विश्व पुस्तक और कॉपीराइट दिवस - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 24 अप्रैल 2020

विश्व पुस्तक और कॉपीराइट दिवस

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पूरे विश्व में 23 अप्रैल का दिन विश्व पुस्तक एवं कॉपीराइट दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस मौके पर दुनिया के कोने-कोने से लोगों ने एक दुसरे से किताबों की बातें साझा करते हुए, किताबें पढ़ने की अपील की। लॉकडाउन के समय में किताबों की अलमारियों से गर्द हट रहे हैं। पुरानी किताबों से जुड़ी यादें ताज़ा हो रही हैं तो नई किताबों को पढ़ने-समझने की कोशिश हो रही है। हम सभी घर में बैठे हैं लेकिन किताबों के साथ देश-दुनिया की सैर कर सकते हैं। असल में, हर दिन किताबों का दिन होता है। पाठकों को किताबों और लेखकों से जोड़ने की अपनी प्रतिबद्धता पर खरे उतरने की राजकमल प्रकाशन समूह की कोशिश निरंतर जारी है। राजकमल प्रकाशन समूह फ़ेसबुक लाइव के तहत #StayAtHomeWithRajkamal के अंतर्गत होने वाले कार्यक्रम का आज 32वां दिन था जिसमें अब तक 125 सत्र लाइव हो चुके हैं। लगातार चल रहे इन साहित्यिक कार्यक्रमों में रोज़ लेखक और साहित्य प्रेमियों से मुलाक़ात होती हैं। नई जानकारियाँ साझा होतीं हैं। साथ ही, राजकमल प्रकाशन समूह द्वारा वाट्सएप्प के जरिए हर आस्वाद और हर विधा की रचना को शामिल कर तैयार की गई पुस्तिका प्रतिदिन साझा की जा रही है। अबतक ऐसी पांच पुस्तिका साझा की जा चुकी है। लोगों के मैसेज और उनकी प्रतिक्रियाएँ इस विश्वास को मजबूत कर रहे हैं कि पाठकों को ‘मानसिक खुराक़’ पहुंचाने की हमारी कोशिश सही दिशा में अग्रसर है।

मरंग गोड़ा नीलकंठ हुआ
घरबंदी की शांत दोपहर, बाहर से आती पक्षियों की आवाज़ में लैपटॉप पर चल रहे लाइव वीडियों की आवाज़ घूल-मिल जाती है। कहानियाँ पाठ, संगीत, भिन्न विषयों पर होने वाले लाइव कार्यक्रम लोगों के रोज़ के जीवन का अहम हिस्सा बन चुके हैं। गुरुवार की दोपहर राजकमल प्रकाशन समूह के फ़ेसबुक लाइव पर बातचीत करते हुए लेखक महुआ माजी ने कहा कि पूरे देश में लॉकडाउन का समय है, लोग घबराय हुए हैं। ऐसे में फ़ेसबुक लाइव के जरिए वरिष्ठ लेखकों को सुनना, उनसे जुड़ना सुखद एहसास है। उन्होंने कहा, “इस लॉकडाउन में अच्छा लिखें, अच्छा पढ़ें। समाज के वंचितों के लिए, पीड़ितों के लिए कुछ करने की कोशिश करें ताकि ये दुर्दिन आसानी से कट जाएं।“ लाइव कार्यक्रम में लोगों से बातचीत करते हुए उन्होंने विश्व पुस्तक दिवस की बधाई दी। उन्होंने कहा कि राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाते हुए समाज की सच्चाईयों को बहुत नज़दीक से देखा है। जीवन के इन्हीं अनुभवों को एक उपन्यासकार के नाते अपने लेखन के जरिए पाठकों से साझा करने की कोशिश करती हूँ। लाइव कार्यक्रम में महुआ माजी ने अपने उपन्यास ‘मरंग गोड़ा नीलकंठ हुआ’ से अंश पाठ किया। साथ ही उन्होंने अपने अप्रकाशित उपन्यास से भी एक छोटा सा अंश पढ़कर लोगों को सुनाया। ‘मरंग गोड़ा नीलकंठ हुआ’ उपन्यास यूरेनियम के अवैध खनन से होने वाले नुकसान पर केन्द्रित है। कैसे, अवैध खनन वाले इलाकों में रहने वाले आदिवासियों का जीवन उससे बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। साथ ही वहाँ की प्राकृतिक संपदा का विनास हो रहा है। आज जब लोग घर के अंदर हैं, वहीं बाहर प्रकृति खुलकर हंस रही है। हमें सोचना चाहिए कि हम प्रकृति के साथ कैसा व्यवहार करते रहे हैं। लाइव कार्यक्रम में महुआ माजी ने लोगों से बात करते हुए अपने राजनीतिक जीवन और साहित्यिक जीवन से जुड़ी कई बातें साझा कीं। राजकमल प्रकाशन से महुआ माजी के दो उपन्यास  - मैं बोरिशाइल्ला और मरंग गोड़ा नीलकंठ हुआ प्रकाशित है।

