स्वास्थ्य और चिकित्सा के स्तर पर आत्मनिर्भरता हासिल कर सकते हैं : वैद्य राजेश कोटेचा - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 13 अक्तूबर 2020

स्वास्थ्य और चिकित्सा के स्तर पर आत्मनिर्भरता हासिल कर सकते हैं : वैद्य राजेश कोटेचा

  • स्वास्थ्य पत्रकारिता को और व्यापक बनाने की है जरूरतः प्रो. के.जी.सुरेश, कुलपति माखनल लाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय
  • सबका विकास सबका स्वास्थ्य है आत्मनिर्भर भारत की पहचानः डॉ. उमा कुमार, विभागाध्यक्ष, रूमोटोलॉजी विभाग, एम्स, नई दिल्ली
  • स्वास्थ्य क्षेत्र में आत्मनिर्भरता विषय पर स्वस्थ भारत मीडिया, दिल्ली पत्रकार संघ एवं स्वस्थ भारत (न्यास) के संयुक्त तत्वावधान में वेबिनार आयोजित 

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नई दिल्ली। अपनी समृद्ध परंपरा और चिकित्सा व आहार को अपनाकर हम स्वस्थ रह सकते हैं और कोरोना जैसी महामारी का मुकाबला करने में सफल हो सकते हैं। हमें स्वास्थ्य और चिकित्सा के स्तर पर जमीन से जुड़ना होगा तभी आत्मनिर्भरता भी हासिल कर सकते हैं। ये बातें 2 अक्टूबर को ' भारत की स्वास्थ्य नीति: आत्मनिर्भरता की आवश्यकता' पर आयोजित एक वेबिनार को संबोधित करते हुए आयुष मंत्रालय के सचिव वैद्य राजेश कोटेचा ने कही ।स्वास्थ्य क्षेत्र को समर्पित 'स्वस्थ भारत मीडिया' पोर्टल ने अपनी स्थापना की छठी वर्षगांठ पर इसे आयोजित किया था।  स्वस्थ भारत एवं दिल्ली पत्रकार संघ के सहयोग से आयोजित इस वेबिनार को संबोधित करते हुए श्री कोटेचा ने कहा कि देश की प्राचीन परंपरा में खानपान से लेकर रहन—सहन तक का जो स्तर और समझदारी थी, उसमें अनायास ही रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित होती थी जिससे गंभीर बीमारियों का भी आसानी से मुकाबला कर लिया जाता था। प्रोटीन का खजाना दाल सबकी थाली में जरूर होता था लेकिन अब इसका उपयोग उचित मात्रा में नहीं हो रहा। इसके बनिस्पत चीनी की खपत बढ़ रही है। हमारे आयुर्वेद तथा अन्य स्वास्थ्य विज्ञान ने कोरोना काल में मदद करी है और देश ने देखा कि काढ़ा, गिलोय, मसाले जैसी प्राकृतिक चीजें हमें स्वस्थ बनाए रखने में कारगर रही। विश्व समुदाय ने इसे स्वीकार किया। योग भी हमारी परंपरा का अंग रहा है और जागरुकता ने उसकी भी सार्थकता सिद्ध की है। आयुर्वेद की ओर भी विश्व का ध्यान गया है उन्होंने स्वास्थ्य संबंधी भ्रामक खबरो की ओर इशारा करते हुए कहा कि कई बार स्वास्थ्य से जुड़ी हुई खबरें तथ्यात्मक गलतियों के कारण लोगों को भ्रम में डाल देती हैं। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. के.जी. सुरेश ने कहा कि  जागरुकता के कारण कुछ सालों में स्वास्थ्य क्षेत्र की स्थिति थोड़ी सुधरी है लेकिन जरूरत आमूलचूल परिवर्तन की है। हमें रोगों से बचाव पर जोर देना होगा जिसके लिए हमारे समाज में ही परंपरा से चली आ रही जानकारियां मौजूद हैं। प्राथमिक केंद्रों के मामले में केरल मॉडल अपनाना होगा। जीवन शैली भी सुधारनी होगी। इस मामले में बापू का जीवन मार्गदर्शक बन सकता है जिनके मुताबिक नर सेवा ही नारायण सेवा है। श्री सुरेश ने आगे कहा कि रोगों से बचाव और रोग ग्रस्त हो जाने पर चिकित्सा, दोनों पर अलग—अलग स्तर पर काम करना होगा। इस मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जीवन शैली और खानपान भी प्रेरणादायक है। स्वच्छता, योग, आयुर्वेद का विकास आदि भी चिकित्सा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बना सकता है। बतौर मुख्य वक्ता, एम्स, दिल्ली की डॉ. उमा कुमार ने कहा कि जरूरतों के अनुसार स्वास्थ्य नीति बनकर ही हम आत्मनिर्भर हो सकते हैं। सच पूछिए तो कोराना का आना इस मायने में लाभकारी रहा कि उसने स्वास्थ्य क्षेत्र में हमारी कमजोरियों को उजागर कर दिया। इससे हमें अपनी कमियां दूर करने का मौका मिला और आज हम महामारी से मुकाबले को तैयार हो सके।

