भारतीय लोकतंत्र में अब ऐसी स्थितियां निर्मित हुई हैं जिनमें विपक्ष की विजय का द्वार सत्तापक्ष स्वयं खोल रहा है। विपक्ष में बैठे दल जीत नहीं रहे हैं, सरकार के बैठे लोगों का अहंकार, अकर्मण्यता और भ्रष्टाचार उन्हें हरा रहा है। 2014 के लोकसभा चुनाव में एनडीए की जीत में यूपीए की घोर असफलता कारण बनी थी और 2018 के विधानसभा चुनाव में मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेसी नेतृत्व वाली गठजोड़ शक्ति नहीं जीती, राज्यों में सत्तासीन भाजपा हारी। राजस्थान में सत्ताधारी दल का अंतर विग्रह, मध्यप्रदेश में अहंकार भरे बयान और छत्तीसगढ़ में जन अपेक्षाओं की उपेक्षा ने विपक्ष को सत्ता सौंपी। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की भारी बहुमत से वापसी उसकी देशहितकारी कार्यशैली के कारण हुई। आंतरिक विकास, सीमाओं की सुरक्षा, आतंक पर लगाम और पड़ोसी देशों के साथ यथोचित व्यवहार ने प्रधानमंत्री मोदी को इतना लोकप्रिय बना दिया कि ‘चैकीदार चोर है’ जैसे नारे सिरे से अस्वीकृत हो गए। नोटबंदी के कारण हुए कष्ट को भी जनता ने देशहित में आवश्यक समझकर सहज भाव से सह लिया विपक्षी दलों में प्रमुख कांग्रेसी नेतृत्व वाली यूपीए सर्जिकल स्ट्राइक, पुलवामा, चीनी घुसपैठ, कोरोना वायरस आदि बिंदुओं पर सरकार के विरुद्ध जितना अधिक दुष्प्रचार करती है उतनी ही कमजोर पड़ रही है क्योंकि प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक प्रचार माध्यमों के कारण सरकार की नीतियों-रीतियों का सच जनता के सामने उपस्थित है। अकेले मोदी की लोकप्रियता बिहार में एनडीए को विजयी बना लाई। उससे छिटकने वाली लोजपा 135 सीटों पर चुनाव लड़कर केवल 01 सीट पर सिमट कर रह गई। इससे स्पष्ट है कि भारतीय समाज की समग्रता, एकता और अखंडता को बल प्रदान करने की राजनीतिक दृष्टि ही भविष्य के भारत में स्वीकृत होगी। निजी लाभ-लोभ और सत्ता पर अधिकार करने के लिए जाति, धर्म, क्षेत्र, भाषा आदि के नए विवाद उत्पन्न करके वोट-बैंक बनाने वाली कूटनीतियां धीरे-धीरे हाशिए पर जाती दिख रही हैं।
राष्ट्रीय-हितों को सर्वाेपरि मानकर कठोर निर्णय लेने का साहस दिखाकर भाजपाई नेतृत्व वाली एनडीए देश मंे निरंतर लोकप्रियता अर्जित कर रही है। यह उसके लिए और देश के लिए शुभ संकेत है फिर भी अभी एनडीए के लिए आत्ममुग्ध होने का समय नहीं है क्योंकि अभी भी राष्ट्रीय-हित के विचार को दरकिनार कर देश की सत्ता का उपभोग निजी स्वार्थों के लिए करने वाली शक्तियां कमजोर नहीं पड़ी हैं । बिहार विधानसभा में नई सरकार के लिए सामने आने वाले पक्ष-विपक्ष के मध्य केवल कुछ सीटों का ही अंतर है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में सत्ता संतुलन की दृष्टि से तो यह सर्वथा उचित है किंतु सरकार की जनहितकारी योजनाओं में निजी हितों के लिए विपक्ष द्वारा व्यवधान उत्पन्न करने की दृष्टि से चिंतनीय भी है। कहने की आवश्यकता नहीं है कि यदि हमारी लोकसभा और राज्यसभा में विपक्ष अधिक सशक्त होता तो देश को खंडित करने वाली दुरभिलाषाओं की आधार भूमि धारा 370 का विलोपन कभी संभव नहीं हो पाता। अखंड, सशक्त और सुरक्षित भारत के लिए पक्ष-विपक्ष की एकजुटता भी आवश्यक है। इस आवश्यकता को पहचान कर ‘हम सबका साथ और सबका विकास’ के लिए ईमानदारी से सेवाभावी राजनीति करें, सत्तापक्ष देश-कल्याण के लिए नीतियां बनाएं और विपक्ष अपने दलगत हितों के लिए उनका विरोध करना बंद करें। इसी में विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का शुभ भविष्य संभव है। यदि राष्ट्रहित में हमारे नेतृत्व ने कठोर निर्णय भी लिए तो देश उनका स्वागत करेगा। भारतीय राजनीति की यथार्थवादी निभ्र्रांत दृष्टि ही भविष्य के भारत का स्वर्णपथ प्रशस्त करेगी। अब काल्पनिक मान्यताओं और थोथे आदर्शों के लिए उसमें कोई स्थान नहीं है।
डॉ. कृष्णगोपाल मिश्र
विभागाध्यक्ष-हिन्दी
शासकीय नर्मदा स्नातकोत्तर महाविद्यालय
होशंगाबाद म.प्र.
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