बिहार : एक्टिविस्टों के साथ क्रूरतापूर्ण व्यवहार - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 1 जनवरी 2021

बिहार : एक्टिविस्टों के साथ क्रूरतापूर्ण व्यवहार

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पटना. जेल का फाटक टूटेगा फादर स्टेन स्वामी छूटेंगा.इस समय तलोजा जेल में बंद हैं दुबली-पतली काया वाले फादर.उनका क्रिसमस और न्यू ईयर भी जेल में ही बीत रहा है. महाराष्‍ट्र की तलोजा जेल में बंद हैं स्टेन स्वामी.उनको सिपर और अन्य सुविधाएं गिरफ्तारी के दूसरे दिन से मुहैया कराई जा रही हैं.यह दावा गिरफ्तारी के बाद रविवार को जेल के एक वरिष्ठ अधिकारी ने किया.83 वर्षीय स्वामी को पार्किंसन सहित कई बीमारियां हैं.उन्हें आठ अक्टूबर को गिरफ्तार किया गया था.तब से वह तलोजा जेल में बंद हैं. जेल अधिकारी के मुताबिक, ‘स्वामी स्टेन को सिपर और स्ट्रॉ नहीं देने का आरोप बेबुनियाद है.सिपर और स्ट्रॉ ही नहीं, हम उन्हें व्हीलचेयर और चलने के लिए छड़ी सहित अन्य सुविधाएं दे रहे हैं. उन्हें दो सहायक भी मुहैया कराए गए हैं.’ अधिकारी ने कहा, ‘हम जानते हैं कि वह मरीज हैं। उन्हें पार्किंसन है.ऐसे में हम उनकी जरूरत के सामान क्यों नहीं मुहैया कराएंगे?’ इस बीच, दिल्ली के कुछ वकीलों ने स्टेन स्वामी के लिए एक पत्र के साथ स्ट्रॉ और सिपर का पार्सल शनिवार के तलोजा जेल भेजा.जेल को लिखे पत्र पर हस्ताक्षर करने वाले वकीलों में शामिल नंदिता राव ने कहा, ‘एक वकील के नाते हमें इससे दुख हुआ, क्योंकि जेल नियमावली के अनुसार जिन कैदियों को खास जरूरत की चीजें मुहैया कराई जाती हैं.’ बता दें कि स्वामी ने एनआईए की विशेष अदालत में याचिका दायर कर सिपर और स्ट्रॉ मुहैया कराने का अनुरोध किया गया था. अभी कुछ दिनों पहले ही फादर स्टेन स्वामी को जेल में स्ट्रॉ और सिपर देने से मना कर दिया गया. वो भी भीमा कोरेगाँव मामले में ही जेल में बंद हैं. 83 साल के एक्टिविस्ट और पादरी फादर स्टेन स्वामी पार्किंसन की बीमारी से पीड़ित हैं. उनके वकीलों ने कोर्ट में बताया है कि वो कप को अपने हाथों से पकड़ कर नहीं रख सकते हैं क्योंकि उनके हाथ कांपते रहते हैं. फादर स्टेन स्वामी अभी चर्चा में हैं. उन्हें एनआइए ने गिरफ्तार किया है. उन पर भीमा-कोरेगांव हिंसा की साजिश में शामिल होने का शक है. 83 साल की दुबली-पतली काया वाले इस शख्स पर नक्सलियों से संबंध रखने के भी आरोप हैं. हालांकि झारखंड सरकार के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इनका बचाव किया है. स्टेन स्वामी को सामाजिक और मानवाधिकार कार्यकर्ता के रूप में भी जाना जाता है. झारखंड में चल रहे जल, जंगल जमीन, विस्थापन जैसे आंदोलन को उन्होंने बौद्धिक समर्थन दिया. फादर स्टेन स्वामी साठ के दशक में तमिलनाडु के त्रिचि से झारखंड पादरी बनने आये थे. थियोलॉजी (धार्मिक शिक्षा) पूरी करने के बाद वह पुरोहित बने, पर ईश्वर की सेवा करने के बजाय उन्होंने आदिवासियों और वंचितों के साथ रहना चुना.


इस मामले में गिरफ्तार हैं

01 जनवरी 2018 को पुणे के समीप कोरेगांव-भीमा गांव में दलित समुदाय के लोगों का एक कार्यक्रम आयोजित हुआ था, जिसका कुछ दक्षिणपंथी संगठनों ने विरोध किया था. एल्गार परिषद के सम्मेलन के दौरान इस इलाके में हिंसा भड़की थी, जिसके बाद भीड़ ने वाहनों में आग लगा दी और दुकानों-मकानों में तोड़फोड़ की थी. इस हिंसा में एक शख्स की जान चली गई और कई लोग जख्मी हो गए थे. जिसके बाद महाराष्ट्र पुलिस ने इस मामले में कई लोगों को गिरफ्तार किया था.इस संदर्भ में फादर का कहना है कि इस हिंसा वाले कांड में दूर दूर से रिश्ता नहीं है.साजिश की तहत गिरफ्तारी की गयी है.


एक्टिविस्ट गौतम नवलखा को चश्मा नहीं दिया

जेल में ज़िंदगी मुश्किल होती है लेकिन हाल के कुछ हफ़्तों में भारत के जेल अधिकारियों ने क़ैदियों की ज़िंदगी और दुश्वारियों भरी बना दी है और उनके प्रति क्रूरता से पेश आ रहे हैं. ख़ास तौर पर उन क़ैदियों के ख़िलाफ़ जो सरकार को लेकर मुखर आलोचक रहे हैं जबकि अंतरराष्ट्रीय अधिकार समूहों ने इन्हें 'मानव अधिकारों को बचाव करने वाला' बताया है. इस महीने की शुरुआत में बॉम्बे हाई कोर्ट ने मुंबई के तलोजा जेल के अधिकारियों को इस बात की याद दिलाई थी कि वो क़ैदियों की ज़रूरतों को लेकर 'मानवतावादी' का रुख़ अपनाएं. जस्टिस एसएस शिंदे और एमएस कार्निक ने कहा था, "हमें जेलरों के लिए वर्कशॉप करने की ज़रूरत है. कैसे इतनी छोटी ज़रूरतों को पूरा करने से मना किया जा सकता है. ये सब मानवता के दायरे में आते हैं." यहाँ जिन 'छोटी ज़रूरतों' की बात की गई है वो एक्टिविस्ट गौतम नवलखा का चश्मा है. जिसे देने से उन्हें जेल के अंदर मना कर दिया गया था.

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