आगे, रेस्पायरर लिविंग साइंसेज़ के रोनक सुतारिया ने कहा, “डेटा का विश्लेषण करते समय, प्रत्येक शहर में उपलब्ध मॉनिटरों की संख्या, निगरानी क्षमता में वृद्धि या कमी और प्रति वर्ष मॉनिटर पर उपलब्ध रीडिंग की संख्या को देखना महत्वपूर्ण है। डैशबोर्ड से स्पष्ट पता चलता है कि किन शहरों में कितने मॉनिटर थे, उनका अपटाइम क्या था और उस डेटा में क्या विश्वास है। इस डेटा में उतार-चढ़ाव और असंगति किसी विशेष शहर के लिए पीएम के रुझानों को बेहद प्रभावित करेगी और सही स्थिति को प्रकट करेगी। उदाहरण के लिए, यह समझने के लिए कि क्या कोई शहर बेहतर प्रदर्शन करता है या डैशबोर्ड पर देखे गए स्वीकार्य मानकों का समर्थन करने के लिए अपर्याप्त डेटा है या नहीं, यह समझने के लिए निगरानी की संरचना में देखना महत्वपूर्ण है।” वहीँ क्लाइमेट ट्रेंड्स की निदेशक और कार्बन कॉपी की प्रकाशक, आरती खोसला, ने कहा, “ऐसे समय में जब केंद्र सरकार राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वायु प्रदूषण को दूर करने के लिए एक नया कानून लाने की इच्छा रखती है, प्रभावी संकट प्रबंधन की दिशा में पहले कदम के रूप में हमारे मौजूदा नियमों का मूल्यांकन करना महत्वपूर्ण है। एनएएमपी डैशबोर्ड हमें वापस देखने और आगे की योजना बनाने की अनुमति देता है। ” इस तथ्य पर ध्यान नहीं देते हुए कि एनएएमपी कार्यक्रम ने 2019 के लिए पीएम के स्तर को समग्र AQI स्तरों पर रिकॉर्ड करने से 2018 के बाद अपने डेटा कैप्चरिंग पद्धति को बदल दिया, खोसला ने कहा, "कैप्चर किए गए और सार्वजनिक किए गए डेटा का मानकीकरण अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह आधारभूत सुविधा प्रदान करेगा" 2024 तक की जा रही प्रगति की तुलना करने के लिए। हम आशा करते हैं कि CPCB PM2.5 और 10 डेटा को 2019 और उसके बाद के वर्षों के लिए उपलब्ध कराएगा। " हाल की मीडिया रिपोर्टों में गुरुग्राम, नोएडा और गाजियाबाद जैसे एनसीआर शहरों में सीओवीआईडी से बरामद मरीजों में श्वसन संबंधी जटिलताओं के उभरने पर प्रकाश डाला गया। जबकि विशेषज्ञों का मानना है कि COVID के बरामद रोगियों पर वायु प्रदूषण के भार का विश्लेषण करना जल्द ही संभव है, इस बात पर आम सहमति है कि भारत में वायु प्रदूषण को एक महत्वपूर्ण जोखिम कारक के रूप में लेने के लिए स्वास्थ्य डेटा को बेहतर ढंग से पकड़ने की आवश्यकता है। यूसीएमएस, दिल्ली विश्वविद्यालय में सामुदायिक चिकित्सा के निदेशक-प्रोफेसर डॉ अरुण शर्मा ने कहा, “भारतीय संदर्भ में उपलब्ध स्वास्थ्य आंकड़ों की कमी के कारण वायु प्रदूषण और सार्वजनिक स्वास्थ्य के बीच संबंध स्थापित करने वाले अधिकांश स्वास्थ्य मॉडल पश्चिमी मॉडल पर आधारित हैं। जब इस डेटा को उपलब्ध कराया जा सकता है, तो यह भौगोलिक वितरण द्वारा भारत में श्वसन रोगों के बोझ का सही अर्थ देगा। भारत प्रत्येक व्यवहार पैरामीटर में एक विषम देश है जो मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। इस मंच पर किए गए वायु प्रदूषण