आलेख : 120 माह शेष: क्या हम 2030 तक एड्स-मुक्त हो पाएँगें? - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 11 दिसंबर 2020

आलेख : 120 माह शेष: क्या हम 2030 तक एड्स-मुक्त हो पाएँगें?

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कोविड महामारी से एक सीख स्पष्ट है कि स्वास्थ्य सुरक्षा न सिर्फ अर्थव्यवस्था के लिए ज़रूरी है, बल्कि 'सबका साथ सबका विकास' के स्वप्न को पूरा करने के लिए भी. महामारी नियंत्रण जब प्राथमिकता बना तो अनेक गैर-कोविड स्वास्थ्य कार्यक्रम प्रभावित हुए हैं जिनमें से एक है एड्स नियंत्रण. एड्स बीमारी के वायरस (जिसे हम एचआईवी के नाम से जानते है) की पहचान १९८३ में हुई थी। तब से लेकर आज तक एड्स को समाप्त करने की लड़ाई में अभूतपूर्व सफलता हासिल होने के बावजूद यह महामारी अभी भी एक वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या बनी हुई है। आज भी विश्व में लगभग ३८,०००,००० लोग एचआईवी संक्रमण के साथ जी रहे हैं और इनमें से १ करोड़ २० लाख लोगों को चिकित्सीय सुविधा प्राप्त नहीं है। वर्ष २०१९ में इस वायरस से १७ लाख व्यक्ति संक्रमित हुए तथा ६९०,००० इससे संबंधित कारणों से मृत्यु को प्राप्त हुए।


एशिया पैसिफ़िक क्षेत्र में भी स्थिति बेहतर नहीं है। इस क्षेत्र में एचआईवी संक्रमण के साथ जी रहे ५८ लाख लोगों में से ४०% लोगों को सही उपचार नहीं मिल पा रहा है। मॉ से शिशु में एचआईवी संचारण की रोकथाम की दर भी मात्र ५६% है, जो वैश्विक दर ८५% से काफ़ी कम है।  भारत में एचआईवी से पीड़ित २४ लाख लोगों में से ६०% से भी कम को ही जीवन रक्षक एंटी रेट्रोवायरल उपचार प्राप्त हो रहा है, जिसका अर्थ है कि अभी भी 7-8 लाख व्यक्तियों को इलाज की सुविधा नहीं है। परन्तु एक अच्छी खबर यह है कि २०१९ में ६९२२० नए एचआईवी संक्रमण के साथ, भारत ने पिछले एक दशक में एचआईवी संक्रमणों में ६६% की उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की है ,जो पूरे एशिया पैसिफिक क्षेत्र में सबसे अधिक है। भारत सरकार सहित, विश्व की १९४ सरकारों ने २०३० तक एड्स को समाप्त करने का वायदा किया है। लेकिन ऐसा तभी हो सकता है जब एचआईवी-संक्रमित प्रत्येक व्यक्ति को समुचित इलाज मिलता रहे जिससे कि उनका वायरल लोड कम हो, वह गैर-संक्रामक हो जाएं और सामान्य जीवन-यापन कर सके. इसके साथ ही यह सुनिश्चित करना भी आवश्यक है कि जो संक्रमित नहीं हैं उन्हें भविष्य में भी संक्रमण न हो।


संयुक्त राष्ट्र की एड्स संस्था (यूएन-एड्स) के एशिया-पैसिफिक क्षेत्र के निदेशक ऐमन मर्फी ने १०वीं एशिया पैसिफिक कॉन्फ्रेंस ऑन रिप्रोडक्टिव एंड सेक्सुअल हैल्थ एंड राइट्स के वर्चुअल सेशन में बोलते हुए कहा कि, "हम उपचार पर तो बहुत ध्यान केंद्रित करते हैं लेकिन रोकथाम पर नहीं। यह तो वही हुआ जैसे हम एक पानी से भरी बाल्टी को नीचे से खाली करने की कोशिश कर रहे हों और ऊपर से नल चल रहा हो। हमें ऐसे एकीकृत हस्तक्षेप की आवश्यकता है जो केवल बीमारी पर ध्यान न केंद्रित करके लोगों पर ध्यान केंद्रित करे और लोगों की व्यक्तिगत आवश्यकताओं को भी समझे।" मर्फी ने इस बात पर ज़ोर दिया कि सतत यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज (जिसके तहत प्रत्येक नागरिक को सस्ती और अच्छी गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य सेवाएं प्राप्त हो सकें) के अंतर्गत केवल रोग उपचार ही नहीं, वरन प्रत्येक व्यक्ति के विकास और सामाजिक समावेशन को व्यापक रूप से शामिल किया जाना चाहिए। यूएनएफपीए के पैसिफिक क्षेत्र की निदेशक डॉ जेनिफर बटलर का मानना है कि सामुदायिक नेतृत्व वाले उपागम ही सर्वोपरि हैं। उनका कहना है कि ,"एचआईवी के क्षेत्र में हम इस बात को बहुत पहले से जानते थे और अब यह यौनिक और प्रजनन स्वास्थ्य और अधिकार के क्षेत्र में भी कार्य का एक महत्वपूर्ण तरीका बन गया है। हालांकि प्रजनन और यौनिक स्वास्थ्य सेवाओं और एचआईवी सेवाओं तक पहुंच को लंबे समय तक बुनियादी अधिकार माना जाता रहा है, लेकिन अब हम २०२० में हैं और अभी भी इन दोनों सेवाओं को पूरी तरह से एकीकृत नहीं कर पाए हैं। हम अभी भी इनसे सम्बंधित कलंक, भेदभाव और बहिष्कार को झेल रहे हैं।आज भी हमारे स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को इस बात में प्रशिक्षित करने की ज़रुरत है कि वे हर व्यक्ति के साथ सम्मान पूर्वक व्यवहार कर सकें।"


कोविड-काल में सामुदायिक एकजुटता

विश्व एड्स दिवस २०२० के केन्द्रीय विचार - 'वैश्विक एकजुटता, साझा ज़िम्मेदारी' - इस बात का द्योतक है कि कोविड महामारी जैसी आपदाओं से जूझने में भी संगठित समुदाय अद्वितीय शक्ति का प्रदर्शन करते हैं। इस बात के अनगिनत उदाहरण हैं कि किस प्रकार सामुदायिक सक्रियता और एकजुटता एचआईवी और कोविड से प्रभावित लोगों को लॉकडॉउन के बावजूद, दवाओं की होम डिलीवरी सुनिश्चित कराने अथवा लोगों को वित्तीय सहायता, भोजन और आश्रय प्रदान करने जैसी सेवाएं देने में अग्रणी रही है। परन्तु ऐसी एकजुटता केवल समुदायों की ही ज़िम्मेदारी नहीं हो सकती है। एचआईवी की रोकथाम, उपचार, देखभाल और सहायता के लिए हर साक्ष्य-आधारित हस्तक्षेप पर प्रगति में तेजी लाने के लिए सरकारों को अपना दायित्व निभाने में ढील नहीं करनी चाहिए। उनके पास यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज में पूर्ण रूप से निवेश करके उसे लागू न करने का कोई बहाना नहीं हो सकता है।


भारत के एचआईवी के साथ जीवित लोगों के राष्ट्रीय संगठन (नेशनल कोएलिशन ऑफ पीएलएचआईवी - एनसीपीआई+) की अध्यक्ष दक्षा पटेल तथा महासचिव मनोज परदेसी के अनुसार, "यह सब वैश्विक एकजुटता और साझा जिम्मेदारी के बारे में है। यदि हम २०३० तक एड्स को समाप्त करना चाहते हैं तो सरकारों और संयुक्त राष्ट्र संघ की एजेंसियों को सामुदायिक स्वास्थ्य प्रणाली और सामुदायिक प्रणालियों को मज़बूत बनाने के लिए भारी निवेश करना चाहिए।" यौन और प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने और एचआईवी/ एड्स को नियंत्रित करने के लिए संयुक्त और एकीकृत कार्यक्रमों को बढ़ाना होगा। एचआईवी/ एड्स के खिलाफ लड़ाई को एक नयी ऊर्जा प्रदान करने के लिए तथा प्रजनन और यौनिक स्वास्थ्य सेवाओं तक सभी की पहुंच को बेहतर बनाने के लिए सामुदायिक नेतृत्व के साथ साथ राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता है।



माया जोशी - सीएनएस

(भारत संचार निगम लिमिटेड - बीएसएनएल - से सेवानिवृत्त माया जोशी अब सीएनएस (सिटिज़न न्यूज़ सर्विस) के लिए स्वास्थ्य और विकास सम्बंधित मुद्दों पर निरंतर लिख रही हैं)

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