डॉ. कुमार ने कहा कि हेल्थ सेक्टर के हर क्षेत्र पर ध्यान देना होगा। महिला चिकित्सा पर फोकस करना होगा। उनका कहना था कि न केवल बचाव पर ध्यान देना होगा बल्कि चिकित्सा की बढ़ती लागत पर भी काबू पाना होगा तभी आत्मनिर्भर बना जा सकता है।   कार्यक्रम की शुरुआत में सभ्यता अध्ययन केंद्र के निदेशक रविशंकर ने विषय प्रवेश कराते हुए कहा कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में गांव के स्तर पर हम आत्मनिर्भर रहे हैं। भारत की परंपरा लंबी रही और सभ्यता प्राचीनतम रही। हमारे अनपढ़ वैद्य भी नाड़ी देखकर, शरीर के रंग को देखकर रोग पहचान जाते थे। फिर उनकी सलाह और दवा पर हम रोगमुक्त भी हो जाते थे। गांव से बाहर जाना भी नही पड़ता था। लेकिन सरकारी तंत्र ने इसकी लगातार उपेक्षा की और धीरे—धीरे परावलंबी बनते गये। मशीन के सहारे रोग पहचानने पर विवश हो गये। उन्होंने आगे कहा कि स्वास्थ्यतंत्र के परावलंबी होने से चिकित्सा का विकास नहीं हो सका। गांधी जी ने हमेशा नेचुरोपैथी पर जोर दिया। आज डॉक्टरों को भगवान कहा जाता है जबकि बापू इन्हें अभिशाप मानते थे। इसकी वजह यह थी कि चिकित्सा के बदले उसके व्यवसाय पर हमारा फोकस ज्यादा रहा। इन चीजों को छोड़ प्राचीन ज्ञान परंपरा का मंथन करना होगा तभी आत्मनिर्भरता मिल सकती है। वेबिनार में हस्तक्षेप करते हुए दिल्ली पत्रकार संघ के महासचिव अमलेश राजू ने हेल्थ सेक्टर में आयुर्वेद की महत्ता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि जागरुकता ही पत्रकारों से लेकर आम जन तक को रोगों से बचा सकेगी धन्यवाद ज्ञापन डॉ. अभिलाषा द्विवेदी ने किया। उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि स्वास्थ क्षेत्र में सर्वांगीण रूप से काम करना होगा तभी आमजन को निरोग रखा जा सकता है। दुनिया को भारत से उम्मीद है इसलिए हमारी चुनौतियां भी कठिन है। कार्यक्रम का संचालन 'स्वस्थ मीडिया' के संस्थापक आशुतोष कुमार सिंह ने किया। उन्होंने कहा कि आज से 6 साल पहले हेल्थ सेक्टर की उपेक्षा को लेकर ही इस मंच को मुंबई में आकार दिया गया था। जन चेतना जगाने, सस्ती और जेनेरिक दवा की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए मंच ने कई अभियान चलाए और 50 हजार किलोमीटर की यात्रा भी की। इस अवसर पर वरिष्ठ पर्यावरण विशेषज्ञ धीप्रज्ञ द्विवेदी, मीडिया चौपाल के संयोजक वरिष्ठ पत्रकार अनिल सौमित्र, सूचना सेवा के अधिकारी ऋतेश पाठक सहित सैकड़ों लोग उपस्थित थे।

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