के आंकड़ों के साथ स्वास्थ्य डेटा तक पहुंच के साथ, हम एक समुदाय में बीमारियों की सीमा में योगदान करने वाले विभिन्न कारकों के जोखिम का आकलन करने में सक्षम होंगे, यह सीओपीडी, ब्रोन्कियल अस्थमा, मधुमेह मेलेटस या उच्च रक्तचाप हो सकता है। । इस तरह वायु प्रदूषण के आंकड़ों की पहुंच बहुत अच्छा संकेत है और मैं सरकार और स्वास्थ्य निकायों को स्वास्थ्य डेटा को पारदर्शी और आसानी से सुलभ बनाने के लिए प्रोत्साहित करूंगा। ”
राष्ट्रीय हाइलाइट्स
1. NCAP (राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम) में non-attainment cities (वो सभी शहर जिनका प्रदूषण मानक मूल्यों से ज़्यादा है) में सूचीबद्ध 23 राज्यों में से केवल 3 राज्य - हिमाचल प्रदेश, चंडीगढ़ और पंजाब ही 3 वर्षों की पीएम 10 की निगरानी की औसत रीडिंग से ऊपर रहे हैं, इस बीच पश्चिम बंगाल और असम मार्जिन पर रहे। झारखंड इस सूची में सबसे नीचे 64 औसत रीडिंग प्रति मॉनिटर रहा, 3 मॉनिटर इस राज्य की रीडिंग के लिए जिम्मेदार है।
2. दिल्ली को 3 साल की औसत रीडिंग के आधार पर दर्ज किये गए पीएम 10 के आंकड़ों के हिसाब से सबसे अधिक प्रदूषित राज्य का दर्जा हासिल हुआ है, इसके बाद झारखंड राज्य है जिसका मॉनिटरिंग डाटा ठीक से हासिल नहीं हो सका और उत्तर प्रदेश इस पायदान पर तीसरे नंबर पर रहा है।
3. केवल 15 राज्यों के PM 2.5 के NAMP (नेटवर्क मैपर) मॉनिटरिंग सिस्टम किसी भी वर्ष के लिए उपलब्ध हुए है, जिसमें केवल पश्चिम बंगाल की औसत रीडिंग प्रत्येक 5 मॉनिटर में 110 के लगभग रही। दिल्ली सभी 3 सालों की पीएम 2.5 की औसत रीडिंग के हिसाब से सबसे अधिक प्रदूषित रही इसमें दूसरे स्थान पर उत्तर प्रदेश और तीसरे पर बिहार राज्य रहे ।
4. पीएम नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र, वाराणसी, पीएम 10 स्तरों की डेटा / रीडिंग की 3 वर्ष की मॉनिटरिंग के आधार पर पांचवे स्थान पर रहा, जबकि कांग्रेस अध्यक्ष, सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र, रायबरेली की बात की जाये तो वो 10 वें निम्नतम स्थान पर रहा । सबसे खराब प्रदर्शन देहरादून का रहा, उसके बाद श्रीनगर का स्थान रहा।
5. पीएम 10 की अधिकतम संख्या की रीडिंग के साथ नासिक शीर्ष पर रहा जबकि कानपुर ने पीएम 2.5 की अधिकतम रीडिंग के लिए पहला स्थान हासिल किया।
6. NAMP (नेटवर्क मैपर) मॉनिटरिंग सिस्टम में बदलाव 2019 में हुआ जिसके फलस्वरूप सिर्फ AQI डेटा ही दर्ज किया जाता है, न कि PM 2.5 / PM 10, जिसकी वजह से अब पिछले वर्षों के डेटा से तुलना करना मुश्किल हो गया है।
