विशेष : सतत विकास के लिए आयु-अनुकूल व्यापक यौनिक शिक्षा क्यों है ज़रूरी? - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 10 जुलाई 2020

विशेष : सतत विकास के लिए आयु-अनुकूल व्यापक यौनिक शिक्षा क्यों है ज़रूरी?

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एशिया पैसिफ़िक क्षेत्र के लगभग एक अरब युवा १० से २४ वर्ष की आयुवर्ग के हैं, जो इस क्षेत्र की कुल आबादी का २७% है। इनमें से प्रत्येक को कभी-न-कभी अपने जीवन सम्बंधित ऐसे निर्णय लेने पड़ेंगे जिनका प्रभाव उनके यौनिक एवं प्रजनन स्वास्थ्य पर पड़ेगा। परन्तु अनेक शोधों के अनुसार इनमें से अधिकांश किशोर/ किशोरियों में इन निर्णयों को ज़िम्मेदारी से लेने के लिए आवश्यक ज्ञान एवं जानकारी का अभाव है. प्रोफ़ेसर कैरोलिन होमर जो ऑस्ट्रेलिया के बर्नेट इन्स्टिट्यूट के मेटर्नल, चाइल्ड एन्ड एडोलेसेंट हेल्थ प्रोग्राम की सह-निदेशक हैं,ने कहा कि एशिया पैसिफ़िक क्षेत्र के युवाओं में एचआईवी, अनचाहे गर्भ, आदि से सम्बंधित पर्याप्त ज्ञान नहीं होता है और उनमें एलजीबीटी (समलैंगिक और ट्रांसजेंडर समुदाय) के प्रति असमानता व सामाजिक तिरस्कार का भाव होता है. २०३० के सतत विकास लक्ष्य प्राप्त करने की दिशा में युवा वर्ग को आयु-अनुकूल उचित जानकारी दे कर उन्हें अपने स्वास्थ्य और निजी मर्यादा की सुरक्षा हेतु शिक्षित करना एवं जेंडर समानता को बढ़ावा देना बहुत महत्त्वपूर्ण है। इस शिक्षा को आप कोई भी नाम दे सकते हैं- ‘लाइफ स्किल्स एजुकेशन' या ‘हेल्थ एजुकेशन ‘,या ‘कम्प्रेहेन्सिव सेक्सुएल्टी एजुकेशन (सीएसई - व्यापक यौनिक शिक्षा). महत्वपूर्ण बात यह है कि इस शिक्षा का मुख्य उद्देश्य है: युवा वर्ग को अपनी व्यक्तिगत गरिमा तथा मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य की रक्षा के लिए समुचित जानकारी उपलब्ध कराना तथा एक सकारात्मक सोच विकसित करके जेंडर समानता की ओर अग्रसर होना।

ग्लोबल रिव्यू के अनुसार सीएसई का उद्देश्य एक आयु-अनुकूल एवं संस्कृति -उपयुक्त दृष्टिकोण पर आधारित, वैज्ञानिक रूप से सही, वास्तविक और गैर-निर्णायक जानकारी प्रदान करना है। यह शिक्षा उनके यौनिक तथा प्रजनन स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद करती है, सुरक्षित यौन संबंध को बढ़ावा देकर अवान्छनीय गर्भधारण को रोकती है, और एचआईवी व अन्य यौन-संक्रमित रोगों को कम करती है। इसके साथ साथ यह जेंडर व सामाजिक समानता को भी बढ़ावा देती है। संयुक्त राष्ट्र के पापुलेशन फण्ड (यूएनएफ़पीए) के एशिया पैसिफ़िक क्षेत्रीय निदेशक बिओन एन्डरसन के अनुसार "यह एक गलत अवधारणा है कि सीएसई से विद्यार्थियों की यौनिक-गतिविधियां बढ़ जाती हैं। सच तो यह है कि यह एचआईवी तथा अन्य यौन-संक्रमित रोगों से बचाव, किशोरावस्था में गर्भधारण से बचाव और लैंगिक तथा जेंडर के भेदभाव भूलकर एक दूसरे के साथ आदरपूर्ण संवाद करने में सहायता प्रदान करती है, और युवाओं की उचित निर्णय लेने की क्षमता को मज़बूत करती है ।" एशिया पेसिफिक क्षेत्र के लगभग 25 देश (जिनमें कंबोडिया, भूटान, थाईलैंड, वियतनाम, फिलीपींस और एशिया पेसिफिक द्वीप देश शामिल है) स्कूल पाठ्यक्रम में सीएसई को स्थान देने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। परन्तु कई अन्य देशों में यह अभी भी निषेध का विषय है। यहां तक की सेक्स शब्द का किसी भी रूप में प्रयोग भी अशोभनीय समझा जाता है। माता-पिता और शिक्षक इस विषय पर किशोर/ किशोरियों से बात करने से कतराते हैं। और इस चुप्पी के परिणाम स्वरूप युवा वर्ग को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है-जैसे लैंगिक हिंसा, किशोरावस्था में अवांछित गर्भ धारण, असुरक्षित गर्भपात, यौन संचारित रोग आदि।

जिन देशों में सीएसई को पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है वहां के युवा वर्ग को भी लगता है कि उनको दी जा रही जानकारी अपर्याप्त है और वे इसके प्रशिक्षण और पाठ्यक्रम को अधिक विस्तृत करने की मांग कर रहे हैं. ऐसे ही कुछ जानकारी एपीसीआरएसएचआर१० (१०वें एशिया पैसिफिक कांफ्रेंस ऑन रिप्रोडक्टिव एंड सेक्सुअल हेल्थ एंड राइट्स) में कुछ शोधकर्ताओं ने दी। यह कांफ्रेंस सीएनएस के सहयोग से कोरोनावायरस महामारी के करणवश ऑनलाइन हो रही है. सेसिलिआ रॉथ, ऑस्ट्रेलिया के न्यू साउथ वेल्स में परिवार नियोजन वरिष्ठ शिक्षा अधिकारी हैं. उन्होंने बताया कि यद्यपि सीएसई (जिसे वहां रिलेशनशिप्स, सेक्सुअलिटी एंड सेक्सुअल हेल्थ एजुकेशन-आरएसएसएच- के नाम से जाना जाता है) ऑस्ट्रेलियन स्कूल पाठ्यक्रम का हिस्सा है, परंतु शिक्षण संस्थानों को उसमें स्थानीय सन्दर्भ के अनुरूप आवश्यकतानुसार परिवर्तन करने का अधिकार प्राप्त है. इसके चलते आरएसएसएच पाठ्यक्रम हर जगह एक समान नहीं है। एक अध्ययन का हवाला देते हुए उन्होंने बताया कि सरकारी स्कूल के विद्यार्थियों को निजी विद्यालयों की तुलना में इस विषय पर अधिक जानकारी प्राप्त थी। यह अध्ययन न्यू साउथ वेल्स के माध्यमिक विद्यालयों में पढ़ रहे १२ से १८ वर्ष आयु वर्ग के कक्षा ८-१२ में पढ़ने वाले १६०० विद्यार्थियों पर किये गए एक नामरहित सर्वे पर आधारित था. आंकड़ों के अनुसार लगभग ५०% प्रतिभागियों का मत था कि आरएसएसएच एजुकेशन के पाठ्यक्रम से उनके ज्ञान में वृद्धि हुई जबकि एक तिहाई उससे केवल संतुष्ट मात्र थे. प्रतिभागियों का यह भी कहना था कि जिन आरएसएसएच विषयों में उन्हें स्कूल में सबसे कम जानकारी प्राप्त हुई, उनके बारे में सूचना प्राप्त करने का सबसे लोकप्रिय स्रोत सोशल मीडिया था.

सेसिलिआ रॉथ के अनुसार अध्ययन के आंकड़े इस बात की पुष्टि करते हैं कि शिक्षकों को स्कूल में स्वास्थ्य-सम्बन्धी ज्ञान को बढ़ावा देना चाहिए और बच्चों को उचित जानकारी देकर उनकी जिज्ञासा को शांत करना चाहिए। उन्होंने कहा कि विद्यार्थियों को यौन स्वास्थ्य सम्बन्धी आयु-अनुकूल उचित शिक्षा देना तथा विविध जेंडर वाले विद्यार्थियों की विशेष आवश्यकताओं को सम्बोधित करना और समझदारी बढ़ाना बहुत जरूरी है. वियतनाम में किये गए एक अन्य सर्वेक्षण में भी कुछ चौकाने वाले नतीजे सामने आये. यह ऑनलाइन सर्वे, विश्वविद्यालय स्तर पर सीएसई संबधी कठिनाइयों और आवश्यकताओं का पता लगाने हेतु, वियतनाम की थाई न्गुयेन यूनिवर्सिटी के ५ कॉलेजों के लगभग २०,००० विद्यार्थियों पर किया गया. ६०% प्रतिभागी सीएसई को एक विशिष्ट विषय के रूप में देखना चाहते थे, और ४४% यौनिक और प्रजजन स्वास्थ्य सम्बन्धी सेवाएँ प्राप्त करने का अधिकार चाहते थे । ४४% का कहना था की पढ़ने और सीखने हेतु कोई मानक यौनिक और प्रजनन स्वास्थ्य सम्बन्धी सामग्री उपलब्ध ही नहीं है; ३६% प्रतिभागियो के अनुसार शिक्षकों में यौनिक और प्रजनन स्वास्थ्य संबंदी विषय के बारे में आवश्यक ज्ञान व उसको पढ़ाने के लिए अनिवार्य कुशलता का अभाव है। ३७% ने इस बात की शिकायत करी कि उनके परिवार जन यौनिक और प्रजनन स्वास्थ्य सम्बन्धी किसी भी बात का उल्लेख तक नहीं करना चाहते हैं ।

