स्वानंद किरकिरे, सौरभ शुक्ला, प्रकृति करगेती, मनीषा कुलश्रेष्ठ, पुष्पेश पंत, मालचंद तिवाड़ी, बद्रीनारायण, मृत्युंजय, प्रभात

राजकमल फेसबुक पेज से लाइव हुए कुछ ख़ास हिंदी साहित्य-प्रेमी : चिन्मयी त्रिपाठी (गायक), हरप्रीत सिंह (गायक), राजेंद्र धोड़पकर (कार्टूनिस्ट एवं पत्रकार), राजेश जोशी (पत्रकार), दारैन शाहिदी (दास्तानगो), अविनाश दास (फ़िल्म निर्देशक), रविकांत (इतिहासकार, सीएसडीएस), हिमांशु पंड्या (आलोचक/क्रिटिक), आनन्द प्रधान (मीडिया विशेषज्ञ), शिराज़ हुसैन (चित्रकार, पोस्टर आर्टिस्ट), हैदर रिज़वी, अंकिता आनंद, प्रेम मोदी, सुरेंद्र राजन, वाणी त्रिपाठी टिक´कू, राजशेखर

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