7 दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, पंजाब, पश्चिम बंगाल, गुजरात, असम, महाराष्ट्र, चंडीगढ़, हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में 2019 के लिए कोई NAMP (नेटवर्क मैपर) मॉनिटरिंग डेटा नहीं है। ऑनलाइन CAAQMS (Continuous Ambient Air Quality Monitoring Station) डेटा और मैनुअल मॉनिटरिंग स्टेशन डेटा में तुलना करना मुश्किल होगा, क्योंकि शहर में मॉनिटर और मॉनिटरिंग स्थानों की संख्या अलग-अलग होगी। 2018 के बाद अधिकांश स्थानों पर NAMP (नेटवर्क मैपर) मॉनिटरिंग बंद कर दी गई है और पिछले 2 वर्षों में CAAQMS (Continuous Ambient Air Quality Monitoring Station) को स्थापित किया जा रहा है, जिससे राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम के अनुसार 2017 को आधार वर्ष के साथ तुलना करना मुश्किल हो गया है।
उत्तर प्रदेश हाइलाइट्स
1. 2016 में लखनऊ में PM 10 214 दर्ज किया गया था जबकि 2017 में यह 244 था और 2018 में यह 217 पर दर्ज किया गया था।
2. PM 2.5 मॉनिटरिंग 2017 से उत्तर प्रदेश के केवल 5 शहरों में शुरू हुई, जिसमें लखनऊ, नोएडा और कानपुर में एक- एक मॉनिटरिंग केंद्र, गाजियाबाद में 2 मॉनिटरिंग केंद्र और आगरा में 4 मॉनिटरिंग केंद्र हैं।
3. राज्य की राजधानी लखनऊ में PM 2.5 का स्तर 2017 में 102 और 2018 में 108 रहा । इस तरह से लखनऊ में PM 2.5 का स्तर 6% बढ़ा।
4. आगरा जहाँ राज्य के अधिकतम PM 2.5 मॉनिटर हैं वहां 2018 में PM 2.5 का स्तर 105 माइक्रोग्राम / घन मीटर रहा और 2017 में 124 मापा गया जिसके अनुसार शहर में PM 2.5 के स्तर में 15% सुधार हुआ ।
दिल्ली हाइलाइट्स
1. दिल्ली के अपने बड़े पैमाने पर निगरानी नेटवर्क के बावजूद 2016 से 2018 तक पीएम 2.5 की मॉनिटरिंग प्रति स्थान औसतन 69.3 रीडिंग है, जबकि पीएम 10 रीडिंग कहीं बेहतर रही जो कि प्रति मॉनिटर लगभग 96.5 कि रीडिंग दर्ज कि गई ।
2. हालाँकि दिल्ली में पीएम 10 के स्तर में 2016 से साल दर साल 274 के साथ कमी दिखी, जो कि 2018 में 225 घट गया, लेकिन पीएम 2.5 का स्तर इतना अच्छा नहीं था।
3. 2016 में सात PM. 2.5 मॉनिटरों में से, दिल्ली में आगामी दो वर्षों में 6 थे, जिसमें साल दर साल रीडिंग की संख्या में कमी देखी गई ।
4. दिल्ली में PM 2.5 में 2016 के स्तर की तुलना में 2017 में 14% सुधार हुआ, लेकिन 2018 में PM 2.5 का स्तर, वर्ष के लिए 121 के सभी स्थानों के गिने जाने वाले रीडिंग की कम संख्या के बावजूद 21% बढ़कर उस समय के उच्च स्तर पर पहुंच गया।
महाराष्ट्र हाइलाइट्स
1. महाराष्ट्र जहाँ पर non-attainment cities (वो सभी शहर जिनका प्रदूषण मानक मूल्यों से ज़्यादा है) की सबसे अधिकतम संख्या (18) है वहां पर PM 2.5 की मॉनिटरिंग के 2 NACs वर्ष 2018 में स्थापित किये गए, जिसमे एक मॉनिटर मुंबई में और दूसरा नागपुर में है ।
2. नागपुर, चंद्रपुर और नासिक के अलावा राज्य के अन्य सभी non-attainment cities में मैनुअल मॉनिटरिंग की 3 साल की औसत रीडिंग निर्धारित स्तर से कम या मध्यम स्तर पर रही है ।
3. राज्य की राजधानी मुंबई में साल दर साल का लेखा-जोखा देखा जाये तो, 2016 में पीएम 10 का स्तर 119 रहा जो 2017 में बढ़कर 151 और 2018 में 165 के स्तर पर रहा ।
4. चंद्रपुर जो कि देश के गंभीर रूप से प्रदूषित समूहों में से एक रहा है वहां पर 2017 में पीएम 10 के स्तर में अस्पष्ट कमी देखी गई जो कि 4 रही, जबकि 2016 में यह 111 थी और 2018 में 149 तक पहुंच गई ।