इस स्टडी के संचालक और वियतनाम के रिसर्च सेंटर फॉर जेन्डर, फैमिली एंड एनवायरमेंट इन डेवलपमेंट के प्रोग्राम ऑफिसर, थान न्गुयेन फुओंग हाई, ने बताया, कि "यद्यपि प्रत्येक विश्वविद्यालय की यौनिक और प्रजनन स्वास्थ्य शिक्षा से सम्बंधित अपने कार्यक्रम होते हैं लेकिन वे अपने विद्यार्थियों की आकांक्षाओं और आवश्यकताओं पर खरे नहीं उतर पाते हैं। जिन विषयों पर छात्र अधिक जानकारी हासिल कारण चाहते हैं वह हैं: प्रेम एवं यौन (५३%), सुरक्षित गर्भनिरोध और गर्भपात (५१%), यौन संक्रमित रोग और एचआईवी (५३%) तथा यौन शोषण से बचाव। यह सब जानकारी वे ऐसे सेमिनार, टॉक-शो और प्रशिक्षण के द्वारा हासिल करना चाहते हैं जिनमें छात्रों की पूरी सहभागिता हो." उक्त सर्वेक्षणों के नतीजे स्कूल और कॉलेजों में सीएस‌ई को पाठ्यक्रम में सम्मिलित करने और यौन शिक्षा को मजबूत बनाने की आवश्यकता की ओर इंगित करते हैं। सेसिलिआ रॉथ कहती हैं कि जिन क्षेत्रों में विशेष रूप से सुधार की आवश्यकता है वे हैं शिक्षाविदों का उचित प्रशिक्षण ताकि वे इस विषय को अधिक प्रभावकारी ढंग से पढ़ा सकें, और जेंडर विविधता, आपसी रिश्ते और सहमति और यौन संक्रमित रोगों की जांच और इलाज के बारे में अधिक जानकारी दे सकें।

कंबोडिया का स्वास्थ्य मंत्रालय कक्षा १ से १२ तक के विद्यार्थियों के लिए विशिष्ट आयु-अनुकूल लैंगिक व प्रजनन स्वास्थ्य संबंधी शिक्षा का पाठ्यक्रम तैयार कर रहा है। इसे शिक्षा मंत्रालय द्वारा अनुमोदित कर दिया गया है, तथा यह २०२२ तक स्कूलों में लागू कर दिया जाएगा ।कंबोडिया का रिप्रोडक्टिव हेल्थ एसोसिएशन इसे ५०० से अधिक स्कूलों में लागू करने में सहायता प्रदान कर रहा है. । एशिया पैसिफिक क्षेत्र के अन्य देशों द्वारा इसी प्रकार की पहल करने की जरूरत है। सभी देशों को यह याद रखना चाहिए कि व्यापक यौनिक शिक्षा (सीएसई ) जीवन कौशल के विकास के लिए महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करती है। यह केवल गर्भधारण की रोक और सुरक्षित यौन सम्बन्ध के बारे में ही जानकारी नहीं देती है अपितु शारीरिक रचना की आधारभूत जानकारी, सम्बन्ध और सहमति की समझ और विविधता का आदर करना भी समझाती है और समझदारी और जिम्मेदारी बढ़ाती है। इससे भी सर्वोपरि सीएसई की उपलब्धता मौलिक मानवाधिकारों -जैसे पढ़ने का अधिकार, स्वास्थ्य का अधिकार, लैंगिकता का अधिकार और गैर भेदभाव मूलक अधिकार भी बताती है - यह सब एक खुशहाल जीवन जीने के अधिकार हैं।




--माया जोशी-- 
सीएनएस (सिटिज़न न्यूज़ सर्विस)

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