सहवेदना और साहस के कवि थे मंगलेश : अशोक वाजपेयी - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 11 दिसंबर 2020

सहवेदना और साहस के कवि थे मंगलेश : अशोक वाजपेयी

  • ·     जन साधारण के साथ भागीदारी और साझेदारी उनकी कविता का महत्वपूर्ण पक्ष
  • ·     अन्याय और अत्याचार के खिलाफ असंदिग्ध रूप से हमेशा मुखर रहे

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नई दिल्ली : मंगलेश डबराल मानवीय सहवेदना के कवि हैं। उनकी कविता ने हिंदी संसार को अधिक मानवीय और अधिक न्यायसंगत बनाने का काम किया। अन्याय और अत्याचार के खिलाफ उनकी प्रतिबद्धता असंदिग्ध थी। उनका जाना हमारे साहित्य और समाज के लिए अप्रत्याशित आघात है। ये बातें कहीं वरिष्ठ कवि अशोक वाजपेयी, कवयित्री शुभा और कवि पंकज चतुर्वेदी ने। वे राजकमल प्रकाशन समूह द्वारा उसके फेसबुक पेज पर मंगलेश डबराल की स्मृति में आयोजित लाइव में बोल रहे थे। मंगलेश जी की कविताओं का जिक्र करते हुए वरिष्ठ कवि अशोक वाजपेयी ने कहा, वे मानवीय सहवेदना के कवि हैं।उनके यहां भागीदारी और साझेदारी का भाव बहुत केंद्रीय है। उनका मैं भी हम में से एक वाला मैं है। उनकी कविता में मानवीय गर्माहट और मानवीय साहचर्य है। अशोक ने कहा, मंगलेश जीवन में कई छूटी हुई चीजों के कवि हैं। वे साधारण के संघर्ष, सौंदर्य, संभावना और साहस के कवि हैं। उन्होंने अभिव्यक्ति के बहुत खतरे उठाए और निडर और निर्भीक रहे। कवयित्री शुभा ने मंगलेश  की कविता को हिंदी संसार को अधिक मानवीय और अधिक न्यायसंगत बनाने वाला बताते हुए कहा कि उनकी मानवीयता उनके आशावाद से घुली मिली है। वे क्रूरता, कट्टरपन, अमानवीयता के सतत और दृढ़ विरोधी रहे, पर इसके साथ ही वे मानवीय मूल्यों और चीजों को सहेजने का काम भी करते रहे, जैसा स्त्रियां करती हैं। शुभा ने कहा, उनके पास स्त्री का दिल था। वे मानवीय मूल्यों की पक्षधरता के मामले में समझौताविहीन कवि थे, लेकिन उनमें उतनी ही करुणा भी थी।कवि पंकज चतुर्वेदी ने कहा, मंगलेश जूझने वाले कवि थे। उनमें प्रतिबद्धता की दृढ़ता थी। साथ ही उनके हृदय में कोमलता भी थी। उनकी कविता ने दिखाया कि यह परस्पर विरोधी नहीं है। उनकी कविता दबी कुचली, अन्याय को शिकार जनता की पुकार है। मंगलेश की प्रतिनिधि कविताओं के संग्रह के संपादक रहे पंकज ने कहा, उनके स्वभाव में अत्याचार, अन्याय के खिलाफ संघर्ष की चेतना थी।उन्होंने सफलता नहीं, सार्थकता को स्पृहणीय बनाया। उनका जाना एक बड़े कवि के साथ साथ एक बड़े मनुष्य की विदाई है। यह समाज और साहित्य के लिए बड़ा और अप्रत्याशित आघात है। समकालीन हिंदी कविता के प्रतिनिधि हस्ताक्षरों में शुमार मंगलेश डबराल का 9 दिसंबर को निधन ही गया था। साहित्य अकादेमी पुरस्कार समेत अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित मंगलेश के निधन से साहित्य जगत गहरे शोकाकुल है।

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