5. लातूर, नागपुर, नासिक, पुणे, सांगली और सोलापुर जैसे अधिकांश शहरों में 2017 के स्तरों की तुलना में 2018 में पीएम 10 के स्तर में वृद्धि देखी गई ।
छत्तीसगढ़ हाइलाइट्स
1. छत्तीसगढ़ राज्य में 3 non-attainment cities में - भिलाई, कोरबा और रायपुर में से सिर्फ कोरबा में 2 PM 2.5 मॉनिटर वर्ष 2018 में स्थापित किए गए हैं। इससे पहले राज्य के मैनुअल मॉनिटरिंग नेटवर्क में PM 2.5 स्तरों के लिए कोई पिछला डेटा उपलब्ध नहीं है। कोरबा को देश के शीर्ष 10 गंभीर रूप से प्रदूषित क्षेत्रों में भी स्थान दिया गया है।
2.राज्य स्वास्थ्य संसाधन केंद्र के एक हाल ही में किये गए स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव के मूल्यांकन के अनुसार, छत्तीसगढ़ राज्य के कोरबा में रहने वाले नागरिकों, जो कि प्रदूषणकारी बिजली संयंत्रों के नजदीक रहते हैं, और वहां से 20 किलोमीटर दूर एक शहर कटघोरा के विभिन्न समुदायों पर पड़ने वाले बुरे स्वास्थ्य प्रभावों के कारण उन लोगों में श्वसन और हृदय रोग जैसी बिमारियों का खतरा अधिक है ।
3 इससे पहले एक आरटीआई दायर की गई थी इसमें NCAP ट्रैकर के बजट डैशबोर्ड को शामिल किया गया था, जिससे पता लगा कि भिलाई और रायपुर को 20 करोड़ रुपये का बजट प्राप्त हुआ था, जिसमें से 7.6 करोड़ रूपये प्रदूषण कम करने के उपायों के लिए आवंटित किए गए थे जिसमें हरित पट्टी जैसी गतिविधियाँ भी शामिल थीं । इसके अतिरिक्त 6.3 करोड़ रूपये साफ़ सफाई के उपायों जैसे पानी के छिड़काव, मैकेनिकल स्ट्रीट स्वीपर और मोबाइल enforcement units को सौंपा गया, और 5.6 करोड़ रूपये को CAAQMS मॉनिटरिंग स्टेशन और 1 सोर्स अपोर्श्न्मेंट स्टडी के लिए आवंटित किये गए है।
तमिलनाडु हाइलाइट्स
1. तमिलनाडु के तूतीकोरिन में 2016 के स्तर की तुलना में 2017 में 24% की दर से पीएम 10 के स्तर में सुधार हुआ और पिछले वर्ष की तुलना में 2018 में और 23% का सुधार हुआ।
2. इस बीच, त्रिची में पीएम 10 का स्तर 2016 में 95 माइक्रोग्राम / क्यूबिक मीटर से बढ़कर 2018 में 110 हो गया।
3. राज्य में हाल ही में 2018 में PM 2.5 मॉनिटरिंग स्थापित की गई है, इसलिए पिछले डाटा उपलब्ध न होने कि वजह से तुलना का कोई खाका नहीं खींचा जा सकता ।
बिहार हाइलाइट्स
1. जैसा कि हमें मालूम है कि बिहार में चुनाव कि तैयारियां जोरों पर है, राज्य के 3 NACs में से केवल मुजफ्फरपुर में 2016 से 2018 के दौरान की पीएम 2.5 की मॉनिटरिंग उपलब्ध है। राज्य की राजधानी पटना और गया केवल पीएम 10 NAMP मॉनिटरिंग नेटवर्क रजिस्टर करते हैं।
2. केवल पटना के लिए बजट व्यय आरटीआई प्रतिक्रियाओं के माध्यम से उपलब्ध कराया गया था। CAAQMS मॉनिटरिंग स्टेशनों की स्थापना के लिए INR 3.6 करोड़ आवंटित किए गए हैं। बिहार राज्य में किसी अन्य प्रदूषण प्रबंधन हस्तक्षेप के लिए बजट योजनाओं के लिए कोई विवरण उपलब्ध नहीं है।
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