झारखण्ड : वर्ष 1951 कीजनगणना में हटाए गए आदिवासियों के धर्म को जोड़ने की मांग - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 23 सितंबर 2020

झारखण्ड : वर्ष 1951 कीजनगणना में हटाए गए आदिवासियों के धर्म को जोड़ने की मांग

सरना धर्म को प्राचीन धर्म बताते हुए आर्च विशप ने कहा है कि आदिवासियों के अधिकारों का हनन नहीं हो सकता. इसमें क्रिश्चियन समाज उनके साथ है. आदिवासियों का धर्म परिवर्तन अभी भी कुछ क्रिश्चियन सोसायटी द्वारा होने को स्वीकारते हुए आर्च विशप ने कहा कि धार्मिक स्वतंत्रता सबों को है. पहले जमींदारों द्वारा आदिवासियों की जमीन लूटी जाती थी. जिसकी रक्षा करने में क्रिश्चियन सोसायटी साथ देता था. जिससे बड़ी संख्या में आदिवासियों ने धर्म परिवर्तन किया......
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झारखंड . केंद्रीय सरना समिति के केंद्रीय के महासचिव संजय तिर्की का कहना है कि गुलाम भारत में वर्ष 1871 से 1941 तक जनगणना प्रपत्र में धर्म का कॉलम था, परंतु 1947 में आजादी के बाद 1951 में जनगणना हुई.उन्होंने कहा कि वर्ष 1951 की प्रथम जनगणना में ही आदिवासियों के धर्म के कॉलम को हटा दिया गया. उन्होंने कहा कि फिर से आदिवासियों के धर्म के कॉलम को री-स्टोर किया जाये.  केंद्रीय सरना समिति की महिला शाखा की अध्यक्ष नीरा टोप्पो का कहना है कि आदिवासी हिन्दू नहीं है यह बात कहते हुए आपने कई आदिवासियों को सुना होगा. अपनी अलग पहचान बताते हुए आदिवासी संगठनो द्वारा राज्य की हेमंत सरकार से अपने लिए अलग धर्म कोड की मांग कर रहे है. आदिवसी संगठनों का कहना है कि आदिवासी समाज प्रकृति पूजक है, जबकि वे हिन्दू धर्म कि तरह मूर्ति पूजक नहीं है. इसलिए आदिवासियों को हिन्दू धर्म कि श्रेणी में रखना गलत है. केंद्रीय समिति के संरक्षक भुनेश्वर ने कहा कि झारखंड एक आदिवासी बहुल्य राज्य है और इस हिसाब से यहाँ लंबे समय से अलग धर्म कोड यानि सरना धर्म कोड लागू करने कि मांग कि जा रही है. सरना एक धर्म है जो प्रकृतिक पूजा करने वालो के लिए होता है. राज्य में कुल 32 जनजाति निवास करते है. यह सभी फिल्हाल हिन्दू धर्म कोड के अंतर्गत ही आते है जबकि ईसाई धर्म अपना चुके लोग अपने धर्म कोड में ईसाईं लिखते है. आदिवासी स्वयं को हिन्दू नहीं मानते है. इसलिए वो अपने लिए अलग धर्म कोड कि मांग कर रहे है. रांची जिला सरना समिति के अध्यक्ष अमर तिर्की ने तो वर्ष 2020-21 की जनगणना को रोकने की धमकी दी है. सरना धर्म को मानने वाले आदिवासियों ने रविवार को राज्य के सभी जिलों में मानव शृंखला बनाकर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से सरना धर्म कोड लागू करने की मांग की है. अपनी मांग के समर्थन में सभी जिलों की सड़कों पर सरना ड्रेस कोड के साथ हाथ में पोस्टर-बैनर लेकर प्रदर्शन किया.



राँची महाधर्मप्रांत के आर्च बिशप फेलिक्स टोप्पो ने कहा कि यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है.भारत में हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, बौद्ध, जैन और सिख समुदाय के लोग अपने धर्म कॉलम/कोड से जाने जाते हैं. आदिवासियों के धर्म कॉलम/कोड को आजादी के बाद षडयंत्र के तहत धर्मिक आस्था के साथ खिलवाड़ करते हुए हटा दिया गया. उन्होंने चालू सत्र में ही बिल पास कराने का आग्रह मुख्यमंत्री से किया है. इस संदर्भ में आर्च बिशप फेलिक्स टोप्पो ने सीएम हेमंत सोरेन (Hemant Soren) को पत्र लिखकर 2021 के जनगणना में सरना कोड (Sarna Code) को शामिल कराने का आग्रह किया है. इसके लिए विधानसभा से प्रस्ताव पारित कराकर केन्द्र सरकार से अनुशंसा करने की मांग की गई है. जनगणना में सरना कोड (Sarna Code) को शामिल करने की मांग झारखंड में काफी समय से हो रही है. सरना आदिवासी समुदाय (Tribal Society) के धर्म का नाम है, जिसमें प्रकृति की उपासना की जाती है. आदिवासी समाज के बाद अब सरना कोड का क्रिश्चियन कम्युनिटी ने भी समर्थन कर इस मांग को तेज कर दिया है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (Hemant Soren) को आर्च बिशप फेलिक्स टोप्पो ने पत्र लिखकर 2021 के जनगणना में सरना कोड को शामिल कराने के उद्देश्य से विधानसभा से प्रस्ताव पारित कराकर केन्द्र सरकार से अनुशंसा करने का आग्रह किया है.

सरना धर्म को प्राचीन धर्म बताते हुए आर्च विशप ने कहा है कि आदिवासियों के अधिकारों का हनन नहीं हो सकता. इसमें क्रिश्चियन समाज उनके साथ है. आदिवासियों का धर्म परिवर्तन अभी भी कुछ क्रिश्चियन सोसायटी द्वारा होने को स्वीकारते हुए आर्च विशप ने कहा कि धार्मिक स्वतंत्रता सबों को है. पहले जमींदारों द्वारा आदिवासियों की जमीन लूटी जाती थी. जिसकी रक्षा करने में क्रिश्चियन सोसायटी साथ देता था. जिससे बड़ी संख्या में आदिवासियों ने धर्म परिवर्तन किया. उन्होंने खुद अपना धर्म परिवर्तन कर क्रिश्चियन बनने की बात स्वीकारते हुए कहा कि आदिवासियत हमारी थी और रहेगी. सरना कोड का समर्थन करने के पीछे आर्च बिशप का तर्क यह है कि 1951 से पहले सरना कोड था मगर बाद में इसे जनगणना से हटा दिया गया, ऐसे में जब हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई आदि धर्म का उल्लेख हो सकता है तो सरना का क्यों नहीं. जाहिर तौर पर सरना को यदि जनगणना में शामिल कर लिया जाता है तो एक अलग धर्म के रूप में सरना को सरकारी मान्यता मिल जायेगी. गौरतलब है कि विधानसभा चुनाव में बड़ी जीत के बाद झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष और मुख्यमंत्री पद के दावेदार हेमंत सोरेन ने बिशप हाउस जाकर आर्च बिशप फेलिक्स टोप्पो से मुलाकात की थी.बिशप ने कहा कि हम केवल यही चाहते थे कि इस सरकार के बाद कोई ऐसी सरकार आए, जो संविधान के अनुसार लोगों के लिए काम करे. उन्होंने भरोसा जताया कि यह सरकार लोगों के लिए काम करेगी. नई सरकार के शासन में हमलोग खुश रह सकेंगे.आर्च बिशप को उम्मीद है कि सीएम साहब सरना कोड/आदिवासी कोड लागू करवाने में अहम भूमिका अदा करेंगे.

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