जी हां, जायसवाल क्लब के राष्ट्रीय अध्यक्ष मनोज जायसवाल का ऐलान है कि समाज के कुलदेवता राजराजेश्वर भगवान सहस्त्राबाहुजी महराज व श्रद्धेय डाॅ काशी प्रसाद जायसवाल की मूर्ति लगाने वाले दल को सपोर्ट करेंगे। स्वजातिय बंधु अब बीजेपी का पिछलग्गू बनने के बजाय उस दल का समर्थन करेंगे, जो उनका हक व सम्मान दिलायेंगा। विधानसभा चुनाव 2022 में वादाखिलाफी करने वाले दलों के खिलाफ पड़ेंगे स्वजातिय बंधुओं का वोट। फिरहाल, यूपी में श्रीराम वर्सेज परशुराम के बीच छिड़ी जंग में कलार, कलवार सहित दो दर्जन से अधिक जायसवाल क्लब के आनुषंगिक संगठने अपने अधिकारों के लिए सड़क पर है। गेद किसके पाले में होगा, ये तो वक्त बतायेगा, लेकिन मूर्ति की राजनीति में जुटी सपा-भाजपा, बीजेपी व कांग्रेस के लिए जातियों के कुलदेवता मुसीबत बन गए है, क्योंकि ब्राह्मण, क्षत्रिय ही नहीं अब यादव, बनिया, कहार, लोहार सहित सभी जातियां जुर्म-ज्यादिती से खिसियाई अपनी-अपनी मांगों को लेकर मैदान में होगी
उत्तर प्रदेश के सभी सियासी दल जातिगत वोटबैंक की राजनीति कर रहे हैं। और ब्राह्मणों की आस्था के प्रतीक परशुराम के जरिए सियासी वैतरणी पार कराने की कोशिशों में हैं। लेकिन अब ब्राह्मणों से भी अधिक वोटबैंक वाला संगठन जायसवाल क्लब, जिसमें जायसवाल, कलवार, कलाल, ब्याहुत, गुप्ता, शिवहरे, अहलूवालिया, चैधरी, चैकसी, नेवाड़ा, गुलहरे, बाटम, वालिया जैसे दर्जनों संबोधनों वाली उप जातियां है, ने ऐलान किया है कि अब देशभर में फैले 20 करोड़ से भी अधिक स्वजातिय बंधु उसी दल को अपना सपोर्ट करेंगे जो उनके आराध्य व कुलदेवता राजराजेश्वर सहस्त्रबाहु भगवान की मूर्ति एवं श्रद्धेय डा काशी प्रसाद जायसवाल की प्रतिमा हर शहर, हर जिला मुख्यालयों पर लगवाने के साथ ही काशी प्रसाद जायसवाल को भारत रत्न देने की घोषणा करेगा। इस बात का ऐलान करने वाले जायसवाल क्लब के राष्ट्रीय अध्यक्ष मनोज जायसवाल ने कहा है कि जब हर जाति अपनी एकजुटता को दिखाकर राजनीतिक दलों को अपनी ओर आकर्षित कर रही है। उनकी एकजुटता को देखते हुए ही उस समाज का विकास कर रही है तो ऐसे में 20 करोड़ से भी अधिक जनसंख्या वाला जायसवाल समाज कैसे पीछे रहेगा। अब हम भी एकजुट होकर अपने राजनीतिक अधिकारों के लिए लड़ेगे। श्री जायसवाल ने कहा कि अभी तक हमारे स्वजातिय बंधुओं को बीजेपी का वोटबैंक समझा जाता था। समाज के अधिकांश लोग वोट भी बीजेपी करते रहे है। लेकिन अब बीजेपी का पिछलग्गू बनकर नहीं रहेंगे। क्योंकि बीजेपी वोट तो लालीपाप दिखाकर ले लेती है, लेकिन जब समाज हित की बात आती है, उसके प्रशासनिक उत्पीड़न की बात आती है, तो उसे ठेंगा दिखा दिया जाता है। उसके जातिय विधायक व मंत्री की बातों को तवज्जों नहीं दी जाती है। इसलिए अब जायसवाल क्लब ने राजनीतिक दलों के नकली वादों का पर्दाफाश करेगी और चुनाव में उसी दल का खुलकर समर्थन करेगी जो उसके आराध्य व श्रद्धेय लोगों की मूर्तियां लगवाने के साथ उनके हक व अधिकार देगी। श्री जायसवाल ने कहा कि इस सरकार में जितना स्वजातिय बंधुओं का दमन हुआ है शायद ही कभी इतना हुआ हो। मंत्रिमंडल में जो स्वजातिय हैं उन पर फैसले लेने की कोई ताकत नहीं। ये बात सब जानते हैं। जाहिर है कोई तो ऐसा होने से रोक रहा है।
