विशेष : नेशनल हाईवे टाॅल प्लाजा पर बसूली: प्रश्न-चिन्हित - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 1 नवंबर 2020

विशेष : नेशनल हाईवे टाॅल प्लाजा पर बसूली: प्रश्न-चिन्हित

भारत सरकार की सर्व प्रथम तो यह प्रशंसा करनी होगी कि देश मे सड़कों का जाल बिछा कर आवागमन को आम जनता के लिए साधन सुलभ बनाने का कार्य अत्यन्त द्रुत गति से चल रहा है। देश के विकास मे आवागमन व सुविधाजनक पहुंच मार्ग महात्वपूर्ण होता है। इस दिशा मे नेशनल हाई-वे अथाॅरिटी आॅफ इण्डिया की भूमिका व इससे जुड़ा केन्द्रीय मंत्रालय के मुखिया श्री नितिन गढ़करी की संवेदनशीलता सराहनीय है। वर्ष 2013 मे वह एक सम्मेलन मे सेनागिर (जिला दतिया) आए थे और तब उन्होने नेशनल हाई-वे के रूके कार्य व खराब सड़क की बदहाली के सन्दर्भ मे आम जनता के समक्ष उद्बोधन मे कहा था कि अपने क्षेत्र के सांसद को पकड़ कर कहो कि नेशनल हाई-वे का निर्माण पूर्ण करावें। यद्यपि केन्द्र मे तत्समय यूपीए की सरकार थी। तत्पश्चात मैने वर्ष 2015 मे इस नेशनल हाई-वे की बदहाल स्थिति के सन्दर्भ मे याद दिलाते हुए एक पत्र श्री गढ़करी जी को भेजा था। अन्ततः गढ़करी के कार्यकाल मे भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्रधिकरण मे प्रांण वायु प्रवाहित हुई, जिसका परिणाम यह हुआ कि राष्ट्रीय राजमार्ग क्र. 75 का निर्माण पूर्ण हो चुका है।

विषय है, नेशनल हाई-वे अथाॅरिटी आॅफ इण्डिया के आधीन टाॅल प्लाजा पर स्थानीय आम जनता का शोषण होना। देश मे नेशनल हाई-वे पर जहां-जहां टाॅल नाका स्थापित किए गए हैं, वहां की स्थानीय जनता को अपने ही शहर गांव मे स्थित घर, व्यापारिक संस्थान, काॅलेज आदि मात्र एक किलो मीटर दूरी पर जाने हेतु टाॅल नाका पार करते हुए शुल्क देना पड़ता है। अर्थात जो वाहन 100 किलो मीटर दूर से आने वाले और आगे 100-50 किलो मीटर दूर तक जाने वाले हैं, और जो शुल्क वे दे रहै हैं, वही शुल्क टाॅल नाका के स्थानीय निवासियों से बसूला जा रहा है। यह तो ’’हर माल साढ़े छः आने’’ वाली नीति नेशनल हाई-वे अथाॅरिटी आॅफ इण्डिया ने बना रखी है। ऐसे भी उदाहरण हैं कि इनके टाॅल नाका किन्ही दो जिलों या दो राज्यों की सीमा पर नहीं बनाए गए हैं, बल्कि जिला के अन्दर और तहसील, पुलिस थाना व शहर की सीमा मे ही स्थपित कर दिए गए हैं। जिसका परिणाम यह हुआ है कि स्थानीय आम जनता को एक-दो किलो मीटर के आवागमन पर पूर्ण शुल्क देना होता है।  इस लेख की विषय-वस्तु स्थानीय आम जनता की पीढ़ा व नियमों के पर्दे मे उससे हो रही बसूली के सन्दर्भ मे है। ध्यान देने योग्य बिन्दु यह भी है कि टाॅल प्लाजा पर शुल्क से भुगतान मे 25 लोगों की छूट सूचीबद्ध है, जिनमे अति विशिष्ट पद के धारकों के अलावा केन्द्रीय मन्त्री, मुख्य मन्त्री, विधान-सभा व लोक-सभा के अध्यक्ष, सांसद, विधायक, कार्यपालक मजिस्ट्रेट आदि शामिल हैं और वे शुल्क भुगतान से मुक्त हैं। फिर इन राजनेताओं के पीछे-पीछे चलने वाले चमचे और बाहुबलियों का तो कहना ही क्या है ! प्रश्न तो यह है कि क्या हम भारत की जनता यह मान लें कि जिन्हे छूट दी गई है, वे आर्थिक दृष्टि से अत्यन्त कमजोर व गरीब हैं ? क्या हम यह मान लें कि सांसद, विधायक टाॅल नाका पर शुल्क देने मे सक्षम नहीं हैं ? प्रश्न यह भी है कि इनके हिस्से का शुल्क आम जनता क्यों भुगतान करे ? यदि किसी को भी छूट नहीं हो तो निश्चित ही शुल्क की राशि कम हो जाएगी। प्रश्न यह भी है कि देश के मध्यम वर्ग व टेक्स-पेयर की गर्दन मरोड़ कर कब तक निचोड़ा जाएगा ?

चलिए, एक दृष्टांन्त के माध्यम से स्पष्ट करने का प्रयास करता हूं। मध्य प्रदेश मे ग्वालियर-दतिया नेशनल हाईवे नम्बर 44 (पूर्व मे इसका नम्बर 75 था), दतिया जिला के अन्दर, जिला न्यायालय दतिया से दो किलोमीटर दूर, डगरई टाॅल प्लाजा एन.एच. 44 के नाम से हाल ही मे स्थापित किया गया है। ज्ञातव्य है कि जिला न्यायालय दतिया भी डगरई मौजा मे पूर्व से स्थित है। माना यह भी जा रहा है कि डगरई मौजा आने वाले समय मे दतिया नगर निगम की सीमा मे हो जाएगा। यह टाॅल प्लाजा पुलिस थाना चिरूला के क्षेत्राधिकार मे है और इसे पार करने पर पांच किलोमीटर आगे तक इस पुलिस थाना की व जिला दतिया की सीमा है जो झांसी (उŸार प्रदेश) की ओर जाता है। इस टाॅल प्लाजा को पार करने के तत्काल बाद कुछ ही मीटर की दूरी पर दतिया का आर.टी.ओ., भारत काॅलेज, आईडियल फूड ग्रेन इण्डिया प्राय. लिमि. का कारखाना, बहुउद्देशीय वाणिंज्यिक कृषक सेवा केन्द्र, मां पीताम्बरा फार्म सेन्टर, श्री कामथनाथ आॅयल इण्ड. के संस्थान हैं। इसके अलावा अनेकांे गांव, फुलरा, काला पहाड़, चिरूला, डेरा-चिरूला, गंधारी, डेरा-गंधारी, नरेटा, तगा आदि भी हैं जो दतिया व पुलिस थाना चिरूला की सीमा के क्षेत्राधिकार मे ही हैं। अब देखिए, यदि किसी को जिला न्यायालय से ग्राम परासरी जाना है तो उसे टाॅल नाका पार करने के बाद लगभग कुछ फर्लंाग आगे तक ही नेशनल हाईवे नम्बर 44 पर से बांए तरफ फुलरा गांव की ओर मुढ़ कर चला जाएगा, लेकिन उसे भी टाॅल टेक्स देना होगा। यदि इसी स्थल के निवासी को इस टाॅल प्लाजा के तत्काल बाद, जो कि कुछ ही मीटर की दूरी पर हैं, उपरोक्त उल्लिखित स्थानीय शासकीय कार्यालय, काॅलेज अथवा अपने व्यापारिक संस्थान जाना है अथवा पुलिस थाना चिरूला मे किसी अपराध की रिपोर्ट करने ही जाना है अथवा इसी मौजा डगरई के निवासी किसी बकील को अथवा मुकदमा के पक्षकार को न्यायालय आना है, तो उसे भी टाॅल टेक्स देना होगा। नेशनल हाईवे के निर्माण के पूर्व जहां दतिया का जिला न्यायालय है, वहां तक जाने हेतु भी आम जनता नेशनल हाईवे का उपयोग नहीं करती है, बल्कि सर्विस-रोड से आवागमन होता है।

टाॅल टेक्स की बसूली का आलम भी यह देखिए कि टाॅल प्लाजा तक जाने के लिए सर्विस-रोड है। अर्थात जो नेशनल हाईवे पर दूर की यात्रा नहीं कर रहै हैं, वे स्थानीय लोग सर्विस-रोड पर चलें और यह स्थानीय आवागमन हेतु है तथा उसका कोई सम्बन्ध नेशनल हाईवे से नहीं है। अब बसूली की प्लानिंग ऐसी है कि जहां डगरई टाॅल प्लाजा एन.एच 44 बनाया गया, उसके कुछ मीटर पहले व कुछ मीटर के बाद तक सर्विस-रोड बन्द कर दी गई है। अर्थात स्पष्ट है कि स्थानीय जनता भले ही नेशनल हाईवे का उपयोग नहीं भी करे और चूंकि उक्त टाॅल प्लाजा के कुछ मीटर पहले और कुछ मीटर बाद तक सर्विस-रोड बन्द कर दी गई है, इस कारण उसे भी टाॅल टेक्स का भुगतान करना पड़ेगा। अब टाॅल टेक्स बसूली मे विसंगति भी देखिए, जो चार पहिया वाहन 110 किलोमीटर दूर मुरेना-ग्वालियर टाॅल प्लाजा उŸार दिशा से नेशनल हाईवे का उपयोग करते हुए झांसी दक्षिंण दिशा की ओर डगरई टाॅल प्लाजा एन.एच 44 को पार करते हुए जा रहै हैं और इसके साथ-साथ जो चार पहिया वाहन स्थानीय दतिया शहर मे ही सर्विस-रोड का उपयोग करते हुए टाॅल प्लाजा के तत्काल बाद अपने स्थानीय, काॅलेज सरकारी कार्यालय, स्थानीय गांव मे जाना चाहते हैं, दोनो स्थितियों के वाहनों को एक जैसा टाॅल-टेक्स डगरई टाॅल प्लाजा एन.एच. 44 पर भुगतान करना पड़ेगा।