लाली देखने मैं गई मैं भी हो गई लाल
रोज़ सुबह ग्यारह बजे ‘स्वाद-सुख’ का कार्यक्रम लेकर इतिहासकार पुष्पेश पंत राजकमल प्रकाशन समूह के फ़ेसबुक पेज पर लाइव आते हैं। आज के कार्यक्रम में उन्होंने टमाटर के गुण और उसके इस्तेमाल पर विस्तार से चर्चा की। मैक्सिको के आसपास के इलाकों से निकलकर टमाटर आज पूरे विश्व में तरह-तरह से अपनी लाली, अपनी खटास और अपना स्वाद बिखरे रहा है। पर, अक्सर इसका इस्तेमाल सिर्फ़ सब्ज़ियों में खटास बढ़ाने के लिए ही किया जाता है। पुष्पेश पंत ने लाइव कार्यक्रम में बात करते हुए कहा कि, “व्यंजन के रूप में टमाटर को इज़्ज़त कश्मीरी व्यंजनों में मिली है। कश्मीरी व्यंजन ‘गोकशी’ पूर्ण रूप से टमाटर से बना व्यंजन है। वहीं लाल वाजवान के चावल में भी टमाटर की प्रमुखता होती है।“ वनस्पतिशास्त्रियों के मुताबिक टमाटर का रिश्ता सब्ज़ियों से कम, फलों से ज्यादा है। विटामिन सी से भरपूर टमाटर का इस्तेमाल हमारे देश में सब्ज़ी, चटनी, नमकीन के साथ मीठा बनाने में भी किया जाता है। राजस्थान में ताज़ा या सूखी लाल मिर्च के साथ टमाटर को मिलाकर उसे पीस लिया जाता है, तथा उसमें थोड़ा लहसून और तेल मिलाकर उसकी चटनी बनाई जाती है। गुजरात में सेव की सब्जी बहुत प्रचलित है जिसमे बेसनी सेव की मात्रा कम होती है और टमाटर की ज्यादा। पारसी भोजन में ‘सास-माछ’ बड़े चाव से खाया जाता है। यहाँ सास, पत्नी की माँ नहीं बल्कि टमाटर से बना सास हैं जिसमें मछली पकाई जाती है। महाराष्ट्र की तरफ़ टमाटर के इसी सास में थोड़ा नारियल मिला देते हैं। वहीं कर्नाटक और गोवा में इसे खाने के साथ-साथ सूप की तरह पीने का चलन है। कर्नाटक में टमाटर से ‘गोज्जु’ बनाते हैं जिसे रोस्टेट व्यंजनों के साथ खाया जाता है। केरल-तमिलनाडु दोनों प्रांतों में टमाटार वाले चावल बनाएं जाते हैं। हैदराबाद में बघार के टमाटर कुछ-कुछ मिर्ची के सालान जैसा होता है। लखनऊ में टमाटर का रौब वैसा नहीं है जैसा अन्य प्रदेशों में देखने को मिलता है। अवध में भरवां टमाटर बनाया जाता है। आजकल भरवां को शाही बनाने के लिए बावर्ची उसमें पनीर भी मिलाने लगे हैं। खाना बनाने वाले शौकीन लोग टमाटर के पकौडे भी बनाते हैं। दरअसल भरवां टमाटर पर उपर से बेसन की अच्छी परत लगाकर उसे तला जाता है। सिंधी टमाटर की कढ़ी भी बहुत ख़ास व्यंजनों में शामिल है। पुष्पेश पंत ने कहा कि, “बिहार में टमाटर का चोखा बनता है। वैसे भी वहाँ किसी भी रसदार सब्ज़ी में टमाटर मुख्य केन्द्र होता है। असमीया खाने में भी टमाटर का इस्तेमाल खटास के लिए किया जाता है।“ मणिपुर में टमाटर से मिठा व्यंजन ‘खामेन असिनबा थोंगपा’ बनाया जाता है। साबूत टमाटर को पहले चीनी की चासनी में डुबाकर उपर से कलौंजी का छौंक लगाया जाता है।

घरबंदी में सुर और ताल का साथ
गुरुवार की शाम राजकमल प्रकाशन के फ़ेसबुक लाइव से जुड़कर शास्त्रिय संगीत गायक श्रेया अग्रवाल ने अपने गायन से गोधूलि के रंग में शास्त्रीय संगीत के सुरों की छटा बिखेर दी। राजकमल प्रकाशन समूह के लाइव कार्यक्रम से जुड़कर श्रेया अग्रवाल ने हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के रागों की मधुर तान छेड़ते हुए उससे जुड़ी कई महत्वपूर्ण बातें साझा कीं। श्रेया अग्रवाल ने प्रसिद्ध संगीतज्ञ एवं हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीतकार पंडित उदर रामाश्रय झा और ओंकारनाथ ठाकुर की बंदिशों के बारे में बताते हुए राग भूपाली में बंदिश का मधुर गायन किया। राग भूपाली भक्ति राग है। श्रेया ने बातचीत में कहा कि, “शास्त्रीय संगीत को पसंद करने वालों की जिम्मेदारी है कि वो इसे ज्यादा से ज्यादा फैलाएं।“ उन्होंने कहा, “शास्त्रीय संगीत सिर्फ़ बंदिश या ख्याल पर आधारित नहीं है। इसमें सेमी क्लासिकल संगीत भी उतना ही गाया और पसंद किया जाता है जितना शास्त्रीय संगीत। गज़ल, ठूमरी, भजन, दादरा लोगों को बहुत पसंद आते हैं। बहुत बार फ़िल्मी गीतों में इनका प्रयोग किया जाता है।“ अमीर खुसरों का भारतीय शास्त्रीय संगीत में बहुत बड़ा योगदान है। फारसी शब्दों से सज़े उनके तरानों के विषय में जानकारी साझा करते हुए श्रेया ने उनके तराने गा कर सुनाए। साथ ही उन्होंने फ़य्याज़ हाशमी के गीतों का भी गायन किया। अपनी मनमोहक आवाज़ में श्रेया ने – फ़रीदा ख़ानम, बेगम अख़्तर के गीतों को अपने स्वर में प्रस्तुत किया।

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