बिहार : धरनार्थियों ने तख्तियों पर मांग लिखकर मांगों पर जोर दिया - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 29 मई 2020

बिहार : धरनार्थियों ने तख्तियों पर मांग लिखकर मांगों पर जोर दिया

केंद्रीय सरकार के 20 लाख करोड़ के पैकेज में इन महिलाओं को कुछ भी नहीं मिला.स्वयं सहायता समूह के हर समूह को उसकी क्षमता के अनुसार या कलस्टर बनाकर रोजगार का साधन उपलब्ध कराएं....
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पटना (आर्यावर्त संवाददाता) जनज्वार. स्वयं सहायता समूह में शामिल महिलाओं का कर्ज माफ करने, माइक्रो फायनांस कम्पनियों द्वारा दिए गए कर्जों का भुगतान सरकार द्वारा किए जाने, हर समूह को उसकी क्षमता के अनुसार या कलस्टर बनाकर रोजगार का साधन उपलब्ध कराने, एस० एच० जी० (स्वयं सहायता समूह - सेल्फ हेल्प ग्रुप) के उत्पादों की खरीद सुनिश्चित करने, स्वयं सहायता समूह को ब्याज रहित ऋण देने और जीविका कार्यकर्ताओं को न्यूनतम 15 हजार मासिक मानदेय देने की मांग पर चल रहे देशव्यापी आंदोलनों के समर्थन मे महिला संगठन अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन (ऐपवा ) ने भी आज राष्ट्रव्यापी धरना दिया.धरनार्थियों ने तख्तियों पर मांग लिखकर मांगों पर जोर दिया. अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन (ऐपवा) ने स्वयं सहायता समूह में शामिल महिलाओं का कर्ज माफ करने की मांग की है.स्वयं सहायता समूह को ब्याज रहित ऋण देने और जीविका कार्यकर्ताओं को न्यूनतम 15 हजार मासिक मानदेय देने की मांग पर चल रहे देशव्यापी आंदोलनों के समर्थन मे महिला संगठन ऐपवा ने भी आज राष्ट्रव्यापी धरना दिया. ऐपवा महासचिव मीना तिवारी ने कहा कि माइक्रो फायनांस कम्पनियों द्वारा दिए गए एस०एच०जी० (स्वयं सहायता समूह - सेल्फ हेल्प ग्रुप) का कर्जों का भुगतान सरकार के द्वारा किया जाए. उन्होंने दुख व्यक्त किया कि केंद्रीय सरकार के 20 लाख करोड़ के पैकेज में इन महिलाओं को कुछ भी नहीं मिला.आगे उन्होंने सुझाव दिया कि स्वयं सहायता समूह के हर समूह को उसकी क्षमता के अनुसार या कलस्टर बनाकर रोजगार का साधन उपलब्ध कराएं. राजधानी पटना में ऐपवा राज्य कार्यालय में ऐपवा की महासचिव मीना तिवारी व राज्य अध्यक्ष सरोज चौबे, चितकोहरा में राज्य सचिव शशि यादव, कुर्जी में अनिता सिन्हा, मीना देवी, किरण देवी, उषा देवी, नसरीन बानो, कंकड़बाग में अनुराधा आदि महिला नेताओं के नेतृत्व में सैंकड़ों की संख्या में महिलाएं आज के राष्ट्रव्यापी धरना कार्यक्रम में शामिल हुईं. ग्रामीण इलाकों में ऐपवा के इस आह्वान पर स्वंय सहायता समूह से जुड़ी महिलाओं की भागीदारी दिखलाई पड़ी. पटना जिले के धनरूआ, दुल्हिन बाजार, बाढ़, बिहटा आदि प्रखंडों के विभिन्न गांवों में महिलाओं ने 6 सूत्री मांगों पर प्रतिवाद किया. जमुई, भागलपुर, भोजपुर, समस्तीपुर, सुपौल, मुजफ्फरपुर, नवादा, नालंदा, जहानबाद, दरभंगा, अरवल आदि जिलों में बड़ी संख्या में महिलाओं ने हिस्सेदारी निभाई. इस अवसर पर ऐपवा की महासचिव मीना तिवारी ने कहा कि आज पूरे देश में स्वंय सहायता समूह की महिलायें अपनी जायज मांगों पर विरोध-प्रदर्शन कर रही हैं. ऐपवा का उन्हें हर दृष्टिकोण से समर्थन है. केन्द्र सरकार के 20 लाख के पैकेज की घोषणा में स्वयं सहायता समूह के लिए कुछ नहीं है.सरकार की घोषणा में बस इतना है कि एक साल तक उन्हें लोन की किस्त जमा करने से छूट मिलेगी.कर्ज माफ नहीं होगा, बल्कि उन्हें कर्ज जमा करने के समय में छूट दी गई है. एक साल के बाद भी लोन चुकता करना उनके लिए संभव नहीं होगा.दूसरी तरफ स्वयं सहायता समूह चलाने वाली प्राइवेट कम्पनियां अभी भी लोन का किस्त  जबरन वसूल रही हैं. सरकार बड़े पूंजीपतियों के कर्जे लगातार माफ करती जा रही है जबकि जरूरत है कि उनसे कर्ज वसूल किया जाए और गरीब महिलाओं को राहत दी जाए. प्राइवेट कंपनियां पैसा वसूलने में लगी हैं. हमारी मांग है कि यह पैसा सरकार पेड करे. ज्यादातार ग्रुपों को कोई काम नहीं है अथवा महिलायें जो सामान बनाती हैं उसका कोई बाजार नहीं है. लोन भारी इंटरेस्ट पर दिया जाता है. हर समूह को उसकी क्षमता के अनुसार या कलस्टर बनाकर रोजगार का साधन उपलब्ध कराने की जरूरत है. उनके उत्पादों की खरीद सुनिश्चित होनी चाहिए और स्वयं सहायता समूह को ब्याज रहित ऋण देना होगा. राज्य सचिव शशि यादव ने चितकोहरा में महिलाओं को संबोधित करते हुए कहा कि कोविड के खिलाफ जीविका दीदियां जंग के मैदान में हैं, लेकिन सरकार उन्हें क्या देती है? हमारी मांग है कि न्यूनतम 15 हजार रुपया सबको दिया जाए. हम सभी जानते हैं कि अन्य तमाम श्रमिक वर्ग की तरह ही लॉकडाउन के कारण इन महिलाओं की आर्थिक स्थिति भी बुरी तरह बिगड़ गई है. इसलिए सरकार भ्रम फैलाने की बजाए ठोस उपाय करे. ऐपवा की राज्य अध्यक्ष सरोज चौबे ने कहा कि  बिहार सरकार ने हरेक परिवार को 4 मास्क देने का फैसला किया है. इसके निर्माण का काम स्वयं सहायता समूह को देने की घोषणा की गई थी. लेकिन वास्तविकता यह है कि सभी समूहों को यह काम दिया ही नहीं गया. अगर कहीं दिया भी गया तो उनसे मास्क खरीदा नहीं जा रहा है. अगर इस फैसले को गंभीरता से लागू किया जाता तो समूह को एक बड़ी आर्थिक सहायता हो सकती थी. इसे लागू करने की बजाय सिर्फ रोजगार की बड़ी - बड़ी बातें की जा रही हैं.

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