बता दें, वाल्मीकि रामायण के मुताबिक राक्षसों का राजा रावण लगभग सभी राजाओं पर जीत हासिल कर चुका था। जब उसने राजा सहस्त्रबाहु अर्जुन का नाम सुना तो उसके मन में उन्हें भी हराने की इच्छा हुई। लेकिन वे इतने बलशाली थे कि रावण को बंधक बनाकर अपने बच्चों को उससे खेलने के लिए दे दिया था। इसीलिए उन्हें चक्रवर्ती सम्राट भी कहा जाता है। वे भगवान विष्णु के 24वें अवतार थे। उनका जन्म हैहयवंशी महाराज की 10वीं पीढ़ी में माता पद्मिनी के गर्भ से हुआ था। जन्म से ही वे काफी बलशाली थे, उनके 1000 हाथ थे। चन्द्र वंश के महाराजा कार्तवीर्य के पुत्र होने के कारण उन्हें कार्तवीर्य-अर्जुन कहा जाता है। हैहयवंशी क्षत्रियों में जन्म होने के चलते इस वंश को सर्वश्रेष्ठ उच्च कुल का क्षत्रिय माना गया है। रावण को हराने के कारण ही इन्हें राज राजेश्वर भी कहा जाता है। उनका का वास्तविक नाम अर्जुन था। भागवत पुराण में भगवान विष्णु व लक्ष्मी द्वारा सहस्त्रबाहु महाराज की उत्पत्ति की जन्मकथा का वर्णन है। सहस्रार्जुन जयंती क्षत्रिय धर्म की रक्षा एवं सामाजिक उत्थान के लिए मनाई जाती है। भगवान सहस्त्रबाहु को वैसे तो सम्पूर्ण सनातनी हिन्दू समाज अपना आराध्य और पूज्य मानकर इनकी जयंती पर इनका पूजन अर्चन करता हैं किन्तु ये कलार, कलवार जायसवाल समाज इस दिन को विशेष रूप से उत्सव-पर्व के रूप में मनाकर भगवान सहस्त्रबाहु की आराधना करता हैं। इसी तरह इस समाज के डा काशी प्रसाद जायसवाल भी श्रद्धेय है। वे महान इतिहासकार, कानूनविद, मुद्राशास्त्री, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी व पुरातत्व के अन्र्तराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त विद्वान व जायसवाल समाज के गौरव थे। जायसवाल क्लब एक अरसे से भारत सरकार से मांग करता रहा है कि डॉ. काशीप्रसाद जायसवाल को मरणोपरान्त भारत का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न प्रदान किया जाएं।
फिलहाल राज्य में 2022 में विधानसभा चुनाव होने हैं। सत्ताधारी बीजेपी समेत मुख्य विपक्षी सपा, बसपा और कांग्रेस इन तैयारियों में लगी है लेकिन उनपर जनमुद्दों के बजाय जातिगत मुद्दे हावी हैं। गौरतलब है लोकतंत्र में संख्याबल मायने रखता है और जातीय राजनीति उत्तर प्रदेश की सच्चाई है लेकिन इस संकट के दौर में सियासी दल जिस तरह की राजनीति कर रहे हैं वह दुखद और चैंकाने वाला है। दरअसल उत्तर प्रदेश के सभी सियासी दल जातिगत वोटबैंक की राजनीति कर रहे हैं। सभी मुख्य विपक्षी दल योगी सरकार पर ब्राह्मणों की अनदेखी का आरोप लगाते हुए निशाना साध रहे हैं और ब्राह्मणों की आस्था के प्रतीक परशुराम के जरिए सियासी वैतरणी पार कराने की कोशिशों में हैं। ऐसे में अब अन्य जातियां भी अपने हक व अधिकारों के लिए सक्रिय हो गयी है। जायसवाल क्लब भी अब अपने हक व अधिकारों की लड़ाई लड़ने का ऐलान किया है। पिछले दिनों ब्राह्मण वोट भुनाते हुए समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने सूबे में परशुराम की मूर्ति लगाने का वादा किया। इसके बाद बसपा प्रमुख मायावती ने सपा से बड़ी परशुराम की मूर्ति लगाने का ऐलान कर दिया। साथ ही कहा कि अस्पताल, पार्क और बड़े-बड़े निर्माण को भी महापुरुषों के नाम पर किया जाएगा। वहीं, कांग्रेस भी ब्राह्मण चेतना संवाद के जरिए वोटबैंक को साधने में जुटी है।
