बिहार चुनाव : पिछले 15 वर्षों में क्‍या मिला सवर्णों को ? - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

गुरुवार, 29 अक्तूबर 2020

बिहार चुनाव : पिछले 15 वर्षों में क्‍या मिला सवर्णों को ?

bihar-election-and-upper-cast
बिहार की राजनीति 15 वर्षों पर आकर लटक गयी है। जदयू अध्‍यक्ष नीतीश कुमार राजद अध्‍यक्ष लालू यादव के 15 वर्षों की बात करते हैं और नेता प्रतिपक्ष तेजस्‍वी यादव नीतीश कुमार के 15 वर्षों के शासन काल की बात करते हैं। पंद्रह – पंद्रह जोड़कर 30 कब हो गया, सवर्णों को पता ही नहीं चला। लालू यादव का 15 वर्ष का शासन काल सवर्णों के लिए ‘जंगलराज’ था। नीतीश ‘गैंग’ यही कहता है। इसी गैंग में भाजपा भी शामिल है। लालू यादव का 15 वर्ष गैरसवर्णों के लिए आत्‍म सम्‍मान और सामाजिक चेतना का वर्ष था। यह बात नीतीश गैंग के गैरसवर्ण लोग भी कहते हैं। नीतीश कुमार ने प्रदेश की जनता के नाम एक पत्र अखबारों में विज्ञापन के रूप प्रकाशित करवाया है। इसमें उन्होंने कहा है कि अनुसूचित जाति-जनजाति, अतिपिछड़ा वर्ग और अल्‍पसंख्‍यकों को मुख्‍यधारा में लाने के लिए अनेक कल्‍याणकारी योजनाएं शुरू की गयीं।

लेकिन सवाल यह है कि जिन सवर्णों के वोट से पिछले 15 वर्षों से नीतीश कुमार राज कर रहे हैं, उन सवर्णों के लिए क्‍या किया? सत्‍ता, संगठन से लेकर विकास योजनाओं में सवर्णों को कितनी हिस्‍सेदारी मिल रही है। नीतीश गैंग की प्रमुख पार्टी जदयू और भाजपा के प्रादेशिक संगठन में सवर्णों की कितनी हिस्‍सेदारी है। संगठन के सभी प्रमुख पद पिछड़ों को सौंप दिये गये। जदयू के सभी प्रमुख पदों पर कुर्मी काबिज हैं। यही हाल भाजपा का है। भाजपा में भी सभी पदों पर पिछड़ों ने कब्‍जा कर रखा है। मुख्‍यमंत्री कुर्मी और उपमुख्‍यमंत्री बनिया। सभी मालदार विभाग पिछड़ों और दलितों को। सवर्णों के जिम्‍मे न संगठन में काम का मौका है और न प्रशासनिक लूट में हिस्‍सेदारी का चांस।

नीतीश कुमार ने राजनीतिक हिस्‍सेदारी में यादवों का प्रभाव कम करने के लिए पंचायती राज व्‍यवस्‍था में अतिपिछड़ी जातियों को 20 फीसदी आरक्षण दिया। यह एक ऐतिहासिक काम था। लालू यादव के शासन काल में सामाजिक बदलाव की जो धारा शुरू हुई थी, उसे आर्थिक मोर्चे पर व्‍यापक आधार मिला। इससे सामाजिक बदलाव की धारा तेज हुई। लेकिन इससे सबसे ज्‍यादा नुकसान सवर्णों को उठाना पड़ा। अतिपिछड़ा आरक्षण के बाद भी पंचायत राज और नगर निकायों में 20 से 25 प्रतिशत सीट यादव जीत ही लेते हैं। इसका खामियाजा सवर्णों को भुगतना पड़ रहा है। क्‍योंकि नीतीश कुमार ने आरक्षण के माध्‍यम से सवर्णों के‍ लिए अवसर सीमित कर दिये।

यह बिहार का दुर्भाग्‍य है कि पिछले 15 वर्षों से नीतीश सवर्णों की संभावनाओं की जड़ में मट्ठा डाल रहे हैं और सवर्ण समाज विरोध में एक स्‍वर बोलने को तैयार नहीं है। सवर्ण समाज ‘लालू फोबिया’ में इतना मस्‍त है कि स्‍वाभिमान पर हो रहे हमले का उसे आभास नहीं हो रहा है। सवर्ण बुद्धिजीवियों को नीतीश कुमार से यह पूछना चाहिए कि सरकार ने 15 वर्षों में सवर्णों के लिए क्‍या किया? जब सत्‍ता की रेवड़ी जाति के नाम ही बांटी जा रही है तो सवर्णों का ‘कटोरा’ खाली क्‍यों है? सवर्ण भले ही चुप रहें, हम तो सवर्णों के सवाल उठाते रहेंगे। 



--- वीरेंद्र, संपादक, वीरेंद्र यादव न्‍यूज -----

कोई टिप्पणी नहीं: