बिहार : भाकपा-माले की राज्य स्थायी समिति की बैठक संपन्न - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 12 दिसंबर 2020

बिहार : भाकपा-माले की राज्य स्थायी समिति की बैठक संपन्न

किसान आंदोलन के बिहार में विस्तार पर हुई चर्चा

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पटना 12 दिसंबर, भाकपा-माले बिहार राज्य स्थायी समिति की एक दिवसीय बैठक आज राज्य कार्यालय पटना में संपन्न हुई. बैठक में वरिष्ठ पार्टी नेता स्वदेश भट्टाचार्य, राज्य सचिव कुणाल, अखिल भारतीय किसान महासभा के महासचिव राजाराम सिंह, अमर, विधायक अरूण सिंह, गोपाल रविदास, मनोज मंजिल, मीना तिवारी, केडी यादव, महानंद सिंह, अभ्युदय, संतोष सहर, सरोज चैबे, जवाहर लाल सिंह सहित अन्य वरिष्ठ नेताओं ने भाग लिया. बैठक में अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के आह्वान पर आगामी 14 दिसंबर को घोषित राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम को बिहार में सफल बनाने पर बातचीत हुई. इस कार्यक्रम के साथ-साथ तीनों किसान विरोधी कानूनों की वापसी, बिहार में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर धान खरीद की गारंटी आदि सवालों पर किसानों के आंदोलन को नई गति व विस्तार देने पर भी चर्चा हुई. भाकपा-माले के राज्य स्थायी समिति की बैठक के हवाले से माले राज्य सचिव कुणाल ने कहा है कि नीतीश सरकार द्वारा किसानों के खरीद की अधिकतम सीमा में बढ़ोतरी छलावा के अलावा कुछ नहीं है. आखिर सरकार धान खरीद में सीमा का निर्धारण क्यों कर रही है? देशव्यापी किसान आंदोलनों के दबाव में सरकार झुकी तो है लेकिन धान खरीद की सीमा निर्धारण और रजिस्ट्रेशन का नियम लाकर वह मामले को लटकाना चाहती है.  बिहार सरकार ने 2006 में ही मंडियों की व्यवस्था खत्म कर, जिसे अब पूरे देश में लागू किया जा रहा है, बिहार के किसानों को बर्बादी के रास्ते पर धकेलने का काम किया है. बिहार में धान व अन्य फसलों की खरीद की व्यवस्था की स्थिति सबसे खराब है. हमारी मांग है कि बिना किसी भेदभाव और बिना रजिस्ट्रेशन के सरकार बटाईदार किसानों सहित सभी किसानों का, जो अपना धान बेचना चाहते हैं, न्यूनतम समर्थन मूल्य पर उसकी खरीद की गारंटी करे. यह बेहद चिंताजनक है लंबे समय से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर धान खरीद की मांग हो रही है, लेकिन सरकार इसपर तनिक भी गंभीर नहीं है. पंजाब-हरियाणा के लोग 800-900 रु. प्रति क्विंटल के भाव से बिहार के किसानों का धान खरीदते हैं और फिर उसे अपने प्रदेशों में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर बेचते हैं. सरकार यह बताए कि बिहार के किसानों का धान वह न्यूनतम समर्थन मूल्य पर क्यों नहीं खरीद रही है?

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