गौर करने वाली बात यह है कि लंबे अरसे तक कांग्रेस ब्राह्मण समेत अगड़ी जातियों के वोटों से यूपी में सत्ता में काबिज रही, इसके बाद 2007 में दलित ब्राह्मण गठजोड़ के जरिए मायावती ने पहली बार अकेले दम पर यूपी में सरकार बनाई। पिछले कई साल से ब्राह्मणों ने बीजेपी की ओर रुख किया है। ऐसे में सभी विपक्षी दल यूपी में सत्ता की वापसी के लिए ब्राह्मणों को अपने पाले में लाने की पुरजोर कोशिश में लगे हुए हैं। अगर बसपा और सपा की राजनीति पर नजर डालें तो 2007 के विधानसभा चुनावों में मायावती ने जब दलित, ब्राह्मण सोशल इंजीनियरिंग का प्रयोग किया, तो यह प्रयोग यूपी के इतिहास का सबसे सफल प्रयोग साबित हुआ। पहली बार मायावती की पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनी। दलितों की पार्टी कही जाने वाली बीएसपी में दूसरे नंबर के नेता का कद सतीश चन्द्र मिश्रा को दिया गया। 2007 के चुनावों में मायावती ने ब्राह्मणों को उम्मीदवार बनाया, दलित-ब्राह्मण गठजोड़ के चलते 41 ब्राह्मण प्रत्याशी जीते भी। इसके बाद जब 2012 में अखिलेश यादव सीएम बने तो उन्होंने ब्राह्मण वोटबैंक को लुभाने के लिए जनेश्वर मिश्र पार्क बनवाया तो वहीं परशुराम जयंती पर छुट्टी की घोषणा की थी। इसके अलावा पार्टी हर साल अपने कार्यालय में परशुराम जयंती भी मनाती है। हालांकि इस सबसे बावजूद 2017 आते-आते ब्राह्मण बीजेपी का कोर वोटबैंक बन गए।
यूपी की राजनीति में ब्राह्मण वर्ग का लगभग 10 फीसदी वोट होने का दावा किया जाता है। जबकि जायसवाल सहित उससे जुड़ी दो दर्जन से अधिक उपजातियों की आबादी 15 फीसदी से अधिक है और बीजेपी की जीत में उसका बड़ा योगदान भ्ज्ञी रहता है। लेकिन अभी प्रदेश में दशकों तक राजनीति के सिरमौर रहे जायसवाल समाज का दबदबा खत्म सा हो गया है। सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य में पिछले तीन दशक से कोई वैश्य मुख्यमंत्री नहीं बन पाया है जबकि 1950 में हुए प्रदेश के चुनाव में से दो बार ही मुख्यमंत्री बन पाएं। जबकि 1990 तक 40 वर्षों में छह ब्राह्मण मुख्यमंत्री बने, जिन्होंने करीब 23 वर्ष तक प्रदेश राज किया। दरअसल मंडल आंदोलन के बाद यूपी की सियासत पिछड़े, दलित और मुस्लिम केंद्रित हो गई। इसका नतीजा यह रहा कि यूपी को कोई ब्राह्मण सीएम नहीं मिल सका। ब्राह्मण एक दौर में पारंपरिक रूप से कांग्रेस के साथ था, लेकिन जैसे-जैसे कांग्रेस कमजोर हुई यह वर्ग दूसरे ठिकाने खोजने लगा। मौजूदा समय में वो बीजेपी के साथ खड़ा नजर आता है। ऐसे में कांग्रेस उन्हें दोबारा अपने पाले में लाने की जद्दोजहद कर रही है तो सपा और बसपा के लिए ब्राह्मण सत्ता में वापसी की चाबी नजर आ रहे हैं।
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