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बुधवार, 27 मई 2020

विशेष आलेख : कोरोना काल में महिलाओं की साइबर सुरक्षा की चुनौतियां

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एक तरफ जहां देश कोविड-19 के खतरे से लड़ रहा है वहीं दूसरी ओर महिलाओं की साइबर सुरक्षा भी पुलिस के लिए एक बड़ी चुनौती बन गई है। लॉक डाउन के कारण घर में रहने वाली महिलाएं, युवतियों व छात्राओं पर साइबर अपराधियों की पैनी नजर है। ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली और वर्क फ्रॉम होम की नई परंपरा ने महिलाओं की साइबर सुरक्षा में बखूबी सेंधमारी की है। हाल में दिल्ली के तीन नामचीन स्कूलों के छात्रों द्वारा सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर आपत्तिजनक चैटिंग प्रकरण और इसके पीछे की असली कहानी के खुलासे ने साइबर सुरक्षा की कमियों को उजागर किया है। इस पूरे प्रकरण ने साबित कर दिया है कि महिलाएं विशेषकर नवयुतियां साइबर अपराधियों की आसान शिकार हैं। ऐसे में अब हमारी पुलिस को लॉक डाउन को सफल बनाने और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कराने के साथ साथ साइबर अपराधियों से भी भिड़ना होगा।

महिला सुरक्षा के लिए केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा भरसक प्रयास के बावजूद महिलाओं की सुरक्षा नाकाफी साबित हो रही है। सरकार महिला सुरक्षा के लिए जो भी कदम उठा लें, लेकिन आधी आबादी को मजबूत साइबर सुरक्षा देना आज भी एक बड़ी चुनौती है। सार्वजनिक स्थलों, घरों और कार्यस्थलों पर महिलाओं के साथ हो रहे अपराधों के समानांतर अब महिलाओं पर बढ़ता साइबर अपराध पुलिस की नई मुसीबत बन चुका है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली सहित देश के अन्य राज्यों में महिलाओं के प्रति साइबर बुलिंग और हैकिंग सहित अन्य साइबर अपराध की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं।

धारा 370 से आजाद होकर केंद्रशासित प्रदेश बने जम्मू-कश्मीर में भी महिलाएं तेजी से साइबर अपराध की शिकार हो रही हैं। हालांकि दादर नागर हवेली, दमनद्वीव, पुडुचेरी, चंडीगढ़ और अरुणांचल प्रदेश ऐसे राज्य हैं जहां महिलाएं ऑफलाइन से अधिक ऑनलाइन प्लेटफार्म पर सुरक्षित हैं। अन्य राज्यों की पुलिस को इनसे सीख लेने की आवश्यकता हैं। इसके विपरीत आसाम, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बंगाल में महिलाओं के प्रति साइबर अपराध के आंकड़े भयावह हैं, जिनमें हर साल बढ़ोत्तरी हो रही है। वास्तव में यह महिलाओं के प्रति हिंसा की नई शक्ल है, जो वायरस की तरह तेजी से समाज में फैलता जा रहा है। महिलाओं के खिलाफ घटने वाले विभिन्न अपराधों में साइबर छेड़छाड़, ब्लैकमेलिंग, फोटो वायरल और ऑनलाइन अपराध तेजी से बढ़ रहे हैं। पुलिस की चिंता अब एकांत और सार्वजनिक स्थलों पर महिलाओं को सुरक्षा देने के साथ साथ साइबर अपराधियों से भी उन्हें सुरक्षित रखने की चुनौतियों में तब्दील हो चुकी है। देश के अधिकांश राज्यों की सुरक्षा एजेंसियों के लिए आज महिलाओं की साइबर सिक्योरिटी एक बड़ी चिंता बन चुकी है। इसमें सरकारों को ज्यादा कामयाबी मिलती नजर नहीं आ रही हैं। दरअसल पुलिसिया सिस्टम में साइबर विशेषज्ञों की कमी ही इस दिशा में सबसे बड़ा लूप होल साबित हो रहा है।