अब इनकी चालाकी देखिए, कहते हैं कि फास्ट-टेग का मासिक पास एक मुश्त राशि जमा करते हुए बनवा लीजिए। ये बड़ा ही हस्यास्पद विकल्प बताते हैं। अरे भाई कोई व्यक्ति अपने ही गांव मे, अपने ही पुलिस थाना की सीमा मे अथवा जिला न्यायालय दतिया से दो किलोमीटर दूर अपने घर उक्त उल्लिखित गांव मे जाना चाहता है तो वह मासिक पास के रूप मे टाॅल-टेक्स क्यों दे ? जो वाहन मुरेना-ग्वालियर 110 किलोमीटर दूर उŸार दिशा से डगरई टाॅल प्लाजा एन.एच. 44 को पार करते हुए दक्षिंण दिशा मे झांसी की ओर जा रहै हैं, मासिक फास्ट-टेग पास की सुविधा तो वे भी किसी स्थानीय आधार पर बनवा सकते हैं। ऐसी स्थिति मे स्थानीय दतिया आर.टी.ओ. मे रजिस्टर्ड एम.पी. 32 के वाहनों के लिए आम जनता को तो कोई भी सुविधा नहीं दी जा रही है। दतिया मे विश्व प्रसिद्ध पीताम्बरा पीठ मन्दिर है और यहां से चार-पांच किलोमीटर दूर के स्थानीय निवासी यदि इस मन्दिर मे दर्शन करने आएंगे तो स्पष्ट है कि मन्दिर मे प्रसाद चढ़ौती के स्थान पर टाॅल-टेक्स भुगतान कर के भगवान से क्षमा मांग लो। डगरई टाॅल प्लाजा एन.एच. 44 की स्थापना मे नेशनल हाई-वे अथाॅरिटी आॅफ इण्डिया की त्रुटि यह रही है कि इस टाॅल प्लाजा को पांच किलोमीटर आगे झांसी (यू.पी.) बाॅर्डर पर बनाना चाहिए था और इनकी इसी गलती के कारण स्थानीय जनता का शोषण हो रहा है।  

इस विषय पर नियमों का हवाला दे कर नहीं बचा जा सकता। नियम कौन बना रहा है ? विधायिका ही तो नियम बनाती है और विधायिका मे जनता द्वारा निर्वाचित जन-प्रतिनिधि होते हैं। फिर तो बड़े मजे की बात है कि प्रशासनिक अधिकारी व विधायिका ने मिल कर स्वयं की सुविधा और स्वयं के हित मे टाॅल-टेक्स के भुगतान से स्वयं को छूट लेने का नियम बना लिया और स्थानीय आम जनता के लिए ’बाबा जी का ठुल्लू’। होना तो यह चाहिए कि स्थानीय आम-जनता के ऐसे वाहन जो इसी स्थल के आर.टी.ओ. मे रजिस्टर्ड हैं और उक्त दृष्टांत के सन्दर्भ मे जो प्रायवेट चार पहिया वाहन एम.पी. 32 (आर.टी.ओ. दतिया मे रजिस्टर्ड) हैं, उनके लिए टाॅल-टेक्स की छूट मिलना चाहिए। हां, जो काॅमर्सियल वाहन हैं, टेक्सी मे रजिस्टर्ड और उनका व्यवसायिक उपयोग हो रहा है, तब उस स्थिति मे उनसे पूरा टाॅल-टेक्स बसूल किया जा सकता है। अपेक्षा यह है कि इस लेख की विषय वस्तु के सन्दर्भ मे स्थानीय आम जनता की पीढ़ा का संज्ञान लेते हुए कोई राहत मिल सके।


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राजेन्द्र तिवारी, 

फोन- 07522-238333, 9425116738, 

email- rajendra.rt.tiwari@gmail.com

नोट:- लेखक एक पूर्व शासकीय एवं वरिष्ठ अभिभाषक व राजनीतिक, सामाजिक, प्रशासनिक  आध्यात्मिक विषयों के चिन्तक व समालोचक हैं।

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