देश में साइबर अपराध के मामलों में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। 2017 में साइबर अपराध के जहां 610 मामले दर्ज किये गए थे वहीं 2018 में यह आंकड़ा बढ़कर 1239 हो गया। इसमें आंध्र प्रदेश, आसाम, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, केरल, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड़ में स्थिति भयावह है, जहां महिलाओं के खिलाफ साइबर अपराध की घटनाओं में तेजी से इजाफा हुआ है। चंद राज्यों को छोड़ दें तो देश का छोटा, बड़ा हर राज्य महिलाओं को मुकम्मल तकनीकि सुरक्षा प्रदान करने में नाकाम रहा है। गली, सड़क, चैराहों के बाद आज महिलाएं ऑनलाइन प्लेटफार्म पर सबसे ज्यादा अपराध का शिकार हो रही हैं। महिला अपराध की इस नई शक्ल में महिलाओं को शारीरिक से ज्यादा मानसिक शोषण से गुजरना पड़ रहा है। सोशल मीडिया पर फेक आईडी, अकाउंट का हैक होना, गलत तरीके से किसी महिला की फोटो या वीडियो वायरल करना और साइबर ट्रोलिंग इस अपराध के मुख्य कारक हैं। स्कूल जाने से लेकर एक नौकरीपेशा महिला तक इस अपराध का शिकार हो रही हैं। महिलाओं की सुरक्षा के लिए मिलने वाली नसीहत कि श्घर बैठो सुरक्षित रहोगी,श् यह सलाह भी साइबर अपराध के आगे घुटने टेक चुकी है। घर बैठकर ऑनलाइन बिजनेस करने वाली महिलाएं भी अब अपराध की गिरफ्त में हैं।

केंद्र शासित प्रदेशों में महिलाओं के खिलाफ हो रहे साइबर अपराध पर नजर डालें तो अंडमान निकोबार में पिछले तीन सालों में 3, चंडीगढ़ में 7, दिल्ली में 53 व लक्षदीप में कुल 1 मामला आया है। निर्भया कांड के लिए पिछले 7 सालों से सुर्खियों में रही दिल्ली महिलाओं की साइबर सुरक्षा के मामले में भी असुरक्षित है। जहां 2016 में 15, 2017 में 20 और 2018 में कुल 18 मामले दर्ज हुए। साइबर अपराध के मामलों में असम देश में शीर्ष पर है। जहां 2018 में 295 मामले साइबर अपराध के आए। जो 2017 में 169 और 2016 में 114 मामले थे। दूसरे स्थान पर ओडिशा है। जहां 2016 में 7 मामले महिलाओं के खिलाफ साइबर अपराध के दर्ज किये गए, जो 2017 में बढ़कर 44 और 2018 में 208 हो गए।

साइबर अपराधियों के बढ़ते हौसले की मुख्य वजह इन अपराधों को रोकने और अपराधियों को दंडित करने के लिए कठोर तथा प्रभावी कानूनों का अभाव है। 2013 में राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति जरूर बनाई गई थी, लेकिन यह भी कागजी घोड़ा से अधिक कुछ साबित नहीं हो रहा है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश में अभी भी साइबर अपराध गैर जमानती नहीं है। इसके लिए अधिकतम सजा मात्र तीन साल है। ऐसे में जरूरी है कि सरकार साइबर अपराध से जुड़े कानूनों में फेरबदल कर इसे कठोर से कठोरतम बनाया जाये, ताकि साइबर अपराधियों के दिल में डर बैठे और महिलाएं स्वयं को सुरक्षित महसूस करते हुए देश के विकास में कदम से कदम मिला कर अपना योगदान दे सकें।

देश में साइबर अपराध से निपटने के लिए साइबर थानों की संख्या में वृद्धि करना बहुत जरूरी है। ज्यादातर शहरों में तो साइबर अपराध की शिकायत भी सामान्य थानों में कराई जाती है जहां पुलिस इस काम को कर पाने में अक्षम होती। इस वक्त देश में साइबर थानों की संख्या पचास से भी कम है। ऐसे में आवश्यक हो जाता है कि एक तरफ जहां सरकार इस अपराध पर अंकुश लगाने के लिए कड़े कानून बनाये तो वहीं आमजन को भी साइबर सुरक्षा से जुड़े उपायों के प्रति जागरूक होना पड़ेगा। 


शालू अग्रवाल
मेरठ, उप्र
(यह आलेख संजॉय घोष मीडिया अवार्ड 2019 के तहत लिखा गया है)

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